Tuesday, April 26, 2011

मुहम्मद-शांति हो उन पर-के व्यवहार के विषय में कुछ शब्द: mohammad

मुहम्मद-शांति हो उन पर-के व्यवहार के विषय में कुछ शब्द: (पहला भाग)   
पृथ्वी पर लगभग हर कोई आज पैगंबर मुहम्मद-शांति और अशीर्वाद हो उन पर- का चर्चा कर रहा है. लोग यह जानना चाहते हैं कि वास्तव में वह थे कौन? उनके उपदेश थेक्या? कुछ लोग को उनसे क्यों इतना प्यार है और कुछ लोगों को उनसे इतनी नफरत क्यों है? क्या वह अपने दावे पर खरा उतरे? क्या वह एक पवित्र आदमी थे? क्या वह परमेश्वर की ओर से नबी (इश्वदुत) बनाए गए थे? इस आदमी के बारे में सच क्या है जिनका नाम मुहम्मद है?
हम सत्य की खोज कैसे कर सकते हैं? और क्या हम पूरी ईमानदारी के साथ सही परिनाम तक पहुँच सकते हैं?
हम यहाँ बहुत ही सरल ऐतिहासिक सबूतों और तथ्यों के साथ शुरू करते हैं, जिनको हजारों लोगों ने हम तक पहूँचाया है, जिनमें से कई तो उनको व्यक्तिगत रूप से जानते थे, और जो हम यहाँ उल्लेख करने जारहे हैं वे निम्नलिखित पुस्तकों, पांडुलिपियों, ग्रंथों और वास्तविक प्रत्यक्षदर्शी खातों पर आधारित हैं. और वे तथ्य और सबूतइतने अधिक हैं कि इस संदर्भ में हम उनकी गिनती भी नहीं कर सकतेहैं. लेकिन वे सभी के सभी अभी तक दोनों मुसलमानों और गैर मुसलमानों द्वारा सदियों बीत जाने के बाद भी मूल रूप में संरक्षित हैं.
  उनका नाम मुहम्मद है वह अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब के पुत्र थे  उनका जनम मक्का में(जीको अब सऊदी अरब कहा जाता है): वर्ष ५७० (ईसाई युग) में हुआ था और ६३३ इसवीं में "यसरब" सऊदी अरब के पवित्र मदीना में निधन हो गया:

क) उनके  नाम:जब वह पैदा हुवे तो  उनके दादाअब्दुल मुत्तलिब ने उनको मुहम्मद का नाम दिया. और इसका मतलब है " जिनकी बहुत प्रशंसा हो" या "एक सराहा हुवा मनुष्य" बाद में जिन लोगों ने जब  उनको सच्चा और ईमानदार स्वभाव का पाया तो उनके द्वारा उनको "सिद्दीक़"(सच्चा) कहा जाने लगा, इसी तरह उनकी ईमानदारी की वजह से और सब के साथ हमेशा भरोसा कायम रखने और लोगों को जूं की तुं उनकी चीजें वापस देने के कारण उन्होंने "अल-अमीन"(विश्वसनीय) भी कहा जाता था. और जब जन-जातियों का एक दूसरे के खिलाफ संघर्ष होता था तो  दोनों पक्ष लड़ाई के दौरान अपनी अपनी संपत्ति उनको सौंपते थे , भले ही वह उनके ही आदिवासियों के खिलाफ युद्ध करे, क्योंकि उन्हें पता था कि वह हमेशा लोगों की संपत्ति जूं की तुं वापस देते हैं और कभी  भरोसा नहीं तोड़ते हैं चाहे जो भी होजाए. इन नामों से यही झलकता है कि उन के व्यक्तित्व में ईमानदारी, निष्ठा और विश्वसनीयता कुटकुट कर भरी थी और जन-जातियों के रिश्तेदारों के बीच सुलह के लिए उनके उत्साह और उनके उपदेश जाने और माने जाते थे.
उन्होंने अपने अनुयायियों को हमेशा (भाई बहन और अन्य करीबी रिश्तेदारों) के बीच रिश्ते के संबंधों को सम्मान देने का आदेश दिया.
यह बात जॉन की बाइबिल के अध्याय 14 और 16 में वर्णित भविष्यवाणी के साथ सही फिट बैठती है जिस में एक "सत्य की आत्मा" या "मुश्किल में काम आनेवाला" "अधिवक्ता" के आने की भविष्यवाणी की गई. 

ख)वह हज़रत इस्माईल -शांति हो उनपर- के माध्यम से हज़रत इब्राहीम-शांति हो उनपर-के संतान में आते हैं, क्योंकि अरब की महान जनजाति कुरैश हज़रत इस्माईल -शांति हो उनपर- की संतान से फूटा हुआ एक शाखा था,जो उन दिनों मक्का के शासक थे, हो. और हज़रत मुहम्मद वंश धारा सीधा हज़रत इब्राहीम -शांति हो उनपर- से मिलता है, यह निश्चित रूप से इस बिंदु से  देटोरोनोमी के (15:18 अध्याय) ओल्ड टैस्टमैंट (टोराह) की भविष्यवाणी के पूर्ति हो जाने की पुष्टि होती है.
के लिए बात कर सकता (18:15 अध्याय) भविष्यवाणी का कहना है कि वह मूसा की तरह एक नबी (ईश्दूत)होंगे जो अपने भाइयों की और से नुमाइंदा थे.
ग) वह सर्वशक्तिमान ईश्वर की आज्ञाओं का पालन बिल्कुल उसी तरह किये जैसा कि उनके महान दादा और पुराने समय के नबियों (ईश्दुतों) ने कियाथा, कुरान जो दूत गेब्रियल द्वारा मुहम्मद पर उतारा गया कहता है:
"قل تعالوا أتل ما حرم ربكم عليكم ألا تشركوا به شيئا وبالوالدين إحسانا ولا تقتلوا أولادكم من إملاق نحن نرزقكم وإياهم ولا تقربوا الفواحش ما ظهر منها وما بطن ولا تقتلوا النفس التي حرم الله إلا بالحق ذلكم وصاكم به لعلكم تعقلون (الأنعام: 151).

"कह दो: आओ, मैं तुम्हें सुनाऊँ कि तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे ऊपर क्या पाबंदियाँ लगाई है: यह कि किसी चीज़ को उसका साझीदार न ठहराओ और माँ-बाप के साथ सद्व्यवहार करो और निर्धनता के कारण अपनी संतान की हत्या न करो, हम तुम्हें भी रोज़ी देते हैं और उन्हें भी, अश्लील बातों के निकट न जाओ, चाहे वे खुली हुई हों या छिपी हुई हों, और किसी जीव की, जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया है, हत्या न करो, यह और बात है की हक़ के लिये ऐसा करना पड़े.ये बातें हैं जिनकी ताकीद उसने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुद्धि से काम लो.

[पवित्र कुरान, अल-अनआम 6:151]


घ)मुहम्मद-शांति हो उन पर-पूरे जीवन भर सदा परमेश्वर की एकतापरविश्वासके प्रतिबद्ध रहे और उसके साथ किसी भी अन्य "देवताओं" को भागीदार नहीं बनाए. यहीविचारधाराओल्ड टैस्टमैंट में सब से पहला उपदेश है (देखये एक्सोडस अध्याय 20 और देयोटोरोनोमी अध्याय ५) और नई टैस्टमैंट (मार्क, अध्याय 12 कविता29).

ङ)मुहम्मद-शांति हो उन पर-अपने अनुयायियों को सर्वशक्तिमान अल्लाह के आदेश के पालन करने और अल्लाह के दूत गेब्रियल द्वारा उनपर उतारे गए आज्ञाओं की प्रतिबद्धता का आदेश दिया. पवित्र कुरान में अल्लाह  कहता है:
 إن الله يأمر بالعدل والإحسان وإيتاء ذي القربى وينهى عن الفحشاء والمنكر والبغي يعظكم لعلكم تذكرون  (النحل:90)        
निश्चित रूप सेअल्लाह आदेश देता है पूर्ण न्याय का और अच्छे बर्ताव का और रिश्तेदारों को मदद देने का और वह अश्लीलता , बुराई और अत्याचार से तुम्हें रोकता है.(पवित्र कुराना, अन-नहल:९०)

)  मुहम्मद-शांति हो उन पर-कभी भी उनकी आदिवासियों के बीच  फैली मूर्ति पूजन नहीं किया और न उन मूर्तियों के लिये झुका जिन्हेँ मानव हाथ  निर्मित करता है.बावजूद इसके यही आदत उनके जनजाति के लोगों के बीच प्रचलित थी, उन्होंने अपने अनुयायियों को केवल एक भगवान (अल्लाह) के पूजा का आदेश दिया वही(अल्लाह) जोआदमइब्राहीममूसा और सभी इश्दुतों का भगवान है-शांति हो उन सब पर- कुरान में है:
 وما تفرق الذين أوتوا الكتاب إلا من بعد ما جاءتهم البينة وما أمروا إلا ليعبدوا الله مخلصين له الدين حنفاء ويقيموا الصلاة ويؤتوا الزكاة وذلك دين القيمة. (البينة: 4،5)
और वे लोग जिन्हें पुस्तक मिली थी(यहूदी और ईसाइ) विवाद नहीं किये लेकिन उनके पास स्पष्ट सबूतभक्ति को केवल अकेले उसी के लिए रखें और किसी की ओर न करें और नमाज़ पढ़ते रहें और दान दें: और वही सही धर्म है.
(पवित्र कुरान अल-बय्यिनाह:98:4-5)
वह आदमी के बनाए देवताओं या छवियों को कभी नहीं पूजे बल्कि वह सदा उन जटिलताओं और गिरावटों से नफरत करते रहे जो मूर्तिपूजा के कारण पनपते हैं.


छ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-हमेशा अधिक से अधिक     अल्लाह के नाम का सम्मान और महानता करते थे, उन्हों ने     कभी भी गौरव के लिये इस पद को प्रयोगनहीं किया, बल्कि    वह अपने अनुयायियों को सीमा से बाहर अपनी बड़ाई से सदा    रोकते थे और "सर्वशक्तिमान ईश्वर का भक्त" जैसे नामों के     इस्तेमाल का अपने  अनुयायियों को सलाह देते थे.

  
)  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने सदा उचित रूप से        अल्लाह की  पूजा किया और अपने परदादा इब्राहीम और        इस्माइल-शांति हो उन पर-से उनतक सही तरीके से पहुंचे थे    उसी पर चलते थे. यहाँ कुरान के दूसरे अध्याय से कुछ आयतें     हैं इन्हें ज़रा बारीकी और ध्यान से पढ़ें.   
 " وإذ ابتلى إبراهيم ربه بكلمات فأتمهن قال إني جاعلك للناس إماما قال ومن ذريتي قال لا ينال عهدي الظالمين "
और याद करो जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों में परीक्षा ली तो उसने उनको पूरा कर दिखाया, उसने कहा: मैं तुझे सारे मनुष्यों का सरदार बनानेवाला हूँ, उसने निवेदन किया : और मेरी संतान में भी , उसने कहा: जालिम लोग मेरे इस वचन के अंतर्गत नहीं आ सकते.
" وَإِذْ جَعَلْنَا الْبَيْتَ مَثَابَةً لِّلنَّاسِ وَأَمْناً وَاتَّخِذُواْ مِن مَّقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى وَعَهِدْنَا إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ أَن طَهِّرَا بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْعَاكِفِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ "
और याद करो जब हमने इस घर(काबा) को लोगों के लिये केन्द्र और शंतिस्थ्ल बनाया- और इब्राहीम के स्थल में से किसी जगह को नमाज़ की जगह बना लो , और इब्राहीम और इस्माइल को जिम्मेदार बनाया, तुम मेरे इस घर का तवाफ़ करनेवालों और एतेकाफ़ करनेवालों के लिये और रुकू और सजदा करनेवालों के लिये पाक-साफ रखो.
" وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ اجْعَلْ هَذَا بَلَدًا آمِنًا وَارْزُقْ أَهْلَهُ مِنَ الثَّمَرَاتِ مَنْ آمَنَ مِنْهُم بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُ قَلِيلاً ثُمَّ أَضْطَرُّهُ إِلَى عَذَابِ النَّارِ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ "
"और याद करो जब इब्राहीम ने कहा: हे मेरे पालनहार! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासीयों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएं, उसने कहा:और जो इनकार करेगा थोड़ा लाभ तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है."
" وَإِذْ يَرْفَعُ إِبْرَاهِيمُ الْقَوَاعِدَ مِنَ الْبَيْتِ وَإِسْمَاعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّا إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ "
"और याद करो जब इब्राहीम और इस्माइल इस घर की बुनयादें उठा रहे थे ,(तो उन्होंने प्रर्थना की)हे हमारे पालनहार! हमारी ओर से इसे स्वीकार कर ले ,निस्संदेह तू सुनता-जनता है."
" رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبْ عَلَيْنَا إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ "
"हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से अपना एक आज्ञाकारी समुदाय बना :और हमें हमारे इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा स्वीकार कर, निस्संदेह तू तौबा स्वीकार करनेवाला, अत्यंत दयावान है".
" رَبَّنَا وَابْعَثْ فِيهِمْ رَسُولاً مِّنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُزَكِّيهِمْ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ "
"हे हमारे पालनहार! उनमें उन्हीं में से एक ऐसा  रसूल उठा जो उन्हें तेरी आयतें सुनाए और उनको पुस्तक और बुद्धिशिक्षा दे और उन (की आत्मा) को विकसित करे.निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली तत्त्वदर्शी है."
" وَمَن يَرْغَبُ عَن مِّلَّةِ إِبْرَاهِيمَ إِلاَّ مَن سَفِهَ نَفْسَهُ وَلَقَدِ اصْطَفَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا وَإِنَّهُ فِي الآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ "
"कौन है जो इब्राहीम के पंथ से मुँह मोड़े सिवाय उसके जिसने स्वयं को पतित कर लिया? और उसे तो हमने संसार में चुन लिया था और निस्संदेह अन्तिम दिन में उसकी गणना योग्य लोगों में होगी."
" إِذْ قَالَ لَهُ رَبُّهُ أَسْلِمْ قَالَ أَسْلَمْتُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ "
"क्योंकि जब उससे उसके पालनहार ने कहा:मुस्लीम(आज्ञाकारी) हो जा , उसने कहा:मैं सारे संसार के पालनहार-मालिक का आज्ञाकारी होगया".
" وَوَصَّى بِهَا إِبْرَاهِيمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَا بَنِيَّ إِنَّ اللَّهَ اصْطَفَى لَكُمُ الدِّينَ فَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ ."
"और इसी की वसीयत इब्राहीम ने अपने बेटों को की और याकूब ने भी(अपनी संतान को की) कि:हे मेरे बेटो! अल्लाह ने तुम्हारे लिये यही  दीन(धर्म) चुना है, तो इस्लाम(ईश-आज्ञापालन)के अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारीमृत्युन हो.  [पवित्र कुरान 2:124-132]

झ)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने बिल्कुल उसी तरीक़े पर                   इबादत किया   जैसे उनसे पहले के ईश्दुतों ने किया :
नमाज़ के बीच में सज्दः यामाथा को धरती पर रखना और नमाज़ में यरूशलेम की ओर चेहरा रखना और वह अपने अनुयायियों को भी ऐसा ही करने का आदेश देते थे (यहाँ तक कि अल्लाह ने अपने दूत गेब्रियल को इशवानी के साथ निचे उतारा और नमाज़ में चेहरा काबा की ओर करने का आदेश दिया जैसा कि पवित्र कुरान में वर्णित है)

 ञ)  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने हर प्रकार का अधिकार का                निर्माण कियाविशेष रूप से परिवार के सभी सदस्यों से सबंधित
के और माता पिता, शिशु लड़कियों, अनाथ लड़कियों के लिए अधिकार को स्थापित किया, और निश्चित रूप से पत्नियों के लिए.
यह पवित्र कुरानसे यह स्पष्ट है कि  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने अपने अनुयायियों को माता पिता के साथ दया और सम्मान का आदेश दिया . बल्कि उन्हेंनफ्रत से"ऊंह" भी कहने से रोका है:
 पवित्र कुरान में है:
" وقضى ربك ألا تعبدوا إلا إياه وبالوالدين إحسانا إما يبلغن عندك الكبر أحدهما أو كلاهما فلا تقل لهما أف ولا تنهرهما وقل لهما قولا كريما. " (الإسراء: 23).
"और पालनहार ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो, यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहूँच जाएँ तो उन्हें "उंह" तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टापूर्वक बात करो.[पवित्र कुरान 17:23]

ट)वास्तव में हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ही अनाथों के रक्षक थे  और नवजात बच्चों तक के अधिकार को सही धारे पर स्थापित किया उन्होंने अनाथों की देखभाल और गरीबों को भोजन देने का आदेश दिया बल्कि इसे स्वर्ग में प्रवेश का माध्यम बताया, और यदि किसी ने इनके अधिकारों को हड़प किया तो वह कभी स्वर्ग में फटकेगा तक नहीं. पवित्र कुरान में है.
 "الذين ينفقون أموالهم بالليل والنهار سرا وعلانية فلهم أجرهم عند ربهم ولا خوف عليهم ولا هم يحزنون". (البقرة: 274). 
"जो लोग अपने धन रात-दिन छिपे और खुले ख़र्च करें , उनका बदला तो उनके पालनहार के पास है, और न उन्हें कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे."(पवित्र कुरान:२: २७४)
उन्होंने नवजात लड़कियों की हत्या को निषिद्ध कर दिया , जैसा कि  अरब में  अज्ञान के समय के परंपराओं में था. पवित्र कुरान में है:
”وَإِذَا الْمَوْؤُودَةُ سُئِلَتْ بِأَيِّ ذَنبٍ قُتِلَتْ . "(التكوير: 8 )
"और जब जीवित गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा कि उसकी हत्या किस पाप के कारण की गई?[पवित्र कुरान: 81:8]

ठ)  हज़रत पैगंबर-शांति और आशीवार्द हो उन पर- ने  पुरुषों को आदेश दिया कि उनकी इच्छा के विरुद्ध महिलाओं के वारिस न बनें और उनसे  उनकी सहमति और मर्ज़ी के बिना शादी न करें और उनके धन को हाथ न लगाएं बल्कि उनकी वित्तीय स्थिति को सुधारने पर ज़ोर दिया है. पवित्र कुरान में है:
 " يا أيها الذين آمنوا لا يحل لكم أن ترثوا النساء كرها ولا تعضلوهن لتذهبوا ببعض ما آتيتموهن إلا أن ياتين بفاحشة مبينة وعاشروهن بالمعروف فإن كرهتموهن فعسى أن تكرهوا شيئا ويجعل الله فيه خيرا كثيرا. " (النساء:19).
"हे ईमान लेनेवालो! तुम्हारे लिये वैध नहीं कि स्त्रियों के धन के ज़बरदस्ती वारिस बन बैठो , और न यह वैध है कि उन्हें इसलिए रोको और तंग करो कि जो कुछ तुमने उन्हें दिया है उसमें से कुछ ले उड़ो, परन्तु यदि वे खुले रूप में अशिष्ट कर्म कर बैठें तो दूसरी बात है और उनके साथ तरीक़े से रहो-सहो, फीर यदि वे तुम्हें पसंद न हों तो संभव है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे.(पवित्र कुरान अन-निसा: 4:19)

इस आयत से यह परिणाम भी निकलता है कि पत्नी कीपिटाई और उनको तकलीफ़ देना भी आम तौर पर निषिद्घ बात है क्योंकि उन्होंने कभी भी अपनी किसी पत्नी को नहीं मारा.
और न ही उनका शादी से बाहर किसी महिला से कभी यौन संबंध था, और न ही उन्होंने कभी इसको स्वीकार किया, हालांकि यह उस समय में बहुत आम था. महिलाओं के साथ उनका सबंध केवल कानून के अनुसार और उचित गवाहों के साथ और वैध था. और हज़रत आइशा-के साथ उनका जो संबंध था वह भी केवल शादी के बंधन पर आधारित था. और उन्होंने उनके साथ उसी समय तुरन्त शादी नहीं की थी जब उनके पिता ने पहली बार शादी का प्रस्ताव रखा था बल्कि जब वह यौवन की उम्र तक पहुँच चुकी और खुद के लिए फ़ैसला करने की उम्र तय कर लि थि,  तभी उनके साथ विवाह हुवा था. उनके रिश्ते के विषय में खुद हज़रत आइशा ने बयान किया कि वास्तव में यह एक स्वर्ग में बनाया गयाजोड़ा था.जिस में अधिक से अधिक प्यार और सम्मान का माहोल था, हज़रत आइशा इस्लाम के सर्वोच्च विद्वान में गिनी जाती हैं, और पुरे जीवनभर वह केवल हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- की पत्नी रहे, और उन्होंने कभी भी किसी अन्य व्यक्ति के विषय में सोचा तक नहीं, और कभी भी उनके मुँह से हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुना गया और न ही उन्हों ने कभी कोई नकारात्मक बयान दिया.

ड)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- ने पुरुषों को आदेश दिया कि वे  महिलाओं पर ख़र्च करें और उनकी रक्षा करें  चाहे वे महिला उनकी माँ हों  या बहन, पत्नी हों या बेटी चाहे वे मुसलमान हों या न हों.
पवित्र कुरान में है:
   الرِّجَالُ قَوَّامُونَ عَلَى النِّسَاء بِمَا فَضَّلَ اللَّهُ بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ وَبِمَا أَنفَقُواْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ فَالصَّالِحَاتُ قَانِتَاتٌ حَافِظَاتٌ لِّلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ اللَّهُ وَالَّلاتِي تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَاهْجُرُوهُنَّ فِي الْمَضَاجِعِ وَاضْرِبُوهُنَّ فَإِنْ أَطَعْنَكُمْ فَلاَ تَبْغُواْ عَلَيْهِنَّ سَبِيلاً إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيًّا كَبِيرًا (النساء:34).
"पति पत्नियों के संरक्षक और निगरां हैं, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ के मुक़ाबले में आगे रखा है, और इसलिए भी कि पतियों ने अपने माल ख़र्च किये हैं, तो नेक पत्नियां तो आज्ञापालन करनेवाली होती हैं और गुप्त बातों की रक्षा करती हैं क्योंकि अल्लाह ने उनकी रक्षा की है, और जो पत्नियां ऐसी हों जिनकी सरकशी का तुम्हें भय हो उन्हें समझाओ और बिस्तरों पर उन्हें अकेली छोड़ दो और (अति आवश्यक हो तो) उन्हें मारो भी, फिर यदि वे तुम्हारी बात मानने लगें तो उनके विरूद्ध कोई रास्ता न ढूंढों अल्लाह सबसे उच्च, सबसे बड़ा है.
 (पवित्र कुरान, अन-निसा: 4:34) 

पैगंबर हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-के व्यवहार के विषय में कुछ शब्द: (दूसरा भाग)

ढ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- ने गरीबी के डर से बच्चों की हत्या को निषिद्ध स्पष्ट किया इसी प्रकार किसी भी निर्दोष की हत्या से मना किया. पवित्र कुरान में अल्लाह का आदेश है:
"قل تعالوا أتل ما حرم ربكم عليكم ألا تشركوا به شيئا وبالوالدين إحسانا ولا تقتلوا أولادكم من إملاق نحن نرزقكم وإياهم ولا تقربوا الفواحش ما ظهر منها وما بطن ولا تقتلوا النفس التي حرم الله إلا بالحق ذلكم وصاكم به لعلكم تعقلون (الأنعام: 151).

"कह दो: आओ, मैं तुम्हें सुनाऊँ कि तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे ऊपर क्या पाबंदियाँ लगाई है: यह कि किसी चीज़ को उसका साझीदार न ठहराओ और माँ-बाप के साथ सद्व्यवहार करो और निर्धनता के कारण अपनी संतान की हत्या न करो, हम तुम्हें भी रोज़ी देते हैं और उन्हें भी, अश्लील बातों के निकट न जाओ, चाहे वे खुली हुई हों या छिपी हुई हों, और किसी जीव की, जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया है, हत्या न करो, यह और बात है की हक़ के लिये ऐसा करना पड़े.ये बातें हैं जिनकी ताकीद उसने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुद्धि से काम लो.

[पवित्र कुरान, अल-अनआम 6:151]


ण) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-कभी व्यभिचार के निकट भी नहीं हुवे, और उन्होंने अपने अनुयायियों को भी केवल वैध शादी पर आधारित महिलाओं के साथ संभोग का आदेश दिया और शादी से बाहर के सभी यौन संबंधों को निषिद्ध किया. सर्वशक्तिमान अल्लाह का पवित्र कुरान में आदेश है:
" الشيطان يعدكم الفقر ويامركم بالفحشاء والله يعدكم مغفرة منه وفضلا والله واسع عليم." (البقرة: 268).
"शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है और निर्लज्जता के कामों पर उभारता है , जबकि अल्लाह अपनी क्षमा और उदार क्रपा का तुम्हें वचन देता है , अल्लाह बड़ी समाईवाला,सर्वज्ञ है.[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:268]

"قل إنما حرم ربي الفواحش ما ظهر منها وما بطن والإثم والبغي بغير الحق وأن تشركوا بالله ما لم ينزل به سلطانا وأن تقولوا على الله ما لا تعلمون". (الأعراف: 33).
"कह दो: मेरे रब ने केवल अश्लील कामों को हराम किया है--जो उनमें से प्रकट हों उन्हें भी और जो छिपे हों उन्हें भी -----और ह्क़ मारना नाहक़ ज़्यादती और इस बात को कि तुम अल्लाह का साझीदार ठहराओ,जिसके लिए उसने कोई प्रमाण नहीं उतारा और इस बात को भी कि तुम अल्लाह पर थोपकर ऐसी बात कहो जिसका तुम्हें ज्ञान न हो."[पवित्र कुरान, अल-अअराफ़ 7:33]

 " ولا تقربوا الزنى إنه كان فاحشة وساء سبيلا". (الإسراء: 32).
 " और व्यभिचार के निकट न जाओ. वह एक अश्लील क्रम और बुरा मार्ग है."[पवित्र कुरान, अल-इसरा: 17:32]  
" الزاني لا ينكح إلا زانية أو مشركة والزانية لا ينكحها إلا زان أو مشرك وحرم ذلك على المؤمنين. (النور:3).
"व्यभिचारी किसी व्यभिचारणी या बहुदेववादी स्त्री से ही निकाह करता है, और इसी प्रकार व्यभिचारणी, किसी व्यभिचारी या बहुदेववादी से ही निकाह करती है.और यह मोमिनों पर हराम है."[पवित्र कुरान, अन-नूर: 24:3]
" إن الذين يحبون أن تشيع الفاحشة في الذين آمنوا لهم عذاب أليم في الدنيا والآخرة والله يعلم وأنتم لا تعلمون". (النور:19).
"जो लोग चाहते हैं कि उन लोगों में जो ईमान लाए हैं , अश्लीलता फैले, उनके लिए दुनिया और अखिरत(लोक-परलोक)में दुखद यातना है, और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते.[पवित्र कुरान, अन-नूर: 24:१९]
" يا أيها النبي إذا جاءك المؤمنات يبايعنك على أن لا يشركن بالله شيئا ولا يسرقن ولا يزنين ولا يقتلن أولادهن ولا ياتين ببهتان يفترينه بين أيديهن وأرجلهن ولا يعصينك في معروف فبايعهن واستغفر لهن الله إن الله غفور رحيم". (الممتحنة:12).
"हे नबी! जब तुम्हारे पास ईमानवाली स्त्रियाँ आकर तुमसे इसपर 'बैअत' करें कि वे अल्लाह के साथ किसी चीज़ को साझी नहीं ठहराएँगी और न चोरी करेंगी और न व्यभिचार करेंगी , और न अपनी संतान की हत्या करेंगी और न अपने हाथों और पैरों के बीच कोई आरोप घड़कर लाएँगी और न किसी भले काम में तुम्हारी अवज्ञा करेंगी , तो उनके लिए अल्लाह से क्षमा की प्रर्थना करो, निश्चय ही अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यंत दयावान है."[पवित्र कुरान, अल-मुम्तहिना: 60:12]

हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-के समय में सारे संसार में व्यभिचार आम थाफिर भी वह इस काम से सदा दूर रहेऔर अपने अनुयायियों को भी इस बुराई से सदा मना किया.

त)  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- ने पैसे उधार पर सूदखोरी और ब्याज से मना कियाजैसा कि हज़रत ईसा-शांति हो उन पर- ने भी सदियों पहले इस से रोका था, यह तो स्पष्ट है कि सूदखोरी लोगों के धन-संपत्ति को कैसे हड़प कर लेती है, और इतिहास भर में आर्थिक प्रणालियों को कैसे नष्ट करते आ रही है, और यही बात पहले के सारे नबियों की शिक्षाओं में मिलती है.हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- ने भी इस तरह के व्यवहार को सबसे बुरी क़रार दिया और उससे बचने का आदेश दिया ताकि एक व्यक्ति अल्लाह और लोगों के साथ शांति का माहोल बनाने में सफल हो.
   " الَّذِينَ يَأْكُلُونَ الرِّبَا لاَ يَقُومُونَ إِلاَّ كَمَا يَقُومُ الَّذِي يَتَخَبَّطُهُ الشَّيْطَانُ مِنَ الْمَسِّ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُواْ إِنَّمَا الْبَيْعُ مِثْلُ الرِّبَا وَأَحَلَّ اللَّهُ الْبَيْعَ وَحَرَّمَ الرِّبَا فَمَن جَاءَهُ مَوْعِظَةٌ مِّن رَّبِّهِ فَانتَهَىَ فَلَهُ مَا سَلَفَ وَأَمْرُهُ إِلَى اللَّهِ وَمَنْ عَادَ فَأُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ "
" يَمْحَقُ اللَّهُ الرِّبَا وَيُرْبِي الصَّدَقَاتِ وَاللَّهُ لاَ يُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ أَثِيمٍ "
" إِنَّ الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ وَأَقَامُواْ الصَّلاةَ وَآتَوُاْ الزَّكَاةَ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ وَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ"
" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللَّهَ وَذَرُواْ مَا بَقِيَ مِنَ الرِّبَا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ "
" فَإِن لَّمْ تَفْعَلُواْ فَأْذَنُواْ بِحَرْبٍ مِّنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ وَإِن تُبْتُمْ فَلَكُمْ رُؤُوسُ أَمْوَالِكُمْ لاَ تَظْلِمُونَ وَلاَ تُظْلَمُونَ. " (البقرة: 275-279).
"जो लोग ब्याज खाते हैं , वे बस इस प्रकार उठते हैं जिस प्रकार वह व्यक्ति उठता है, जिसे शैतान ने छुकर बावला कर दिया हो और यह इसलिये कि उनका कहना है: व्यापार भी तो ब्याज की तरह ही है, जबकि अल्लाह ने व्यापार को वैध और ब्याज को अवैध ठहराया है अतः
"जिसको उसके रब की ओर से नसीहत पहुँची और वह बाज़ आ गया , तो जो कुछ पहले ले चुका वह उसी का रहा और मामला उसका अल्लाह के हवाले है, और जिस ने फिर यही कर्म किया तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले हैं, उसमें वे सदैव रहेंगे".
"अल्लाह ब्याज को घटाता और मिटाता है और सदक़ों बढ़ाता है और अल्लाह किसी अकृतज्ञ हक़ मरनेवाले को पसन्द नहीं करता."
"निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किये और नमाज़ क़ाएम की और ज़कात दी. उनके लिए उनका बदला उनके रब के पास है और उन्हें न कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे."
"हे ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और जो कुछ ब्याज बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमानवाले हो."
"फिर यदि तुमने ऐसा न किया तो अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध के लिए खबरदार हो जाओ और यदि तौबा[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:२७५-२७९]

थ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- न खुद कभी जुआ खेले और न ही अपने अनुयायियों को कभी इसकी अनुमति दी, क्योंकि जुआ भी सूदखोरी की तरहधन-संपत्ति को फूंक देता है बल्कि जुआ तो और जल्दी धन को नष्ट कर देता है.
  " يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ قُلْ فِيهِمَا إِثْمٌ كَبِيرٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَإِثْمُهُمَا أَكْبَرُ مِن نَّفْعِهِمَا وَيَسْأَلُونَكَ مَاذَا يُنفِقُونَ قُلِ الْعَفْوَ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَتَفَكَّرُونَ. " (البقرة:219)
"तुम से शराब और जुए के विषय में पूछते हैं, कहो: उन दोनों चीज़ों में बड़ा पाप है यद्दपि लोगों के लिए कुछ लाभ भी हैं, परन्तु उनका पाप उनके लाभ से कहीं बढ़कर है, और वे तुमसे पूछते हैं:कितना ख़र्च करें? कहो:जो आवश्यकता से अधिक हो, इस प्रकार अल्लाह दुनिया और आखिरत के विषय में तुम्हारे लिए अपनी आयतें खोल-खोलकर बयान करता है ताकि तुम सोच-विचार करो.[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:219] 
जुआ तो हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- के समय से पहले कोई बुराई का काम ही नहीं था, लेकिन आजतो अच्छी तरह खुलकर सब के सामने आगया है कि जुआ के कितने नुकसान हैं, इस के कारण परिवार पर कैसी आफ़त आती है मानसिक स्वास्थ्य कैसे प्रभावित होता है? क्योंकि काम तो शुन्य है और फिर कमाई होरही है, ऐसा तरीक़े को तो हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- की शिक्षाओं से कोई संबंध ही नहीं है.

द)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया पीना तो दूर की बात है, और न ही शराब जैसी किसी नशीली पदार्थ को हाथ लगाया.भले ही यह उनके समय में लोगों के लिए एक बहुत ही सामान्य बात थी. पवित्र कुरान में है:
" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالأَنصَابُ وَالأَزْلامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ "
   " إنما يريد الشيطان أن يوقع بينكم العداوة والبغضاء في الخمر والميسر ويصدكم عن ذكر الله وعن الصلاة فهل أنتم منتهون. " (المائدة: 90-91)
"ऐ ईमान लेनेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गंदे शैतानी काम हैं, अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो.
शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और वैर पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे?"[पवित्र कुरान, अल-माइदा: 5:90-91]
अरबके लोग भीअपने समय में अन्य संस्कृतियोंकी तरह जमकर शराब पीते थे उन्हें स्वास्थ्य  क्षति  या व्यवहार और नैतिक  नुक़सान की कोई परवाह नहीं थी. बल्कि उनमें से कई शराबियों की स्तिथि यह थी कि वह उसी पर जीते मरते थे.
आज की दुनिया में तो शराब की लत की गंभीरता और खतरों के विषय लंबे-चौड़े  विचार और बहस की तो आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि सब खुल कर सामने आचुका है, इसके कारण बहुत सी  बीमारियाँ मनुष्य पर टूटती हैं, और यह एक व्यक्ति के स्वास्थ्य को भी बर्बाद कर देता है, और साथ ही कई इसके कारण कई यातायात दुर्घटनाएं घटती रहती हैं जिन में  संपत्ति भी नष्ट होती हैं और जानें भी जाती हैं. इसलिए हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-के अनुयायियों के लिए सब से पहले यह आदेश आया था कि शराब पीकर नमाज़ न पढ़ें फिर बाद में किसी भी समय पिने से पूरा पूरा रोक दिया गया.
ध) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- बेकार गपशप या पीठ पीछे बुराई या चुगली से सदा दूर रहे, वह तो ऐसी बातों को सुनना भी ना-पसन्द करते थे और दूर-दूर रहते थे.पवित्र कुरान में आया है.
" يا أيها الذين آمنوا إن جاءكم فاسق بنبإ فتبينوا أن تصيبوا قوما بجهالة فتصبحوا على ما فعلتم نادمين. "(الحجرات:6)
"ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई खबर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो, कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ और नुक्सान पहुँचा बैठो , फिर अपने किये पर पछताओ.[पवित्र कुरान, अल-हुजुरात: 49:6]
 " يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا يَسْخَرْ قَوْمٌ مِّن قَوْمٍ عَسَى أَن يَكُونُوا خَيْرًا مِّنْهُمْ وَلا نِسَاء مِّن نِّسَاء عَسَى أَن يَكُنَّ خَيْرًا مِّنْهُنَّ وَلا تَلْمِزُوا أَنفُسَكُمْ وَلا تَنَابَزُوا بِالأَلْقَابِ بِئْسَ الاِسْمُ الْفُسُوقُ بَعْدَ الإِيمَانِ وَمَن لَّمْ يَتُبْ فَأُولَئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ"
" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اجْتَنِبُوا كَثِيرًا مِّنَ الظَّنِّ إِنَّ بَعْضَ الظَّنِّ إِثْمٌ وَلا تَجَسَّسُوا وَلا يَغْتَب بَّعْضُكُم بَعْضًا أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَن يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِ مَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ رَّحِيمٌ. " (الحجرات 11-12).
"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! न परुषों का कोई गिरोह दूसरे परुषों की हँसी उड़ाए, संभव है वे उनसे अच्छे हों और न स्त्रियाँ स्त्रियों की हँसी उड़ाऐँ, संभव है वे उनसे अच्छी हों, और न अपनों पर ताने कसो और न आपस में एक-दूसरे को बुरी उपाधियों से पुकारो, ईमान के पश्चात अवज्ञाकारी का नाम जुड़ना बहुत ही बुरी है, और जो व्यक्ति बाज़ न आए, तो ऐसे व्यक्ति ज़ालिम हैं."
"ऐ ईमान लेनेवालो! बहुत से गुमानों से बचो, क्योंकि कतिपय गुमान पाप होते हैं, और न टोह में पड़ो और न तुममें से कोई इसको पसन्द करता है कि वह अपने मरे हुवे भाई का मांस खाए? वह तो तुम्हें अप्रिय होगा  ही , -----और अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही अल्लाह तौबा स्वीकार करनेवाला, अत्यंत दयावान है.[पवित्र कुरान, अल-हुजुरात: 49:11-12]
निश्चित रूप से, इन शिक्षाओं को आज की दुनिया में भी सराहा जाएगा जबकि आज लगभग सभी लोग बेकार गपशप में समय बरबाद करते हैं , एक-दूसरे-की बुराई और गाली-गलोज में डूबे हुवे हैं. लोग तो अपने रिश्तेदारों और चाहने वालों को भी नहीं छोड़ते हैं.

न) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-बहुत उदार थे और   वह अपने अनुयायियों को भी ऐसा ही करने के लिए आग्रह करते थे, एक दूसरे के साथ  अपने व्यवहार को सुन्दर रखने का आदेश देते थे, और बकाया कर्ज को क्षमा करने के लिए भी आग्रह किया करते थे.ताकि सर्वशक्तिमान   परमेश्वर के पास से अच्छा से अच्छा फल मिले.इस संबंध में पवित्र कुरान में आया है.
" وإن كان ذو عسرة فنظرة إلى ميسرة وأن تصدقوا خير لكم إن كنتم تعلمون وَاتَّقُواْ يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ. " (البقرة:280-281).
"और यदि कोई तंगी में हो तो हाथ खुलने तक मुहलत देनी होगी, और सदक़ा कर दो(अर्थातू मूलधन भी न लो) तो यह तुम्हारे किये अधिक उत्तम है, यदि तुम जान सको."
"और उस दीन का डर रखो जबकि तुम अल्लाह की ओर लौटेंगे, फिर प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया पूरा-पूरा मिल जाएगा और उनके साथ कदापि कोई अन्याय न होगा."[पवित्र कुरान, अल-बक़रा: 2:280-281]


प)  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-गरीबों को दान देने का आदेश देते थे, बल्कि वह विधवाओंअनाथों के देख-रेख में सबसे पहले और आगे-आगे रहते थे. पवित्र कुरान में आया है.
" فَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلا تَقْهَرْ. " (الضحى:9)
      "अतः जो अनाथ हो उसे न दबाना." [पवित्र कुरान, अद-दुहा:९३:९]
" لِلْفُقَرَاء الَّذِينَ أُحْصِرُواْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لاَ يَسْتَطِيعُونَ ضَرْبًا فِي الأَرْضِ يَحْسَبُهُمُ الْجَاهِلُ أَغْنِيَاء مِنَ التَّعَفُّفِ تَعْرِفُهُم بِسِيمَاهُمْ لاَ يَسْأَلُونَ النَّاسَ إِلْحَافًا وَمَا تُنفِقُواْ مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ. " (البقرة:273).

"यह उन मुहताजों के लिए है जो अल्लाह के मार्ग में घिर गए हैं कि धरती में जीविकोपार्जन के लिए) कोई दौड़-धुप नहीं कर सकते, उनके सविभिमान के कारण अपरिचित व्यक्ति उन्हें धनवान समझता है, तुम उन्हें उनके लक्षणों से पहचान सकते हो, वे लिपटकर लोगों से नहीं नहीं माँगते, जो माल भी तुम खर्च करोगे, वह अल्लाह को ज्ञात होगा."[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2,273]

फ) हज़रत  मुहम्मद- शांति हो उन पर-ने लोगों को सिखाया कि प्रतिकूल परिस्थितियों, कठिनाइयों और परीक्षणोंसे कैसे निपटें जो जीवन में घटित होते रहते हैं, उन्होंने बता दिया कि इनका मुक़ाबलाकेवल धैर्य और विनम्र रवैया के माध्यम से ही संभव है, और इसी के द्वारा जीवन की जटिलताओं और नाउम्मीदियों से लड़ा जासकता है.
हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-बहुत अधिक धैर्य वाले थे, और नम्रता में तो उनका जवाब नहीं था,और जिस-जिस ने भी उनसे भेंट की सब ने इन गुणों को उनमे देखा. पवित्र कुरान में उल्लेख है.
   " يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اسْتَعِينُواْ بِالصَّبْرِ وَالصَّلاةِ إِنَّ اللَّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ. " (البقرة:153).
"ऐ ईमान लेनेवालो! धैर्य और नामज़ से मदद प्राप्त करो, निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है जो धैर्य और दूढ़ता से काम लेते हैं."
[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:153]

उन्होंने यह बता दिया कि यह जीवन वास्तव में अल्लाह की ओर से एक परीक्षण है: जैसा कि पवित्र कुरान में उल्लेख है.
 " وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ بِشَيْءٍ مِّنَ الْخَوْفْ وَالْجُوعِ وَنَقْصٍ مِّنَ الأَمْوَالِ وَالأنفُسِ وَالثَّمَرَاتِ وَبَشِّرِ الصَّابِرِينَ.الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُم مُّصِيبَةٌ قَالُواْ إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ. (البقرة: 155 - 156).
"और हम अवश्य ही भय से , और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे, और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो."[पवित्र कुरान, अल-बक़रा: 2:१५५-१५६]

ब) वास्तव में हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-अधिक से अधिक उपवास या रोज़ा रखते थे ताकि सर्वशक्तिमान ईश्वर के करीब रहें और सांसारिकआकर्षणों और लोभों से बिल्कुल दूर रहें. रोज़ा के संबंध में अल्लाह का आदेश है:
" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ. " (البقرة:183).
"ऐ ईमान लेनेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किये गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ."

[पवित्र कुरान, अल-बक़रा: 2:१८३]

  

भ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-अपने मिशन के शुरू से लेकर अंत तक नस्लवाद और जनजातीयता को समाप्त करने के लिए परिश्रम, वह सही मायने में हर समय और सभी के लिए शांति के मार्ग दर्शकथे.इस संबंध में अल्लाह का फरमान:
 " يا أيها الناس إنا خلقناكم من ذكر وأنثى وجعلناكم شعوبا وقبائل لتعارفوا إن أكرمكم عند الله أتقاكم إن الله عليم خبير. " (الحجرات:13).
"ऐ लोगो! हमने तुम्हें एक परुष और एक सत्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरीयों और क़बीलों का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो, वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है जो तुममें सबसे अधिक डर रखता है, निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जाननेवाला, खबर रखनेवाला है." [पवित्र कुरान, अल-हुजुरात: ४९:१३]

कुरान की एक और आयत में है:
" يا أيها الناس اتقوا ربكم الذي خلقكم من نفس واحدة وخلق منها زوجها وبث منهما رجالا كثيرا ونساء واتقوا الله الذي تساءلون به والأرحام إن الله كان عليكم رقيبا. " (النساء:1)
"ऐ लोगो! अपने रब का डर रखो, जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी जाती का उसके लिए जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत-से परुष और स्त्रियाँ फैला दीं, अल्लाह का डर रखो, जिसकी दुहाई देकर तुम एक-दूसरे के सामने अपनी माँगें रखते हो, और नाते-रिश्तों का भी तुम्हें ख्याल रखना है, निश्चय ही अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है."[पवित्र कुरान, अन-निसा: 4:१]

म) और आम लोगों के बीच या दोविरोधी पक्षों के बीच संबंधोंको सुधारने और सुलह कारने के विषय में पवित्र कुरान का कहना है:
 " وَإِن طَائِفَتَانِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ اقْتَتَلُوا فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا فَإِن بَغَتْ إِحْدَاهُمَا عَلَى الأُخْرَى فَقَاتِلُوا الَّتِي تَبْغِي حَتَّى تَفِيءَ إِلَى أَمْرِ اللَّهِ فَإِن فَاءَتْ فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا بِالْعَدْلِ وَأَقْسِطُوا إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ "
" إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ فَأَصْلِحُوا بَيْنَ أَخَوَيْكُمْ وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ. " (الحجرات:9-10).
"यदि मोमिनों में से दो गिरोह आपस में लड़ पड़ें तो उनके बीच सुलह करा दो, फिर यदि उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज़यादती करे तो जो गिरोह ज़यादती कर रहा हो उससे लड़ो यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए, फिर यदि वह पलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, और इन्साफ़ करो, निश्चय ही अल्लाह इन्साफ़ करनेवालों को पसन्द करता है."
"मोमिन तो भाई-भाई ही हैं अतः अपने दो भाइयों के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए."[पवित्र कुरान, अल-हुजुरात: 49:9-10].

य)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने स्पष्ट बालक थे जो बेदाग और पवित्र मरियम की कोख से जन्म लिये थे और उनका जन्म वास्तव में एक चमत्कार थाऔरपवित्रमरियम संसार में सब से अच्छी-शांति हो उन पर-ही वह पैगंबर थे जिनके विषय में तौरात (ओल्ड टेस्टामेंट) मेंभविष्यवाणी की जा चुकी थी. और यह भी बताया कि सर्वशक्तिमान ईश्वर की अनुमति से हज़रत ईसा मसीह -शांति हो उन पर-कई चमत्कार दिखाते थे, वह कोढ़ियोंअंधों को बिल्कुल ठीक करदेते थे, यहां तक कि वह मरे हुए आदमी को जीवन में वापस लाते थेऔर साथ ही यह भी स्पष्ट करदिया कि वह मरे नहीं बल्कि सर्वशक्तिमान भगवान ने उनको अपनी ओर उठा लिया, हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने यह भी भविष्यवाणी की कि हज़रत ईसा मसीह -शांति हो उन पर-बुराई को ख्त्म करने के लिए भविष्य में फिर से वापस धरती पर उतरेंगे, और अपने ह्क़ से वंचितलोगों की सहायता करेंगे, सच्चे विश्वासियों का साथ देंगे, बुराई और दुष्ट को  सच्चे विश्वासियों को विजय दिलाऐंगेऔर विरोधी मसीह को नष्ट कर देंगे.

र) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-नेकिसी कि भी हत्या से मना किया जबकि उनके अनुयायियों को दिनदहाड़ेसब के सामने मारा जाता थायहाँ तक कि बदले की कार्रवाई के लिए अल्लाह की ओर से आदेश आया. लेकिन उसमें भी बहुत सारी सीमाएं स्पष्ट की गई, और केवल उन लोगों से लड़ने की अनुमति दी गई जो इस्लाम और मुसलमानों के विरुद्ध थे और उनके खिलाफ यद्ध करते थे, और फिर भी बहुत सख्त नियमों के अनुसारऔर उसी सीमा में रहकर जो अल्लाह की ओर से रखे गए.

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