Tuesday, April 26, 2011

मुहम्‍मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके कुछ सदव्यवहार, स्वभाव और गुण-विशेषण mohammad

पैग़म्बर सदव्यवहार( पहला भाग)
1. परिपूर्ण बुद्धिःपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम परिपूर्णबुद्धिमानता की उस चरम सीमा पर पहुंचे हुए थे जहाँ आप के सिवा कोई मनुष्य नहीं पहुंचा है। क़ाज़ी अयाज़ कहते हैं: "परिपूर्ण बुद्धि और उस की विभिन्न शाखाओं  में पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का सर्वश्रेष्ट स्थान उस आदमी के निकटनिशिचत रूप से सिद्ध और साबित है जो आप के हालात और समाचार के धारे तथा आप  के स्वभाव की निरंतरता और व्यवहार कुशलता को खोजता और टटोलता है,आप के जवामिउल-कलिम(संक्षिप्त परन्तु अर्थपूर्ण व्यापक कथन), आप के शिष्टाचार की सुंदरता, आपके अनुपमजीवन चरित्र् और आप की बुद्धिमत्ता की बातों का अध्ययन करता है,तथा   तौरात, इन्जील औरअन्य उतरी हुई आसमानी किताबों में मौजूद बातों, बुद्धिमानों के कथनों, पिछली क़ौमों(समुदायों) के हालात एंव समाचार, कहावतों  (लोकोत्तियों)और लोक राजनीतियों के विषय मेंआप के ज्ञान और जानकारी से अवगत होता है, तथा आप का संविधान रचना एंव संचालन, उत्तमशिष्टाचार और सराहने योग्य स्वभाव एंव व्यवहार की स्थापना करना, तथा इनकेअतिरिक्त अनेक प्रकार के शास्त्र् एंव विज्ञान (से अवज्ञत होता है) जिनके विषयमें पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के कथन, उनके ज्ञानियों ने अपना आदर्श औरआप के संकेतों को हुज्जत (तर्क) बनाया है, जैसे- ख़ाब की ताबीर (स्वपनफल), तिब(आयुर्वेद), हिसाब (गणित शास्त्र्), विरासत (मुरदे की जायदाद को बांटने का शास्त्र् )औरनसब (वंशावली शास्त्र् )इत्यादि.... इन समस्त चीज़ों की जानकारी आप को बिना शिक्षाऔर पढ़ाई के प्राप्त थी। इसके लिए आप ने कहीं शिक्षा प्राप्त नहीं की, और न आप नेपिछले लोगों की किताबों का पाठ किया और न ही आप उनके ज्ञानियों और विद्वानों के पासबैठे, बल्कि आप एक अनपढ़ (निरक्षर) ईश्दूत थे (पढ़ना लिखना जानते ही न थे) । आप को इनमें से किसी भी चीज़ का ज्ञान नहीं था यहाँ तक कि अल्लाह तआला ने आप के सीने को खोलदिया, आप के मामले को स्पष्ट कर दिया, आप को सिखाया और पढ़ाया। (अशिशफाबि-तारीफि हुक़ूकि़ल-मुस्त्फा १/८५)

२. एहतिसाब (अथार्त किसी भी काम का बदला अल्लाहतआला से चाहना):पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जो भी काम करते थे उसका बदलाकेवल अल्लाह तआला से चाहते थे और इस मैदान में आप सब के नायक थे। आप को अपनी दावतके फैलाने के मार्ग में बहुत कष्ट और कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, किन्तु आप ने धैर्य के साथ और अल्लाह की ओर से अज्र व सवाब और बदले की उम्मीद रखते हुए सब कुछसहन कर लिया। अब्दुल्लाह बिन मस`ऊद रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: गोया मैं पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख रहा हूँ कि आप एक ईश्दूत का बयान कर रहे थे जिन्हेंउनकी क़ौम ने मारा-पीटा था और वह अपने चेहरे से खून पोंछते हुए कह रहे थेः "ऎअल्लाह! मेरी क़ौम को क्षमा कर दे क्योंकि वह नहीं जानती"। (सहीह बुख़ारी व सहीहमुस्लिम)
जुन्दुब बिन सुफ्यान कहते हैं: एक लड़ाई के दौरान पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम की अंगुली घायल हो गई तो आप ने फरमायाः॑॑ "तू एक अंगुली है जो घायल होगई है, जो तकलीफ तुझे पहुंची है वह अल्लाह के रास्ते में है।" (सहीह बुख़ारी व सहीहमुस्लिम)
३. इखलास (निःस्वाथर्रता): (अथार्त कोई भी काम केवल अल्लाह तआला की प्रसन्नताप्राप्त करने के लिए करना) पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने तमाम कामों औरमामलों में मुख़्शलस –निःस्वार्थ - थे, जैसाकि अल्लाह तआला ने आपको इसका आदेश देतेहुये फरमायाः

"आप कह दीजियेकि निःसंदेह मेरी नमाज़ और मेरी समस्त उपासना (इबादत) और मेरा जीना और मेरा मरनायेसब केवल अल्लाह ही के लिए है जो सारे संसार का पालनहार है। उसका कोई साझी नहीं औरमुझे इसी का आदेश हुआ है और मैं सब मानने वालों में से पहला हूँ।" (सूरतुल-अनआमः१६२-१६३)

. सद्दव्यवहार -खुश अख्लाक़ी-और सामाजिकताःआप की पत्नी आइाशा रजि़यल्लाहुअन्हा से जब आप के आचार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहाः "क़ुरआन करीम हीआप का आचार-अख्लाक़-था।" (मुसनद अहमद)
इस का अर्थ यह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम क़ुरआन करीम के आदेशशों का पालन करने वाले और उसकी मना की हुई(निषिद्धि) चीज़ों से बचने वाले थे। उसके अंदर जिन विशेषताओं और गुणों का उल्लेखकिया गया है उनको अपनाने वाले और अपने आप को उनके अनुसार ढालने वाले थे। जिनज़ाहिरी या बातिनी (प्रत्यक्ष या परोक्ष) बुराईयों से क़ुरआन ने रोका है उन्हेंत्यागने वाले थे।
और इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि आप का ही यह फर्मानहैः
"अल्लाह तआला ने मुझे उत्ताम अख़्लाक़ और अच्छे कामों की तकमील (परिपूर्ण) करनेके लिए भेजा है।" (अदबुल-मुफरद लिल-बुख़ारी, मुसनद अहम)
अल्लाह तआला ने कु़रआन मेंअपने इस कथन के द्वारा आप की विशेषता का वर्णन किया हैः

"निःसंदेह आप महान अख़्लाक़ पर हैं।(सूरतुल-क़लम :४)                      अनस बिन मालिक -जिन्हों ने दस साल तक रात व दिन और यात्रा व निवासमें आपकी सेवा की और उसके दौरान आपके अहवाल का ज्ञान प्राप्त किया- कहते हैं:अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों में सब से उत्ताम अख़्लाक़ केमालिक थे। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
तथा वह कहते हैं: "पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम न गाली बकते थे, न फक्कड़ बाज़ी करते थे और न शाप देते थे। अगर आपकिसी को डांट फटकार करते थे तो केवल इतना कहते थेः उसे क्या हो गया है?  उसकीपेशनी खाक आलूद हो ! (मटटी में सने)।" (सहीह बुख़ारी)
५. अदब व सलीक़ा(सभ्यता औरशिष्टता): सहल बिन सअद रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम के पास पीने वाली कोई चीज़ लाई गई जिस में से आप ने पिया। आपके दाहिनेओर एक बच्चा और आपके बायें ओर बड़े-बड़े लोग थे, आप ने बच्चे से कहाः "क्या तुममुझे यह इजाज़त देते हो कि यह पीने वाली चीज़ इन लोगों को दे दूँ"?बच्चे ने कहाःअल्लाह की क़सम मैं आपसे मिलने वाले अपने हिस्से पर किसी को प्राथमिकता नहीं देसकता। सहाबी कहते हैं:चुनाँचे आप ने उस चीज़ को उस बच्चे के हाथ में रख दिया। (सहीहबुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
६. सुलह पसंदी(संधि प्रियता) : आप सुधार और संधि प्रिय थे, सहल बिन सअद कहते हैं: क़ुबा वालों ने आपस में लड़ाई-झगड़ा किया यहाँ तक कि एकदूसरे पर पत्थर बाज़ी किये, जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इसकी सूचनामिली तो आप ने फरमायाः"चलो चलकर हम उनके बीच समझौता सुलह-करा दें।"(सहीहबुख़ारी)
७. भलाई का आदेशश देना और बुराई से रोकनाः अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजि़यल्लाहुअन्हुमा बयान करते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक आदमी के हाथमें सोने की एक अंगूठी देखी तो उसे निकाल कर फेंक दिया और फरमायाः "तुम में से कोईव्यक्ति आग का अंगारा ले कर अपने हाथ में डाल लेता है!"जब पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम चले गये तो उस आदमी से कहा गया कि अपनी अंगूठी ले लो और उस से लाभउठाओ। उसने कहाः नहीं, अल्लाह की क़सम! जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नेउसे फेंक दिया तो मैं उसे कभी भी नहीं उठा सकता। (सहीह मुस्लिम)
८. पवित्र्ता और सफाईपसंदीःआप बहुत पवित्रता और स्वच्छता प्रिय थे, मुहाजिर बिन क़ुनफुज़ बयान करतेहैं कि वह पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आये इस हाल में कि आप पेाशबकर रहे थे। उन्हों ने आप को सलाम किया तो आप ने उसका जवाब नहीं दिया यहाँ तक कि आपने वुज़ू कर लिया, फिर आप ने उनसे क्षमा याचना करते हुए कहा : "मैं ने बिना पाकीके अल्लाह तआला का जि़क्र स्मरण करना पसंद नहीं किया।" (सुनन अबूदाऊद)
९. ज़ुबान कीसुरक्षाःअब्दुल्लाह बिन अबी औफा बयान करते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह का अधिक जि़क्र करते थे, निरर्थक और बेकार बात नहीं करते थे, नमाज़लम्बी करते थे और ख़ुत्बा छोटा, और किसी विधवा या मिस्कीन के साथ चलकर उसकी आवश्यकतापूरी करने में कोई घृणा नहीं करते थे। (सुनन नसाई)
१. अधिक उपासनाःआइशा रजि़यल्लाहुअन्हा कहती हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम रात को जाग कर नमाज़ पढ़ते थेयहाँ तक कि आपके दोनों पाँव फट जाते थे। {एक रिवायत के शब्द यह हैं कि : यहाँ तक किआप के पाँव फूल जाते थे।} इस पर आइाशा रजि़यल्लाहु अन्हा ने आप से पूछाः ऎ अल्लाह केपैग़म्बर! आप ऎसा क्यों करते हैं? जबकि अल्लाह तआला ने आप के अगले और पिछले गुनाहमाफ कर दिये हैं। आप ने फरमायाः "क्या मैं अल्लाह का शुक्र गुज़ार बन्दा नबनूँ?"(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
११. नम्रता और नर्म दिलीः अबू-हुरैरहरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: तुफैल बिन अम्र दौसी और उनके साथी पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आए और उन्हों ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर!क़बीला दौस वालों ने अवहेलना और इन्कार किया है, आप उन पर बद`-दुआ (शाप) कर दीजिए। इसपर कहा गया कि दौस क़बीला का अब सर्वनाश हुआ। तो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम ने कहाः "ऎ अल्लाह! तू दौस वालों को हिदायत (मार्ग दर्शन) प्रदान कर औरउन्हें लेकर आ।"(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
१२. अच्छी वेशभृषा:बरा बिन आजि़बरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आकार दरमियानाथा, दोनों कंधों के बीच दूरी थी, बाल दोनों कानों की लुरकी तक पहुंचते थे। मैं नेआप को एक लाल जोड़ा पहने हुए देखा। मैं ने आप से अधिक सुंदर कभी कोई चीज़ नहींदेखी। (सहीह बुख़ारी वसहीह मुस्लिम)
१३. दुनिया से बे-रग़बती (अरूचि): अब्दुल्लाह बिनमसऊद रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक चटाई परसोए थे, आप उठे तो आप के पहलू में उसके निशानात थे, इस पर हम ने कहाः ऎ अल्लाह केपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या हम आप के लिए एक बिस्तर की व्यवस्था न करदें? आप ने फरमायाः"मुझे दुनिया से क्या लेना देनामैं तो दुनिया में उस सवारके समान हूँ जिसने एक पेड़ के नीचे विश्राम किया फिर उसे छोड़ कर चला गया।"(सुनन-र्तिमिज़ी)
अम्र बिन हारिस रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम ने अपनी वफात के समय न कोई दिरहम छोड़ा न दीनार, न कोई ग़ुलाम छोड़ान कोई लौण्डी। आप ने केवल अपना सफेद खच्चर, हथियार और एक टुकड़ा ज़मीन छोड़ा जिसेआप ने ख़ैरात कर दिया। (सहीह बुख़ारी)
१४. ईसार (स्वार्थ त्याग):अथार्त अपने ऊपर  दूसरे को प्राथमिकता देना। सहल बिन सअद बयान करते हैं किः एक महिला एक बुर्दा (चादर) लेकरआई। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा से कहाः "क्या तुम जानते हो किबुर्दाक्या है?" आप से कहा गयाः जी हाँ, ये वह चादर होती है जिसके किनारे बेलबूटे बने होते हैं। उस महिला ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! मैं ने इसे आप कोपहनाने के लिए अपने हाथ से बुना है। चुनाँचे पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने उसे ले लिया, आप को इसकी आवश्यकता थी। कुछ देर बाद आप उसे पहने हुए हमारे पास आएतो क़ौम के एक आदमी ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! यह मुझे पहनने के लिए दे दीजिये।आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "ठीक है।" इसके बाद कुछ देर आप मज्लिसमें बैठे रहे, फिर घर वापस गए, चादर को लपेटा और उसे उस आदमी के पास भिजवा दिया।क़ौम के लोगों ने उस से कहाः तुम ने चादर माँग कर अच्छा नहीं किया, जबकि तुम अच्छीतरह जानते हो कि आप किसी साइल मांगने वाले को खाली हाथ नहीं लौटाते हैं। उस आदमी नेकहाः अल्लाह की क़सम! मैं ने इसे केवल इस लिए माँगा है ताकि यह मेरे मरने के दिनमेरा कफन बन जाए। सहल कहते हैं, चुनाँचे वह चादर उनकी कफन बनी थी। (सहीह बुख़ारी)
१५.ईमान की शक्ति और अल्लाह पर भरोसाःअबू-बक्र सिददिक रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करतेहैं: जब हम ग़ार (सौर नामी गुफा) में छुपे थे तो मैं ने मुशरिकों के पाँवों को अपनेसिर के पास देखा और मैं बोल पड़ाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! अगर उन में से कोई आदमीअपने पाँव की तरफ निगाह करे तो हमें अपने पाँव के नीचे देख लेगा। इस पर आप नेफरमायाः "ऎ अबू-बक्र ऎसे दो आदमियों के बारे में तुम्हारा क्या विचार है जिनकातीसरा अल्लाह है।"(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)

(दूसरा भाग)
१६. कृपा और सहानुभूति (शफक़त और रहम दिली) : अबू-क़तादा रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैं: अल्लाह के पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबुल-आस की बेटी उमामा को अपने कंधे पर उठाए हुए हमारेपास आए और नमाज़ पढ़ाई, जब आप रुकूअ में जाते तो उन्हें नीचे उतार देते और जब रुकूअसे उठते तो उन्हें दोबारा उठा लेते। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
१७. सरलता औरआसानीःअनस रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं कि:  पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमनेफरमायाः
"मैं नमाज़ शुरू करता हूँ और मेरा इरादा नमाज़ को लम्बी करने का होता हैलेकिन मैं बच्चे के रोने की आवाज़ सुन कर अपनी नमाज़ हल्की कर देता हूँक्योंकिमैं जानता हूँ कि उसके रोने से उसकी माँ को कितनी परेशानी होगी।"(सहीह बुख़ारी वमुस्लिम)
१८. अल्लाह का डर और परहेज़गारी (संयम): अबू हुरैरह रजि़यल्लाहु अन्हु बयानकरते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "कभी-कभार मैं अपनेघर वापस लौटता हूँ तो अपने बिछौने पर खजूर पड़ा हुआ पाता हूँमैं उसे खाने के लिएउठा लेता हूँ,फिर मैं डरता हूँ कि कहीं यह सदक़ा (ख़ैरात) का न हो। यह सोचकर मैंउसे रख देता हूँ।"(सहीह बुख़ारी वसहीह मुस्लिम)
१९. उदारता के साथ खर्च करनाःअनसबिन मालिक रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैं किः इस्लाम लाने पर पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जो कुछ भी मांगा गया, आप ने उसे प्रदान कर दिया। वहकहते हैं: चुनांचे एक आदमी आप के पास आया तो आप ने उसे दो पहाड़ों के बीच चरने वालीबकरियों का रेवड़ प्रदान कर दिया। वह अपनी क़ौम के पास वापस लौट कर गया तो कहाः ऎक़ौम के लोगो! इस्लाम ले आओ; क्योंकि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इतनी बख्शिश(अनुदान) देते हैं कि फाक़ा का कोई डर नहीं होता है। (सहीह मुस्लिम)
२०. आपसी सहयोग एंवसहायताप्रियताः आइाशा रजि़यल्लाहु अन्हा से जब यह पूछा गया कि पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने घर  में क्या किया करते थे? तो उन्हों ने कहाःअपने परिवार की सेवा-सहयोग में लगे रहते थे, और जब नमाज़ का समय हो जाता तो नमाज़के लिए निकल पड़ते थे। (सहीहबुख़ारी)
बरा बिन आजि़ब रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैंने ख़न्दक़ के दिन पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखा कि आप मट्टी ढो रहेथे यहाँ तक कि मट्टी से आपके सीने के बाल ढँक गये, और आप के बाल बहुत अधिक थे, इसीहालत में आप अब्दुल्लाह बिन रवाहा के यह रज्ज़ (अथार्त लड़ाई में पढ़ी जाने वाली छंद) पढ़ रहे थेः
ऎ अल्लाह! अगर तू न होता तो हम हिदायत (मार्ग दशर्न) न पाते।
न सदक़ा(ख़ैरात) करतेन नमाज़ पढ़ते।
अतः हम पर सकीनत (शशंति )नाजि़ल कर।
और यदि हमारी मुठभेड़हो तो हमारे पाँव जमा दे।दुश्मनों ने हम पर अत्याचार किया है।
अगर वह हमें फितने मेंडालना चाहेंगे तो हम इसका विरोध करेंगे।
बरा रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं कि आपइन्हें ज़ोर- ज़ोर से पढ़ते थे। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
२१. सच्चाईः   पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पत्नी आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा आप के बारें में कहतीहैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नज़दीक झूठ से सर्वाधिक नापसंदीदा( घृणास्पद) कोई और आदत नहीं थी। एक आदमी अल्लाह के पैग़म्बर के पास झूठ बोलता था तोआप उसकी वह बात अपने दिल में लिए रहते थे यहाँ तक कि आप को यह पता न चल जाए कि उसनेउस से तौबा कर ली है। (सुनन र्तिमिज़ी)
आप के दुश्मनों तक ने भी आप की सच्चाई की गवाहीदी है। यह अबू-जहल है जो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सब से कट्टर दुश्मनोंमें से था, उस ने एक दिन आप से कहाः ऎ मुहम्मद! मैं आप को झूठा नहीं कहता, किन्तुआप जो कुछ लेकर आए हैं और जिस की दावत देते हैं, मैं उस का इन्कार करता हूँ। इस परअल्लाह तआला ने यह आयत उतारीः


"हमअच्छी तरह जानते हैं कि जो कुछ यह कहते हैं इससे आप दुखी होत हैं। सो यह लोग आप कोनहीं झुठलातेलेकिन यह ज़ालिम लोग तो अल्लाह की आयतों का इन्कार करते हैं।"(सूरतुल-अनआमः ३३)
२२. अल्लाह की हुर्मतों (धर्म-निषिद्ध चीज़ों) का सम्मान :आइशारजि़यल्लाहु अन्हा बयान करती हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जब भी दोकामों के बीच चयन करने का अवसर दिया जाता तो आप वही काम चयन करते जो आसान हो, जब तककि वह गुनाह का काम न होता। अगर वह गुनाह का काम होता तो आप उस से अति अधिक दूररहते। अल्लाह की क़सम आप ने कभी अपने नफस (स्वार्थ) के लिए बदला नहीं लिया, किन्तुअगर अल्लाह की हुर्मतों को पामाल किया जाता था तो आप अल्लाह के लिए अवश्य बदलालेते थे। (सहीह बुख़ारी वसहीह मुस्लिम)
२३. प्रफुल्लता (हंसमुख चेहरा):अब्दुल्लाह     बिनहारिस               रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सेअधिक तबस्सुम करने (मुसकुराने) वाला किसी को नहीं देखा। (सुनन र्तिमिज़ी)
२४. अमानत दारी और प्रतिज्ञा पालनःपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अमानत दारी अपनीमिसाल आप (अनुपम) थी। ये मक्का वाले जिन्हों ने उस समय जब आप ने अपनी दावत का एलानकिया, आप से दुश्मनी का बेड़ा उठा लिया और आप पर और आप के मानने वालों पर अत्याचारकिया। इनके और पैग़म्गर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बीच इतनी दुश्मनी के बावजूद भीअपनी अमानतें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास ही रखते थे। यह अमानत दारी उससमय अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई जब इन्हीं मक्का वालों ने आप को हर प्रकार का कष्टसहने के बाद मदीना की ओर हिज्रत करने पर विवश (मजबूर) कर दिया तो आपने अपने चचेरेभाई अली बिन अबू-तालिब रजि़यल्लाहु अन्हु को यह आदेशश  दिया कि वह तीन दिन के लिएअपनी हिज्रत स्थगित कर दें ताकि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास (मक्कावालों की) जो अमानतें थीं, उन्हें उनके मालिकों को वापस लौटा दें। (सीरतइब्ने-हिशाम३/११)
इसी प्रकार पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के प्रतिज्ञा पालन का एक दर्शन(प्रतीति) यह है कि जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सुहैल बिन अम्र सेहुदैबिया के दिन संधि की अवधि (मुद्दत) पर समझौता कर लिया और सुहैल बिन अम्र ने जोशर्तें लगाई थीं उन में एक शर्त यह भी थी कि उसने कहाः हम में से जो भी आदमी - चाहेवह आप के दीन ही पर क्यों न हो - आपके पास जाता है तो आप उसे वापस कर देंगे और उसेहमारे हवाले कर देंगे।और इस शर्त के बिना सुहैल ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुलह करने से इन्कार कर दिया तो मोमिनों ने इसे नापसंद किया और क्रोधप्रकट किया। चुनांचे उन्हों ने इसके बारे में बात चीत की। फिर जब सुहैल ने इस शर्तके बिना पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सुलह करने से इन्कार कर दिया तो आप ने इस पर सुलह कर ली। अभी सुलह नामा लिखा ही जा रहा था कि सुहैल बिन अम्र के बेटेअबू-जन्दल बेडि़यों में जकड़े हुए आ गए। वह मक्का के निचले हिस्से से निकल कर आएथे। उन्हों ने अपने आप को मुसलमानों के बीच डाल दिया। यह देख कर अबू-जन्दल के बापसुहैल ने कहाः ऎ मुहम्मद! यह पहला व्यक्ति है जिस के बारे में मैं आप से मामला करताहूँ कि आप इसे वापस कर दें। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः "इसकोमेरे लिए छोड़दो।" उसने कहाः मैं इसे आप के लिए नहीं छोड़ सकता। पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः "नहींइतना तोकर ही दो"। उसने कहाः मैं ऎसानहीं कर सकता। अबु-जन्दल को इसका एहसास हो गया, तो उन्हों ने मुसलमानों को उकसाते(जोश दिलाते) हुए कहाः "मुसलमानो! क्या मैं मुशरिकों की ओर वापस कर दिया जाऊँगाहालांकि मैं मुसलमान होकर आया हूँ? क्या तुम मेरी परेाशनी नहीं देख रहे हो?"उन्हें अल्लाह के रास्ते में बहुत अधिक कष्ट दिया गया था।
चुनाँचे    पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने प्रतिज्ञा का पालन करते हुए उन्हें सुहैल बिन अम्रकी ओर वापस कर दिया। (सहीह बुख़ारी)
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम नेअबू-जन्दल से फरमायाः "अबू-जन्दल! धीरज से काम लो और इस पर अल्लाह से पुण्य (अज्र वसवाब) की आशा रखो। अल्लाह तुम्हारे लिए और तुम्हारे साथ जो अन्य कमज़ोर मुसलमान हैंउन सब के लिए कुाशदगी (आसानी) और कोई रास्ता अवश्य पैदा करेगा। हम ने इन लोगों से सुलहकर ली है और हमारे और इनके बीच अह्ह्द व पैमान (प्रतिज्ञा) लागू हो चुका है और हमप्रतिज्ञा भंग (अहद शिकनी) नहीं कर सकते।" (मुसनद अहमद)
फिर पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम मदीना वापस तश् रीफ़ ले आए, तो  क़ुरैश का अबू-बसीर नामी एक आदमी मुसलमानहो कर आ गया, तो क़ुरैश ने उसको वापस लेने के लिए दो आदमियों को भेजा, उन्हों नेकहाः आप ने हम से जो वादा कियाथा उसको पूरा कीजिये। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबू-बसीर को उन दोनों आदमियों के हवाले कर दिया।
२५. वीरता और बहादुरीःअलीरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं ने बद्र के दिन देखा है कि हम  पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का आड़ लेते थे, और हमारे बीच आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बढ़ कर दुश्मन के क़रीब कोई नहीं था। उस दिन आप सब से अधिक बलवान औरशक्तिाशली थे। (मुसनदअहमद) लड़ाई के मैदान से बाहर आप की बहादुरी और दिलेरी के बारेमें अनस बिन मालिक रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों में सब से अच्छे और सब से बड़े वीर-बहादुर थे। एक रात मदीना वालेघबराहट और दहशत के शिकार हो गए और आवाज़ (शोर) की ओर   निकले, तो पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें रास्ते में वापस आते हुए मिले। आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम लोगों से पहले ही आवाज़ की ओर पहुंच कर यह निरीक्षण कर चुके थे किकोई खतरा नहीं है। उस समय आप अबू-तलहा के बिना ज़ीन के घोड़े पर सवार थे औरगदर्न में तलवार लटकाए हुए थे, और कह रहे थेः "डरो नहींडरो नहीं।"
फिर आप नेकहाः "हम ने इस (घोड़े) को समुद्र पाया", या आप ने यह कहा कि : "यह (घोड़ा) समुद्रहै।"(सहीह बुख़ारी व सहीहमुस्लिम)
मदीना वाले आवाज़ का शोर सुनकर घबराहट के आलममें हक़ीक़त का पता लगाने के लिए बाहर निकलते हैं, तो रास्ते में पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अकेले आवाज़ की ओर से वापस लौटते हुए मिलते हैं। आपउन्हें इतमिनान दिलाते हैं। आप एक ऎसे घोड़े पर सवार हैं जिसकी ज़ीन नहीं कसी गईथी; क्योंकि स्थिति का तक़ाज़ा था कि जल्दी की जाए। आप अपनी तलवार लटकाए हुए थे; क्योंकि उसके इस्तेमाल की आवश्यकता पड़ सकती थी। और आप ने उन्हें बताया कि आपके पासजो घोड़ा था वह समुद्र अर्थात बहुत तेज़ था, इसलिए आप ने मामले का पता लगाने के लिएअपने साथ लोगों के निकलने की प्रतीक्षा नहीं की।
उहुद की लड़ाई में   पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम से परामशर्र (सलाह-माशवरा) किया तोउन्हों ने लड़ाई करने की सलाह दी, और स्वयं पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमकी राय दूसरी थी, किन्तु आप ने उनके मशवरा को स्वीकार कर लिया। लेकिन बाद मेंसहाबा को इस पर पछतावा हुआ क्योंकि आप की चाहत दूसरी थी। अन्सार ने (आपस में) कहा हमने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की राय को ठुकरा दिया। चुनाँचे वह लोग आपके पास आए और कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! आप को जो पसंद हो वही कीजिए, उस समय आप नेफरमायाः "कोई नबी जब अपना हथियार पहन ले तो मुनासिब नहीं कि उसे उतारे यहाँ तक किवह लड़ाई न कर ले।"(मुसनद अहमद)
२६. दानाशीलता और सखावतःइब्ने अब्बास रजि़यल्लाहुअन्हुमा कहते हैं: अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों में सब सेबढ़ कर सखावत का दरिया -अति दानी-थे, और आपकी सखावत का दरिया रमज़ान में उस समय सबसे अधिक उफान पर होता था जब जिब्रील आप से मुलाक़ात करते थे, और जिब्रील आप सेरमज़ान की हर रात में मुलाक़ात करते थे और क़ुरआन का दौर कराते थे, उस समयपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम खैर की सखावत में तेज़ हवा से भी आगे होत थे।(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
अबू-ज़र रजि़यल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: मैं मदीना केहर्रा (काले रंग की पथरेली ज़मीन) में चल रहा था कि हम उहुद पहाड़ के सामने आगए, तो आपसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहाः "ऎअबू-ज़र"! मैं ने कहाः मैं हाजि़र हूँ ऎअल्लाह के पैग़म्बर! आप ने फरमायाः "मुझे यह पसंद नहीं है कि उहुद पहाड़ मेरे लिएसोना बन जाए और एक या तीन रात बीत जाए और उस में से मेरे पास एक दीनार भी बाक़ी रहजाए, सिवाए इसके कि मैं उसे क़र्ज के लिए रख लूँ, सिवाए इसके कि मैं उसे अपनेदायें, बायें और पीछे अल्लाह के बन्दों में बांट दूँ।" (सहीह बुख़ारी)
जाबिर बिनअब्दुल्लाह रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं कि : ऎसा कभी न हुआ कि आप सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम से कोई चीज़ मांगी गई हो और आप ने नहीं कह दिया हो।
(सहीहबुख़ारी व सहीह मुस्लिम)

२७. हया शर्मःअबू सईद ख़ुदरी रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर्दे में रहने वाली कुंवारी औरत से भी अधिक हयादार( शर्मीले )थे, अगर आप कोई अप्रिय (नापसंदीदा) चीज़ देखते तो हमें आपके चेहरे से उसकापता चल जाता। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
२८. आजिज़ी व ख़ाकसारी (नम्रता व विनीति): पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम लोगों में सब से बढ़ कर ख़ाकसार (विनीत) थे। आपकी ख़ाकसारी और इनकिसारी का यह हाल था कि मस्जिद में दाखि़ल होने वाला आप को आपकेसाथियों के बीच पहचान नहीं पाता था। अनस बिन मालिक रजि़यल्लाहु अन्हु बयान करते हैंकि एक बार हम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ मस्जिद में बैठे थे कि एकआदमी अपने ऊँट पर सवार अंदर प्रवेश किया और उसे मस्जिद में बैठा कर बाँध दिया, फिरउन लोगों से कहाः तुम में से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कौन हैं? उस समयपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उनके बीच टेक लगाए हुए बैठे थे। तो हम ने कहाःयह टेक लगाए हुए गोरा आदमी..।" (सहीह बुख़ारी)
इसलिए कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने साथियों और अपने पास बैठने वालों से मुम्ताज़ और अलग-थलग होकर नहींबैठते थे।
पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मिसकीन, कमज़ोर और ज़रूरतमन्द केसाथ जाकर उनकी ज़रूरतों को पूरी करने से उपेक्षा (घुणा) नहीं करते थे, अनस बिन मालिकरजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मदीना की एक औरत जिसकी बुद्धि बराबर नहीं थी, उसनेकहाः ऎ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! आप से मेरी एक ज़रूरत है, आप नेकहाः "ऎ फलाँ की माँ ! तू जिस गली में चाहे मैं चल कर तेरी ज़रूरत पूरी करने केलिए तैयार हूँ।"चुनाँचे आप उसके साथ किसी गली रास्ते में एकांत में मिले यहाँ  तक कि वह अपनी ज़रूरत से फ़ारिग़ हो गई। (सहीह मुस्लिम)

हज़रत पैग़म्बर सदव्यवहार (तीसरा भाग)
२९. कृपा व दया (रहमत व शफक़त): अबू-मस`ऊद अन्सारी रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: एक आदमी पैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम के पास आया और कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! अल्लाह की क़सम मैं फलाँके कारण फज्र की नमाज़ से पीछे रह जाता हँ क्यांकि वह हमें लम्बी नमाज़ पढ़ाताहै। रावी अबू-मसऊद कहते हैं: जितना आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उस दिन नाराज़हुए उस से बढ़ कर मैं ने आप को नसीहत के अंदर कभी नाराज़ होते हुए नहीं देखा, फिरआप ने फरमायाः "ऎ लोगो! तुम में से कुछ लोग नफरत घृणा- पैदा करने वाले हैंतुममें से जो भी लोगों को नमाज़ पढ़ाए वह हल्की नमाज़ पढ़ाएक्योंकि उनमें बूढ़ेकमज़ोर और ज़रूरतमन्द लोग भी होते हैं।"(सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
उसामा बिनज़ैद बयान करते हैं: हम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ बैठे थे कि आपके पास आप की किसी बेटी का क़ासिद आया कि वह आप को अपने बेटे को देखने के लिए बुलारही हैं जो जांकनी की हालत में है। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस आदमीसे कहाः
"वापस जाकर उन्हें बतला दो कि जो कुछ अल्लाह ने ले लिया वह निःसंदेहअल्लाह ही का है और जो कुछ उसने प्रदान किया है वह भी उसी का ही है, और हर चीज़ काउसके पास एक निशिचत समय है। इसलिए उनसे कहो कि वह सब्र करें और अल्लाह से अज्र वसवाब की आशा रखें।"
आप की बेटी ने क़ासिद को यह कह कर दोबारा भेजा कि उन्हों नेक़सम खा लिया है कि आप अवश्य उनके पास आयें। इस पर पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उठ खड़े हुए और सअद बिन उबादा और मुआज़ बिन जबल भी आप के साथ हो लिए। बच्चेको आप के सामने पेश किया गया, उसकी साँस ज़ोर- ज़ोर से चल रही थी गोया वह पुरानेमाकीज़े में है। यह देख कर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आँखों से आँसू जारी होगए। सअद ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर ! यह क्या है? आप ने फरमायाः "यह वह दया औररहमत है जिसे अल्लाह तआला ने अपने बन्दों के दिलों में डाल दिया है, और अल्लाह तआलाअपने बन्दों में से दया व मेहरबानी करने वालों पर दया करता है। (सहीह बुख़ारी वसहीह मुस्लिम)

३०. बुर्दबारी (सहनशीलता) और क्षमाः अनस बिन मालिक कहते हैं: मैं पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ चल रहा था और उस समय आप एक मोटी किनारीवाली नजरानी चादर ओढ़े हुए थे कि एक दीहाती आदमी ने उसे पकड़ कर बहुत ज़ोर से खींचायहाँ तक कि मैं ने देखा कि ज़ोर से खींचने के कारण आप की गर्दन पर चादर के निाशनपड़ गये। फिर उसने कहाः हे मुहम्मद, तुम्हारे पास अल्लाह का जो माल है उस में सेमुझे भी कुछ दो। आप ने उसकी ओर मुड़ कर देखा और मुसकुरा दिया। फिर आप ने उसे कुछमाल देने का आदेश दिया। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमकी बुर्दबारी और तहम्मुल की एक अनुपम मिसाल ज़ैद बिन सअना -वह एक यहूदी आलिम था-की हदीस है, उसने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कुछ उधार दिया था जिसकीआप को कुछ मोअल्लफतुल-क़ुलूब यानी नौ-मुस्लिम की ज़रूरतों को निपटाने के लिए आवश्यकतापड़ गई थी। ज़ैद का कहना हैः अभी क़र्ज़ की अदायगी के नियत समय में दो या तीन   दिनबाक़ी थे कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक अन्सारी आदमी के जनाज़ा मेंनिकले, आप के साथ अबू-बक्र, उमर, उसमान और आपके के अन्य सहाबा रजि़यल्लाहु अन्हुमकी एक जमाअत थी। जब आप जनाज़ा पढ़ चुके तो एक दीवार के पास जा कर बैठ गए, तो मैं नेआप की क़मीस का दामन पकड़ लिया और आप को भयानक चेहरे के साथ देखा फिर कहाः हेमुहम्मद! क्या तुम मेरा हक़ (क़र्ज़) नहीं लौटाओ गे? अल्लाह की क़सम! मैं बनूअब्दुल-मुत्तलिब को टालमटोल करने वाला नहीं जानता और मुझे तुम्हारे मेल जोल (मामलेदारी) का पता है। ज़ैद का कहना हैः मैं ने उमर बिन खत्ताब को देखा कि उनकी दोनोंआँखें उनके चेहरे में गोल आसमान की तरह घूम रही हैं, फिर उन्होंने मेरी तरफ निगाह की और कहाः ऎ अल्लाह के दुश्मन! क्या तू अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ऎसी बात कर रहा है जो मैं सुन रहा हूँ और आप के साथ ऎसा व्यवहार कर रहा हैजो मैं देख रहा हूँ? उस ज़ात की क़सम! जिसने आप को हक़ के साथ भेजा है अगर मुझे एकचीज़ के छूट जाने का डर न होता तो मैं अपनी इस तलवार से तेरी गर्दन उड़ा देता।पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुकून व इतमिनान से उमर को देख रहे थे। फिर आपने फरमायाः
"ऎ उमर! हम इस से कहीं अधिक ज़रूरत मंद दूसरी चीज़ के थे कि तुम मुझेअच्छी तरह क़र्ज़ की अदायगी के लिए कहते और उसे अपने हक़ को अच्छी तरह से मांगने काहुक्म देते। ऎ उमर! इसे ले जाओ और इसका क़र्ज़ वापस कर दो और तुम ने जो इसे भयभीतकिया है उसके बदले २० साअऔर अधिक दे दो।"

ज़ैद ने बयान कियाः चुनांचे उमर मुझेलेकर गए और मेरा क़र्ज़ अदा किया और बीस साअ खजूर और अधिक दिया। मैं ने कहाः यहअधिक क्यों दे रहे हैं? उन्हों ने कहाः अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे आदेश दिया है कि मैं ने जो आप को डराया-धमकाया है उसके बदले कुछ अधिकदे दूँ। मैं ने कहाः ऎ उमर! क्या तुम मुझे पहचानते हो? उन्हों ने कहाः नहीं, अच्छाबताओ तुम कौन हो? मैं ने कहाः मैं ज़ैद बिन सअना हूँ। उन्हों ने कहाः वहीयहूदियों का आलिम? मैं ने कहाः हाँ, वही विद्वान। उन्हों ने कहाः तू ने   पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को जो कुछ कहा और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ जो कुछ तुम ने किया तुझे इस पर किस चीज़ ने उभारा? मैं ने कहाः ऎ उमर, मैं नेपैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को देखते ही आप के चेहरे में  नुबुव्वत (ईश्दूतत्व-पैग़म्बरी) की सारी निशानियाँ पहचान लीं, केवल दो निशानियाँ आप के अंदरजांचनी रह गई थीं; उनका तहम्मुल और बुर्दबारी उनकी जहालत से बढ़ कर होगी और उनकेसाथ जितना अधिक जहालत से पेश आया जाएगा वह उतना ही अधिक बुर्दबारी और तहम्मुल सेपेश  आयेंगे। अब मैं ने इन दोनों निशानियों को भी जाँच लिया। ऎ उमर, मैं तुम्हेंगवाह बनाता हूँ कि मैं अल्लाह को अपना रब (पालनहार )मान कर, इस्लाम को अपना धर्म मानकर और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपना ईश्दूत (पैग़म्बर) मान कर प्रसन्न होगया। और मैं तुम्हें गवाह बनाता हूँ कि मेरा आधा धन - और मैं मदीना में सबसे अधिकधनी हूँ- मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उम्मत (समुदाय) पर ख़ैरात है। उमर नेकहाः बल्कि उनमें से कुछ लोगों पर, क्योंकि तुम्हारा धन उन सब के लिए काफी (पयार्प्त)  नहीं होगा। मैं ने कहाः बल्कि उन में से कुछ लोगों पर। फिर उमर और ज़ैद पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास लौट कर आए तो ज़ैद ने कहाः मैं इस बात की गवाहीदेता   हूँ कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई इबादत का योग्य नहीं और मुहम्मद सल्लल्लाहुअलैहि व सल्लम उसके बन्दा (दास) और पैग़म्बर हैं। इस प्रकार वह ईमान ले आया, आप कोसच्चा मान लिया और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ बहुत सी जंगों मेंउपस्थित रहा, फिर तबूक के जंग में आगे बढ़ते हुए शहीद हो गए, अल्लाह तआला ज़ैद     पररहमतों की वर्षा करे। (सहीह इब्ने हिब्बान) पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कीक्षमा और माफी का सब से बड़ा उदाहरण यह है कि जब आप मक्का में विजेता बन कर दाखिलहुए और आप के सामने मक्का के वह लोग पेश हुए जिन्हों ने आपको नाना प्रकार कीतकलीफें (यातनाएं) पहुँचाई थीं और जिनके कारण आपको अपने शहर से निकलना पड़ा था, तोआप ने उस समय जब वह मस्जिद में एकत्र् हुए उनसे कहाः "तुम्हारा क्या ख्याल है मैंतुम्हारे साथ क्या करने वाला हूँ? उन्होंने कहाः अच्छा ही, आप करम करने वाले भाईहैं और करम करने वाले भाई के बेटे हैं। आप ने फरमायाः "जाओ तुम सब आज़ाद हो !"(सुनन बैहक़ी अल-कुब्रा)

३१. सब्र (धैर्य) :पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सब्रऔर तहम्मुल के पैकर थे। चुनांचे अपनी दावत शुरू करने से पहले आप की क़ौम जो कामकरती थी और बुतों की पूजा करती थी उस पर सब्र करते थे, और अपनी दावत का आरंभ करन केबाद अपनी क़ौम की ओर से मक्का में जो नाना प्रकार की कठिनाईयाँ और परेशानियाँ झेलनीपड़ीं उन पर सब्र किया और उस पर अल्लाह के पास अच्छे बदले की आशा रखी। उसके बादमदीना में मुनाफिक़ों (द्वयवादियों) के साथ सब्र से काम लिया।
पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने रिश्तेदारों और प्रिय लोगों की वफात पर सब्र काआदर्श थे; आपकी बीवी ख़दीजा की मृत्यु हो गई, फातिमा के सिवाय आपके सारे बाल-बच्चेआप के जीवन ही में मर गए, आपके चचा अबू-तालिब और हमज़ा का निधन हो गया; इन तमातहालतों में आप ने सब्र से काम लिया और अल्लाह तआला से पुण्य की आशा रखी।
अनस बिनमालिक कहते हैं: हम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ अबू-सैफ लोहार केपास गए। उसकी बीवी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बेटे इब्राहीम को दूध पिलातीथी। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इब्राहीम को लिया, उनको चुंबन किया औरसूँघा। इसके बाद फिर हम अबू-सैफ के पास गए, उस समय इब्राहीम की जान निकल रही थी।पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की आँखों से आँसू बहने लगे। इस परअब्दुर्रहमान बिन औफ़ ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर, आप भी (रो रहे हैं)!! आपसल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः "ऎ इब्ने औफ, यह रहमत और शफक़त के आँसूहैं "। इसके बाद फिर उन्होंने कहा तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः"आँख आँसू बहाती है, दिल दुखी है और हम केवल वही कहते हैं जो अल्लाह को पसंद है। ऎइब्राहीम, हम तेरी जुदाई पर दुखी हैं"। (सहीह बुख़ारी)

३२. अदल और इनसाफ (न्याय) :पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने जीवन के तमाम मामलों में न्याय करने वालेथे, अल्लाह की शरीअत (क़ानून) को लागू और नाफिज़ करने में इनसा़फ से काम लेते थे।आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा कहती हैं: मख़जूमी औरत का मामला जिसने चोरी की थी क़ुरैशके लिए महत्वपूर्ण बन गया तो उन्हों ने आपस में कहाः इस के बारे में     पैग़म्बर सल्लल्लाहु  अलैहि व सल्लम से कौन बात करेगा? उन्होंने कहाः पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चहीते उसामा बिन ज़ैद के सिवा इसकी हिम्मत कौन करसकता है? उसामा ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से इस बारे में बात की तोआप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमायाः "क्या तुम अल्लाह के एक हद (धार्मिक दण्ड) के बारे में सिफारिश करते हो !!" फिर आप खड़े हुए और खुतबा (भाषण) देते हुएफरमायाः "तुम से पहले के लोग इस कारण तबाह कर दिए गए कि जब उनके अंदर कोई शरीफ(खानदान वाला) चोरी करता था तो उसे छोड़ देते थे और अगर उनके अंदर कोई नीच आदमी चोरीकरता था तो उस पर हद (दण्ड) लगाते थे। अल्लाह की क़सम! अगर मुहम्मद की बेटी फातिमा भीचोरी करे तो मैं उसका हाथ काट दूँगा"। (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)
 पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपने नफस से बदला लेने में भी न्याय करने वाले थे, उसैद बिन हुज़ैर कहते हैं: एक अन्सारी आदमी लोगों से बात कर रहा था और वह कुछमनोरंजक आदमी था, इस बीच कि वह लेागों को अपनी बातों से हंसा रहा था   पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसकी कमर पर एक लकड़ी से मार दिया, तो उसने कहा मुझेबदला दीजिए, आप ने कहाः "बदला ले लो उसने कहाः आप क़मीस पहने हुए हैं और मैंबिना क़मीस के हूँ, इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी क़मीस उठा दी, तोवह आप से चिमट गया और आपके पहलू को चूमने लगा, और कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! मैंयही चाहता था। (सुनन अबू दाऊद)

३३. अल्लाह का डर और ख़ौफःपैग़म्बर सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम लोगों में सब से अधिक अल्लाह से डरने वाले और उसका ख़ौफ रखने वाले थे।अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने मुझ से फरमायाः "मुझे क़ुरआन पढ़ कर सुनाओ"। मैं ने कहाः ऎ अल्लाह केपैग़म्बर, मैं आप को क़ुरआन पढ़ कर सुनाऊँ जबकि वह आप ही पर उतरा है!? आप ने कहाः  "हाँ,"  तो मैं ने आप को सूरतुन-निसा पढ़ कर सुनाई यहाँ तक कि मैं इस आयत परपहुँचाः "

"पसक्या हाल होगाजिस समय कि हम हर उम्मत में से एक गवाह लायेंगे और आप को इन लोगों पर गवाह बनाकरलायेंगे।(सूरतुन-निसाः ४१)
आप ने फरमायाः "बस अब काफी है"। मैं ने आप की ओर देखातो आप की दोनों आँखों से आँसू बह रहे थे। (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)
आइशा  रजि़यल्लाहु अन्हा बयान करती हैं: पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब आसमान परगहरे बादल देखते तो कभी आगे होते कभी पीछे होते, कभी अंदर दाखिल होते और कभी बाहरनिकलते और आप का चेहरा बदल जाता। जब बारिश हो जाती तो आप इत्मिनान की साँस लेते।आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा ने आप से इसका कारण पूछा तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमने फरमायाः "मुझे क्या मालूम कि शायद वह ऎसे ही हो जैसे कि एक क़ौम ने कहाथा:

"फिर जब उन्हों नेबादल के रूप में अज़ाब को देखा अपनी घाटियोंकी ओर आते हुए तो कहने लगेयह बादलहम पर बरसने वाला है(नहीं) बल्कि दरअसल यह बादल वह (अज़ाब) है जिस की जल्दी मचारहे थेहवा है जिस में दर्दनाक (कष्ट दायक) अज़ाब है।" (सूरतुल-अहक़ाफः२४)
(सहीहबुख़ारी औरसहीह मुस्लिम)

३४. क़नाअत -सतोष- और दिल कीबेनियाज़ीःउमर बिन खत्ताब रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आयातो मैं ने आप को एक चटाई पर पाया जिसके और आपके बीच कोई चीज़ नहीं थी (चटाई पर कोईचीज़ नहीं बिछी थी) और आपके सिर के नीचे चमड़े का एक तकिया था जो खजूर के पेड़ कीछाल से भरा हुआ था और आप के पैर के पास चमड़े का एक पानी का बर्तन था और आपके सिरके पास कुछ कपड़े टंगे हुए थे। मैं ने चटाई का निाशान आप के पहलू में देखा तो रोपड़ा। आप ने कहाः तुम क्यों रो रहे हो? मैं ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर, क़ैसरऔर किस्रा इस दुनिया का आनंद ले रहे हैं और आप अल्लाह के पैग़म्बर हैं (और आपकी यहहालत है)! आप ने कहाः "क्या तुम्हें यह पसंद नहीं कि उनके लिए दुनिया हो और हमारेलिए आखि़रत की नेमतें हों।"  (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)

३५. तमाम लोगों यहाँ तककि अपने दुश्मनों का भी भला चाहते थेः पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बीवीआइशा रजि़यल्लाहु अन्हा कहती हैं: मैं ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सेपूछा कि क्या आप पर कोई ऎसा दिन भी आया है जो उहुद के दिन से भी अधिक कठिन रहा हो? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "मुझे तुम्हारी क़ौम की ओर से जिन जिनमुसीबतों का सामना हुआ वह हुआ ही, और उन में से सब से कठिन मुसीबत वह थी जिस से मैं घाटी के दिन दो चार हुआ, जब मैं ने अपने आप को अब्द-यालील पूत्र अब्द-कुलाल केबेटे पर पेश किया, किन्तु उसने मेरी बात न मानी तो मैं दुख से चूर, ग़म से निढालअपनी दिशा में चल पड़ा और मुझे क़रनुस-सआलिब नामी स्थान पर पहुँच कर ही इफाक़ाहुआ। मैं ने अपना सिर उठाया तो क्या देखता हूँ कि बादल का एक टुकड़ा मुझ पर छायाकिए हुए है। मैं ने ध्यान से देखा तो उसमें जिब्रील थे। उन्हों ने मुझे पुकार करकहाः आप की क़ौम ने आप से जो बात कही और आप को जो जवाब दिया अल्लाह ने उसे सुन लियाहै। उसने आप के पास पहाड़ का फरिश्ता भेजा है ताकि आप उनके बारे में उसे जो आदेशचाहें, दें। उसके बाद पहाड़ के फरिश्ते ने मुझे आवाज़ दी और मुझे सलाम करने केबादकहाः ऎ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! बात यही है, अब आप जो चाहें, अगर आपचाहें कि मैं इन को दो पहाड़ों के बीच कुचल दूँ (तो ऎसा ही होगा)। पैग़म्बरसल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "नहीं, बल्कि मुझे आशा है कि अल्लाह तआला इनकी पीठ से ऎसी नस्ल पैदा करेगा जो केवल एक अल्लाह की इबादत (उपासना) करेगी और उसकेसाथ किसी चीज़ को साझी नहीं ठहराएगी।" (सहीह बुख़ारी और सहीहमुस्लिम)

इब्ने उमररजि़यल्लाहु अन्हुमा कहते हैं: जब अब्दुल्लाह बिन उबय बिन सलूल की मृत्यु हो गई तो उसका बेटा अब्दुल्लाह, पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आया और आप से आपकी क़मीस मांगी ताकि उसमें अपने बाप को कफनाए, तो आप ने उसे अपनी क़मीस दे दी। फिरउसने आप से निवेदन किया कि उसका जनाज़ा पढ़ा दें तो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसका जनाज़ा पढ़ाने के लिए तैयार हो गये। इस पर उमर रजि़यल्लाहु अन्हु खड़ेहुए और आप के कपड़े को पकड़ कर कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप उसका जनाज़ा पढ़ायेंगे जबकि अल्लाह तआला ने आप को उस पर जनाज़ा पढ़ने सेरोक दिया है? पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "अल्लाह तआला नेमुझे छूट दिया है, फरमायाः

"आप उनके लिएक्षमा याचना करें या क्षमा याचना न करेंअगर आप उनके लिए सत्तर बार भी क्षमा याचनाकरें..." (सूरतुत-तौबाः८०)
और मैं सत्तर से भी अधिक बार क्षमा याचना करूँगा।" उन्होंने कहाः यह मुनाफिक़ है। चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसका जनाज़ापढ़ा और इस पर अल्लाह तआला ने यह आयत उतारीः


"उन में से जो मर जाए आपउस पर कभी भी जनाज़ा न पढ़ें और न ही उसकी क़ब्र पर खड़े हों।" (सूरतुत-तौबाः ८४)
             (सहीह बुख़ारी और सहीह मुस्लिम)



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