Tuesday, April 26, 2011

पैगंबर मुहम्मद- की साधारण (सादा) जीन्‍दगी

नेता के रूप में  सल्लाहू आलिहि व सल्लम अपनी स्थिति के बावजूद, पैगंबर मुहम्मद का  व्यवहार  अधिक से अधिक या अन्य लोगों की तुलना में वह अपने को बेहतर कभी नहीं समझते थे .वह कभी लोगों को नीच , अवांछित या शर्मिंदा नहीं होने  देते थे  . उन्होंने अपने साथियों को  आग्रह किया  की वे कृपया और विनम्र से  जियें , जब  भी हो तो गुलाम  की  रेहाई करें ,  दान दें ,  विशेष रूप से बहुत ही गरीब लोगों को और अनाथों को किसी भी प्रकार के इनाम  की प्रतीक्षा किये  बिना मदद करें.


पैगंबर मुहम्मद सल्लाहू अलैही व सल्लम लालची नहीं थे . वह बहुत कम  और केवल सरल खाद्य पदार्थ खा लिया  करते थे .वह  पेट भरकर  खाने को   कभी पसंद  नहीं करते थे .  कभी कभी, कई दिनों के बाद खाते थे और जो रुखी सुखी मिलती खा लिया करते थे . वह फर्श पर एक बहुत ही साधारण गद्दे पर सोते  थे और उनके घर में आराम के या सजावट के  रूप  में  कुछ भी नहीं था.

एक दिन हज़रत हफ्सा,  उनकी पवित्र पत्नी – उनके गद्दे को रात में  आरामदायक बनाने के लिए,   उनको बताये बिना उनकी  चटाई  को डबल तह  कर दी ,ताकि नर्म रहे , उस रात वह चैन से सो गए , लेकिन वह देर तक सोते रहे  जिस की वजह  से उनकी सुबह सवेरे प्रार्थना की छुट गई.वह इतना परेशान हुए  कि फिर ऐसा कभी नहीं सोए!


सादा जीवन और संतुष्टि पैगंबर के जीवन के महत्वपूर्ण शिक्षा थे: "जब आप एक ऐसे व्यक्ति को देखें जिसे आप की तुलना में आप से ज्यादा ओर अधिक धन और सुंदरता मिली है , तो उनको भी देखो जिनको आप से कम  दिया गया है."  इस प्रकार की सोंच से हम अल्लाह का शुक्र अदा करेंगे , बजाय वंचित महसूस करने के.


लोग  उनकी पवित्र पत्नी, हजरत आयशा से जो की उनके सबसे पहले और वफादार साथी अबू बकर की बेटी थीं , सवाल करते थे की  पैगंबर  मुहम्मद घर में  कैसे  रहते थे,  "एक साधारण  आदमी की तरह," वह जवाब में केहती थी . "वह घर की साफ सफाई, अपने कपड़े की सिलाई खुद से करलेते थे, अपनी सेनडल खुदसे ठीक करलेते थे ,  ऊंटों को पानी पिलाते थे, बकरी का दूध निकालते थे,  कर्मचारियों की उनके काम में मदद करते थे, और उनके साथ मिलकर अपना भोजन करते थे , और वह बाज़ार से हमको जो ज़रुरत है लाकर देते थे."


उनके पास  शायद ही कभी  एक से अधिक कपड़े के सेट थे , जो वह खुद से धोया करते थे.  वह  घर में प्यार से रहने वाले, शांतिप्रिय मनुष्य थे . उन्होंने कहा जब आप किसी घर में प्रवेश करें तो वहाँ सुख और शांति के लिए अल्लाह ताला से दुआ करें. वह दूसरों से मिलते समय -अस्सलामो अलैकुम- का शब्द कहते थे:जिसका अर्थ है "तुम पर शांति हो" शांति पृथ्वी पर सबसे बढ़िया  चीज़ है.

अच्छे शिष्टाचार में उनको पूरा पूरा विश्वास था वह लोगों को शिष्टतापूर्वक रूप से मिलते थे और बड़ों को सम्मान देते थे
एक बार उन्होंने कहा: " मुझे तुम में सब से प्यारा वह व्यक्ति लगता है जिसके व्यवहार  आच्छे हों."

उनके सभी रिकॉर्ड शब्दों और कामों से  यह प्रकट होता है की वह  एक  महान थे नम्रता, दया, विनम्रता, अच्छा हास्य और उत्कृष्ट आम भावना रख्ते थे, जो पशुओं के लिए  और सभी लोगों के लिए केवल प्यार के उपदेशक थे, विशेष रूप से उनके परिवार  के साथ.

इन सबसे ऊपर, वह एक मनुष्य थे ओर जो उपदेश दिया उसका अभ्यास किया. उनका जीवन, दोनों निजी और सार्वजनिक, अपने अनुयायियों के लिए एक आदर्श मॉडल है .

मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-की कुछ शिक्षाएं mohammad

पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-केविचारों, निर्देश, शिक्षा, सुझावों ,नैतिकता, आचरण और सिद्धांतों का एक  बहुत बड़ा संग्रह है.इस्लाम की महिमा और उसकी महानता इनहीं  आदर्शों पर टिकी हुई है.केवल उन में से एक हिस्से को यहाँदर्ज किया गया  हैं.

आत्माकी पवित्रता:
१.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है:
"बुद्धिमान वह है जो अपने आपके साथ अच्छे और बुरे का हिसाब किताब करे, और मौत के बाद काम आने वाला कार्यकरे, मूर्ख वह है जो अपनी इच्छाओंमेंडूबा रहे और अल्लाह का कृपा और दया का आशांवित रहे.

२.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने पूछा:  "आप लोग किस बात को बहादुरी समझते हो? लोगों ने कहा वह आदमी जिस को कोई मर्द न पछाङ सके, तो उन्होंने कहा नहीं ऐसा नहीं है , बल्किमजबूत आदमी वह है जो गुस्सा के समय खुद को क़ाबू में रखता है."(मुस्लिम ने इस को दर्ज किया है )
 

३. पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है:  "संतुष्टता एक ऐसा खजाना है जो कभी खत्म नहीं होता है"
४. पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है:"एक अच्छा मुसलमान होने का मतलब यह है कि बेकार (फुजुल) बात को छोड़ दे"


५.धर्म नाम है भला सोंचने का अल्लाह के लिये और उसकेपैगंबर के लिये और उसकी पवित्र पुस्तक (कुरान) के लिये और मुसलमानों के खास और आम लोगों के लिये.
६.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-एक बैठक में कुछ बैठे हुवे लोगों के पास रुके और कहा किया मैं आप लोगों को न बताऊँ कि आप लोगों में कोन अच्छे हैं और कोन बुरे हैं? सब के सब चुप रहे, उन्होंने यह सवाल तिन बार दुहराया तो एक आदमी ने कहा जी हाँ आप ज़रूर हमें बताएं कि  हमारे बीच कोन अच्छे हैं और कोन बुरे हैं? तो उन्हों ने कहा:"आप लोगों के बीच वह सब से अच्छा है जिन से भलाई की उम्मीद लगाई जाए और उनकी ओर से किसी प्रकार की तकलीफ से बेफिकरी हो और आप के बीच सब से बुरा वह है जिस से किसी भलाई की आशा न रखी जाए और उनकी ओर से तकलीफ पहुँचने का डर लगा रहे"
७. शर्म ईमान की एक शाखा है.

८:  पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है:"दो वरदान ऐसे हैं जिन में अधिक लोग नुकसान में रहते हैं: स्वास्थ्य और समय"
 ९. पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि "अपनी जिंदगी के गुज़ारे में कम खर्च करना आदमी की बुद्धि का एक हिस्सा है.
१०.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"धीरे धीरे समझ बूझकर चलना और फैसला  अल्लाह के आदेशा के अनुसार है और जल्दीबाजी शैतान की ओर से है"
११.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"पाखंडी की तिन पहचानें हैं:जब बात करता है तो झूट बोलता है और जब वचन देता है तो मुकर जाता है और सुरक्षा के लिए जब कोई चीज़ उसके पास रखी जाए तो वह उस में आगे पीछे करदेता है.


१२.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"ज्ञान मोमिन की खो होई चीज़ है जहाँ कहीं भी वह उसके हाथ लगे तो वही उसका हकदार है"
१३. पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"आप लोग जहन्नम की आग से बचो यदि खजूर के एक टुकड़े को दान करके हो सके तो भी करो यदि किसी को यह भी न मिल सके तो एक अच्छे शब्द से भी हो तो करो..

 
१४.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है:"किया मैं आप सब को दुन्या और अखिरत के सब से अच्छे शिष्टाचार के बारे में न बता दूँ? तुम पर जो ज़ुल्म करे उसको भी क्षमाकरदो,  और उस से भी रिश्ता जोड़ें रखो जो आप से रिश्ता तोड़ ले, और उसको भी दें जो आप से हाथ रोके. 
१५. पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"पाखंडी की तिन पहचानें हैं:जब बात करता है तो झूट बोलता है और जब वचन देता है तो मुकर जाता है और सुरक्षा के लिए जब कोई चीज़ उसके पास रखी जाए तो वह उस में हेरा फेरी कर देता है.
१६.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"आप लोगों में से मेरा सब से अधिकप्यारा क़यामत के दिन मुझ से सब से अधिक नजदीक बैठने वाला वह हैं जिनके शिष्टाचार अच्छे हों.
१७.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"जो अल्लाह को खुश करने के लिये अपने आप को  झुका कर रखता है (घमंडी नहीं करता है) तो अल्लाह उसे ऊंचाई देता है. ْ
 

१८.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"तिन लोगों के बारे में मैं क़सम खाता हूँ और इस बारे में एक बात बयान करता हूँ तो आप लोग उसे याद रख लीजिए: दान देने से किसी भी भक्तके धन में कमी नहीं होती है और यदि किसी ने किसी पर ज़ुल्म  किया और वह उसे पि गया तो अल्लाह उसेइज़्ज़तदेता है और जो आदमी भिक मांगने का दरवाजा खोलता है तो अल्लाह उस पर गरीबी का दरवाजा खोल देता है. पैगंबर -उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने और यह भी कहा: कि:"यह दुनिया या तो चार प्रकार के लोगों के लिये है: एक तो वह आदमी जिसे अल्लाह ने  धन और ज्ञान दिया है तो वह उसके बारे में अल्ल्लाह से डरता है और उसे दान करता है और अपने रिश्तेदारों पर खर्च करता है और उस में उनके लिए अल्लाह का हक़ मानता है तो यह सब दर्जों से बड़ा दर्जा है और एक आदमी को अल्लाह ने ज्ञान दिया लेकिन उसे धन नहीं दिया पर उसकी निययत शुद्ध है और वह यह कहता है कि यदि मेरे पास धन होता तो मैं फुलान की तरह काम करता यह उसका इरादा है तो दोनों का बदला बराबर है और एक आदमी को अल्लाह ने धन दिया पर उसे ज्ञान नहीं दिया तो वह अपने धन में अंधाधुंध चलता है अपने मालिक से नहीं डरता है और अपने रिश्तदारों पर भी खर्च नहीं करता है और उस में अपने मालिक का भी कोई हक़ नहीं मानता है तो यह सब से घटया दर्जा है और एक आदमी को अल्लाह ने न धन दिया और न ज्ञान दिया तो वह सोंचता है कि यदि मुझे धन होता तो में भी उसी की तरह गुलछर्रे उड़ाता यह उसकी नियत थी तो दोनों का पापबराबर है.


१९.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"अपने भाई की तकलीफ पर मत हँसो अल्लाह उसको उसकी तकलीफ से निकाल देगा और तुम को उस तकलीफ में डाल देगा"

२०.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा है: कि:"लोगों में अल्लाह के पास सब से प्यारा वह है, जो लोगों के अधिक से अधिक काम में आता है, और अल्लाह को सब से अधिक पसंदीदा काम यह है कि किसी मुस्लमान के दिल को खुश करदे या उसके किसी दुख या दर्द को दूर कर दे या उसका कर्जा उतार दे या उसकी भूक बुझा दे, मैं अपने किसी भाई के किसी काम को बनाने के लिये उसके साथ चलूँ यह काम मुझे किसी मस्जिद में एक महीना अल्लाह अल्लाह करते बैठने से अधिक पसंद है, और जिसने अपने गुस्से को पि लिया तो अल्लाह उस की बुराई पर परदह रख देता है. और यदि कोई अपने गुस्से को पि जाता है, बवजूद इसके के यदि वह करना चाहता तो बहुत कुछ कर सकता था इस के बावजूद सह लिया तो अल्लाह कियामत के दिन उसकी आत्मा को खुशी से भर देगा और जो अपने भाई के साथ उसका काम निकलने के लिये साथ दे और काम बना दे तो अल्लाह ताला कियामत के दिन उसकी सहायता करेगा जिस दिन लोगों के पैर उखड़ जाएंगे, और बुरा बर्ताव सारे कामों को ऐसे ही नष्ट कर देता है जैसे सिरका शहद को.


माता पिता के साथ भलाई:
१. अल्लाह ताला खुश होता है, जब माता पिता खुशहोते हैं औरअल्लाह नाराज होता है, जब माता पिता नाखुशरहतेहैं.
२.हज़रत पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-से अब्दुल्लाह बिन मासउद (उनके एक साथी) ने पूछा कौन सा काम अल्लाह को अधिक पसंद है? तो उन्हों ने कहा:"समयपरनामज़ पढ़ना" अब्दुल्लाह बिन मासउद ने पूछा फिर कौन सा? तो उन्होने कहा माता पिता के साथ अच्छा बर्ताव करना अब्दुल्लाह बिन मासउद ने पूछा फिर कौन सा? तो उन्होने कहा फिर अल्लाह के रस्ते में कोशिश करना.
३.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने पूछा:"क्या मैं आप कोसबसे बड़े पाप के बारे में न बताऊं? उन्होने इसे बात को  तिन बार दुहराया तो लोगों ने कहा जी हाँ, हे अल्लाह केपैगंबर!आप हमें ज़रूर बताएं तो उन्होने कहा:"अल्लाह तालाके साथ शिर्क करना ,और  मातापिता की बातन मानना,  वह टेका लेकर बैठे थे तो सीधा होकर बैठे और कहा:"झूठे सबूत देना या झूठ बोलना"पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-शब्द को दुहराते रहे यहाँ तक कि लोगों को लगा कि वह अब इस शब्द को नहीं दुहराएंगे" 


रिश्तेदारों के साथ व्यवहार:
पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा :" रिश्तादारी अर्श से लटकी हुई है और कहती है जो मुझे जोड़ता है उसे अल्लाह भी जोड़ता है और जो मुझे तोड़ता है उसे अल्लह तोड़ता है.


बेटियों का पालण:
१.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-नेकहा:"मेरी उम्मत(क़ौम) में सेजो कोई भी तीन बेटियों या तिन बहनों का पालन पोषन करे और उनके साथ अच्छा बर्ताव करे तो वह उनके लिये जहन्नम के बीच आड़ बन जाते हैं.

२.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-नेकहा:"जो कोई तीन बेटियों का पालन करता है, उनपर खर्च करता है, उनके साथ नरमी और मेहरबानी करता है , और उन्हें अच्छा पढ़ा लिखा कर शिक्षित करता है तो अल्लाहउसेजन्नत देगा, उनसे पूछा गया यदि किसी ने दो बेटियों का पालन किया तो? इस पर उन्होने ने कहा दो बेटियों के पालन पर भी.


अनाथों का पालन:
पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-नेकहा:"जो अनाथों का पालन पोषण करेगा वह मेरे साथ जन्नत में इस तरह रहे गा औरहज़रत पैगंबर -उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने हाथ की दो उंगलियों से इशाराकिया.


शासक या हाकिम का आज्ञापालन:
१. पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-नेकहा:शासक के आदेश का पालन करना आवश्यक है जिसने अपने हाकिम की बात उठा दी उसने अल्लाह के हुकम को ठुकरा दिया और उसकी नाफरमानी में दाखिल हो गया.
२.पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-नेयहाँ तककहा:अगर कोई नकटा काला कालोटा दास भी अपकाशासक बन जाए तब भी उनकी बात सुनो और उसकी आज्ञा का पालन करो.
 
३. पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा जब आप देख लें कि मेरी उम्मत ज़ालिम को "हे ज़ालिम!" कहने से डरे तो ईमानदारी उनसे रुखसत हो गई.

दयालुता:
एक बार एक आदमी ने पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-को देखा कि वह अपने दोनों नातियों हसन और हुसैन को चूम रहे हैं, तो उसने कहा मुझे दस बच्चे हैं लेकिन मैं तो कभी भी उन में से किसी को भी नहीं चूमा तो हज़रत पैगंबर -उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने उन से कहा तो मैं किया कर सकता हूँ जब अल्लाह ने तुम्हारे दिल से दया को निकाल लिया "जो दया नहीं करता है उस पर दया नहीं होती है".

भीख माँगने की बुराइयां:
१.हज़रत पैगंबर -उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा:" जो लोगों से धन बटोरने के लिये भीख मांगता है तो वह तो असल में आग का डल्ला मांगता है तो माँगा करे ज़ियादा मांगे या कम मांगे"

२.हज़रत पैगंबर -उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा:" जिस पर गरीबी आगई हो और वह उस गरीबी को लोगों के बीच ले आए (मांगता फिरे) तो उसकी गरबी कभी बंद नहीं होगी लेकिन जो उस गरबी को अल्लाह के सामने रखे तो अल्लाह ताला उसकी गरीबी को जल्द ही धन दोलत में बदल देगा: या तो जल्द उसकी मिर्त्यु होजाएगी या फिर जल्द धन मिल जाए गा.  


आपस में एक दूसरे की सहायता :
१.हज़रत पैगंबर -उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा:"जो कोई छोटों पर दया नहीं करता औरबड़ों का सम्मान नहीं करता,उसका हमारे साथ कोई संबंध नहीं है.
२. तुम पृथ्वी के लोगों पर दया करो तो आकाश वाला तुम पर मेहरबान होगा.

३.हज़रत पैगंबर -उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा:"एक ईमानदार दूसरे ईमानदार के लिये ऐसे ही है जैसे एक भवन जिसमें प्रत्येक ईंट एक दूसरे को मजबूती से पकड़े रहते हैं. और अपनी उंगलियों की जाली बना कर दिखाया.
  
४. हज़रत पैगंबर -उनपरशांतिएवंआशीर्वादहो-ने कहा:"प्रतयेक दिन जिस में सूरज उगता है प्रतयेक आत्मा पर अपने लिये एक दान करना है  "अबूज़र्र ने पूछा :" हे अल्लाह के पैगंबर! मैं कहाँ से दान दूँ हमरे पास तो धन दोलत नहीं है? तो उन्होंने कहा:"दान के द्वार तो बहुत हैं उसी में "अल्लाहु अकबर " (अल्लाह बहुत बड़ा है) और "अलहम्दुलिल्लाह" (सभी प्रशंसा अल्लाह के लिये है),और "ला इलाहा इल्लाहू" (अल्लाह को छोड़ कर कोई पूजे जाने के योग्य नहीं है) और "अस्त्ग्फीरुल्लाह" (मैं अल्लाह से माफी माँगता हूँ) पढ़ना भी इसी में शामिल है और यह कि अच्छाई का आदेश दो और बुराई से रोको , और लोगों के रासते से कांटा हड्डी यापत्थर हटा दो, और अंधे को रास्ता दिखा दो और बहरा और गूंगा तक बात पहुंचा दो ताकि वह समझ सकें और किसी चीज़ के बारे में पूछने वाले को उसका पता बता दो यदि तुम उस चीज़ का पता जानते हो, और तुम सहायता मांगने वाले बेचारों के साथ तेज तेज पैरों को उठा कर चलो और कमजोर के साथ अपनी सहायता का हाथ जल्दी से बढ़ा दो, यह सब के सब दान के रासते हैं इसके द्वारा तुम अपनी आत्मा की ओर से दान कर सकते हो,और तुम को तो अपनी पत्नी के साथ सोने पर भी बदला है अबूज़र्र ने कहा कि मेरे अपने संभोग पर कैसे बदला मिलेगा? तो अल्लाह के पैगंबर- उन पर शांति हो -:ने कहा यह बताओ कि यदि तुम्हारा कोई बच्चा हो और बड़ा होजाए और तुम को उसकी सहायता की उम्मीद होने लगे फिर वह मर जाए तो उसपर अल्लाह की ओर से बदले की उम्मीद रखोगे या नहीं? अबूज़र्र ने कहा जी हाँ! तो उन्होंने उन से पूछा कियों किया तुम ने उसे पैदा किया? उन्हों ने कहा नहीं बल्कि अल्लाह ने उसे पैदा किया? अल्लाह के पैगंबर- उन पर शांति हो -:ने कहा किया तुम ने उसे होश बुध्धि दिया था? उन्हों ने कहा नहीं बल्कि अल्लाह ने उसे अक्ल बुध्धि दी इसके बाद अल्लाह के पैगंबर- उन पर शांति हो -:ने कहा क्या तुम उसे रोज़ी देते थे उन्होने कहा नहीं बल्कि अल्लाह ही उसे रोज़ी देता था तो अल्लाह के पैगंबर- उन पर शांति हो -:ने कहा तो बस उसे जायज़ में रखो और नाजायेज़ से इसे बचाओ यदि अल्लाह चाहेगा तो उसे जिंदगी देगा और अगर अल्लाह चाहे गा तो उसे जिंदगी नहीं देगा लिकिन तुम्हें तो बदला मिलेगा.(मतलब यह है की तुम पवित्र रूप से अपनी पत्नी के साथ ही संभोग करो)

३. हे अली!तीन चीजें पापों को मिटाने वाली हैं: सलाम (शांति) को फैलाना, खाना खिलाना  औररात में नमाज़ पढ़ना जब लोग सो रहे होते हैं.

६.अल्लाह के पैगंबर ने कहा:कल कियामत के दिन मुझ से अधिक नजदीक और मुझ पर शफाअत का हकदार वह आदमी है जो तुम्हारे बीच सब से अधिक सच्ची ज़बान बोलने वाला है और अमानत अदा करने वाला है और अच्छा बर्ताव करने वाला है और लोगों से अधिक मिलनसार है"


7. अबूज़र्र गिफारी ने बयान किया कि है कि अल्लाह के पैगंबर-उन पर शांति और आशीर्वाद हो - ने कहा: किसी भी भलाई की चीज़ को हलकी और छोटी हरगिज़ मत समझो भले ही अपने भाई से मुस्कुराहट के साथ मिलने की नेकी ही क्यों न हो (इस को भी छोटी मत जानो).


8 .अपने चहिते को जरा संभल कर चाहो क्योंकि हो सकता है किसी दिन आपकी उन से अनबनी हो जाए और अपने विरोधी से जरा संभल कर नफरत किजिये क्यों कि हो सकता है कि कुछ बाद वह आप का चाहिता बन जाए..


9 और हज़रत पैगंबर ने कहा तुम में से कोई भी आदमी "इम्माअह" थाली का बैगन ना बने- जो यह कहता है मैं तो लोगों के साथ हूँ यदि वह अच्छा करते हैं तो में भी अच्छा करता हूँ और यदि लोग बुरा करते हैं तो मैं भी बुरा करता हूँ, लेकिन अपनी आत्मा को मजबूत बनाओ यदि लोग अच्छा करें तो तुम भी अच्छा करो लेकिन यदि वह बुराई करें तो तुम उनकी बुराई से बचो.

ज्ञान की महानता:
 
१.अल्लाह के पैगंबर- उन पर शांति और आशीर्वाद हो-:ने कहा "जो कोई भी ज्ञान के प्रयास में एक रास्ता चलता है तो अल्लाह उसके लिये स्वर्ग की ओर का एक रास्ता तैय करा देता है, और ज्ञान की खोज में चलने वाले की खुशी के लिये फ़रिश्ते अपने पंखों को उनके पैरों तले बिछाते हैं, और विद्वानके लिये जो भी आकाशों में हैं और जो भी पृथ्वी पर हैं यहाँ तक कि मछलियां पानी में सब उसके लिए क्षमा की दुआ करते हैं, और एक विद्वानकी महानता केवल तपस्या करने वाले पर ऐसी ही है जैसे कि चाँद की महानता दूसरे सारे सितारों पर है, विद्वानपैगंबरों केवारिसहैं वास्तव मेंपैगम्बर अपनी मिर्त्यु के बाद दिनार और दिरहम छोड़ कर नहीं जाते हैं, हाँ! वे ज्ञान छोड़ कर जाते हैं तो जिसने ज्ञान लिया तो उसने बड़ा भाग पा लिया".
 

२. ज्ञान हासिल करना हर मुसलमान पर अनिवार्य है.
३. अल्लाह के पैगंबर- उन पर शांति और आशीर्वाद हो-:ने कहा ज्ञानबुध्धि ईमानदार आदमी की खोईं हुई चीज़ की तरह है जहाँ कहीं भी उसे हाथ लगे तो वही उसका अधिक अधिकार है.

६. अल्लाह के पैगंबर- उन पर शांति और आशीर्वाद हो-:ने कहा: जिसके पास कोई ज्ञान हो और उस ज्ञान के बारे में उससे पूछा गया लेकिन उसने उस ज्ञान को छिपा लिया तो कियामत के दिन उसे आग का लगाम पहनाया जाएगा"

दास, नोकर और नोकरानी के साथ व्यवहार:
१- मामुर बिन सोवैद ने कहा: "मैं ने अबूज़र्र गिफारी को देखा वह एक सूट पहने थे और उनका नोकर भी वैसे ही  सूट पहना था, तो हम ने उन से इस के बारे पूछा तो उन्हों ने कहा: मैं ने एक नौकर को कुछ गाली गलोज कर दिया, उस आदमी ने यह बात हज़रत पैगंबर- उन पर शांति और आशीर्वाद हो- को बता दी तो अल्लाह के पैगंबर- उन पर शांति और आशीर्वाद हो- ने मुझ से कहा क्या तुम ने उसकी माता का नाम लेकर उसे शर्मिंदा किया है,और आदेश दिया यह कम करने वाले तुम्हारे भाई हैं अल्लाह ने उन्हें तुम्हारे हाथों के नीचे रखा  है तो जिसका भाई उसके हाथ के निचे कम करता हो तो उसे वही खिलाए जो खुद खता है और उसे वही पहनाए जो खुद पहनता है, उनकी शक्ति से बढ़कर काम उनपर मत डालो और यदि तुम कुछ भारी कम उनको दो तो फिर उस कम में तुम उसका हाथ बटाओ.
 

२. और अबू मासउद -अल्लाह उनके साथ खुश रहे- ने कहा:मैं अपने एक नोकर को कुछ मारपीट कर रहा था इतने में मैं ने अपने पीछे से एक आवाज़ सुनी:" हे अबू मसउद! जान रखो कि अल्लाह तुम पर इस से भी कहीं अधिक शक्तिशाली है जितनी कि तुम इस नोकर पर हो" तो मैं ने पलट कर देखा तो पीछे हज़रत पैगंबर- उन पर शांति और आशीर्वाद हो- खड़े थे तो मैं ने तुरंत कह दिया हे अल्लाह के पैगंबर! वह अल्लाह के लिए स्वतंत्र है इस पर हज़रत पैगंबर- उन पर शांति और आशीर्वाद हो-  ने कहा:"यदि तुम यह कम न किये होते तो सचमुच में आग तुम्हें झुलस देती या आग तुम्हें छु लेती.

पैगंबर की गैरमुस्लिमों पर दयालुता के कुछ उदाहरण mohammad

पहला उदाहरण:
हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे खुश रहे-ने हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- से पुछा: क्या आप पर उहुद के दिन सेअधिक कठिन दिन गुजरा है? हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उन पर- ने कहा: मैं तुम्हारे लोगों की ओर से बहुत कठिनायों में पड़ा हूँ. सबसे अधिक कठिन अकबा का दिनथा. मैंनेअपना सन्देश अब्देयालैल बिन अब्द कलाल को सुनाया तो वेह मेरी बात न माने. मैं दुखी चहरे के साथ वापस हो गया. मैं दूख की भावना से पीछा न छुड़ा सका यहाँ तक की मैं "कर्णअल्सआलिब" के निकट पहुंचा , मैंने अपना सिर उठाकर देखा तो देखा कि एक बादल अपना साया मुझ पर डाल रहा है , उसमें मैंने जिब्राइल (फ़रिश्ता) को देखा, उन्हों ने मुझे आवाज़ दिया और कहा:अल्लाह-सर्वशक्तिमान- ने आपके लोगों की बात को सुना और उनके जवाब को भी सुना है, अल्लाह ने आपके लिए पहाड़ों का फ़रिश्ता भेजा है जो उनके खिलाफ आप की किसी भी आज्ञा का पालन करेगा. इतने में पहाड़ों के फ़रिश्ते नेमुझे सलाम किया और बोला: हे मोहम्मद! आप जैसा कहें करूंगा यदि आप कहें तो उनको दो पहाड़ों के बीच कुचल दूं? तो हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उन पर-ने उत्तर दिया: नहीं, बल्कि मैं मुझे आशा है किअल्लाह-सर्वशक्तिमान- उनकी पीठों से ऐसे लोगों को जन्म दे जो केवल एक ही अल्लाह को पूजें, उसके साथ किसी को साझी न बनाएं.

दूसरा उदाहरण

हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर-अल्लाह उनसे खुश रहे-के द्वारा उल्लेख किया गया: कि हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उन पर-एक जंग में थे उसमे ए कमहिला की हत्या हो गई थी. तो हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- ने महिलाओं और बच्चों की हत्या की निंदा की.

बुखारी और मुस्लीम के द्वारा एक दूसरी जगह पर यही बात यूँ उल्लेख की गई है:कि हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-की एक जंग में एक महिला मुत्यु पाई गई थी, तो हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-ने महिलाओं और बच्चों की हत्या से मना किया

तीसरा उदाहरण:

अनस बिन मालिक-अल्लाह उनसे खुश रहे-नेकहा:किएकयहूदीयुवाहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-की सेवा करता थाएक बार वह बीमारहो गया था. तो हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-तीमारदारी के लियेउसकेपासआएऔर उसकेसिरकेपासबैठेऔरकहा कि: इस्लामस्वीकार करलो. युवानेअपनेपिता कीओरदेखाजबकि वह उनके पास ही थेतोपितानेयुवा से कहाकि:अबुलकासिम कीबातमान लोतो उस युवाने इस्लाम स्वीकार करलियाइस पर हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-ने वहाँ से निकलते समय कहा:सभी प्रशंसा अल्लाह को है जिसने इसको नरककीअग्नीसे मुक्त किया.

चौथा उदाहरण: अब्दुल्लाह बिन उमर-अल्लाह उनसे खुश रहे-नेकहा कि: हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-ने कहा: जोकोईभीएकवचनदाताकीहत्या करेगा वहस्वर्ग की खुशबू भीनपाएगा जबकिउसकीखुशबूचालीस साल केफासले तक पहुँचती है.

पांचवां उदाहरण:

बुरैदा बिन होसैब नेहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- के विषय में बताया कि जब वह किसी व्यक्ति को किसीसेनाया फोजी का अगुआ बनाते थे तो विशेष रूप से उसे भगवान से डरने और उनके मुसलमानसहयोगीयों के साथ भलाईकरने की सलाह देते थेऔर फिर उन्हें यह शब्द कहा करते थे:अल्लाह का नाम लेकर युद्धकरो, और अल्लाहके रासते में लड़ो,जो अल्लाह को नहीं मानता है उनसेलड़ो, लड़ोलेकिन जंग का बचा हुवा सामान मत छिपाओ, धोकामतदो, अंगभंगनकरो,बच्चे की हत्या मतकरो.और यदि तुमहारीमुशरिक दुश्मनों सेमुडभेड़ होजाए तो तुम पहले तीनप्रस्ताव उनकेसामनेरखो, उनमें से जोभीमान लें तो तुम उनकोस्वीकारकरलो औरयुद्धबंदकरदो. उनकोइस्लामस्वीकारकरनेकेलिएकहो, यदि वे मानलेंतोतुम स्वीकारकरोऔरलड़ाईमत करो. इस के बाद उनकोअपने देश को छोड़ कर मुहाजिरों के घर(या मदीना)आनेकेलिएकहो. और उन्हें बतादो कियदिवहऐसाकरतेहैंतोउनके अधिकार औरकर्तव्यमुहाजिरीनकेबराबरहोंगेऔर यदि उनकीइच्छामदीना आने कीनहोतोउनकी स्तिथिशहर से दूर रहने वाले देहाती मुस्लिमानों की तरह होगी, उन लोगों पर अल्लाहके वही नियमलागु होंगे जो सार्वजनिकमुसलमानों पर लागु होते हैं.उनको जंग में प्राप्त हुवे धन में से कुछ नहीं मिलेगा लेकिन यदि वह जंग में मुसलमानों की सहायता में भाग लेते हैं तो फिर उनको मिलेगा यदि वह इसे स्वीकार नहींकरतेहैं तो उनसे रक्षणफीस मांगोयदि वे इसे मान लेते हैं तोउनके मानने को स्वीकार कर लो औरउनसे युद्धमत करो. और यदि वे ना मानें तोअल्लाहकीसहायता लो औरउनसेयुद्धकरो. और यदि तुम किसीगढ़ का घेराव करतेहोऔरवेअल्लाहऔरउसकेपैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- के नाम पर सुरक्षा मांगेंतोमतदो, बल्कि, अपनीऔरअपनेसाथियोंके आधारपर दो. क्योंकि यदि वह आपके औरआपके साथियोंके साथ वचन को तोड़ते हैं तो यह अल्लाहऔरउसकेपैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- के साथ वचन तोड़ने से ज़रा आसान है और यदि तुम किसीगढ़ का घेराव करतेहोऔरवे अल्लाहकेनियम के आधार पर सुरक्षा मांगें तो ऐसामतकरोबल्कि तुम उनपरअपना नियम लागुकरो. क्योंकितुमनहींजानतेहो कितुम्हाराइन्साफउनकेलिएअल्लाहकेइन्साफके जैसाहोगाया नहीं होगा.

छठवाँ उदाहरण:

हज़रत अबूहुरैरा-अल्लाहउनसेप्रसन्नरहे-नेबताया किहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-ने कुछघुड़सवारों कोनज्द(एक स्थान का नाम)की ओर रवाना किया,तोउनसवारोंनेबनी_हनीफानामक एक समुदायकेएकआदमीसोमामाबिनअसालकोपकड़ कर लाए और उसकोमस्जिदकेएकखम्भे से बांधदिया.

हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-उसकेपासआएऔरपुछा:तुम्हारे पास क्या है? हे सोमामा! सोमामाने उत्तर दिया:मेरे पास भलाई है मुहम्मद!. यदिआपमुझेमारदेतेहैंतोएक खूनहोगा और यदिआपमुझेक्षमाप्रदान करदेतेहैंतोआपएकआभारी को क्षमाकरेंगे. और यदिआपपैसाचाहतेहोतो बोलिये कितना चाहीये?तो उन्होंने उसे दुसरेदिनतक के लिये छोड़ दिया. दुसरेदिनहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-ने फिरपुछा:तुम्हारे पास क्या है? हे सोमामा! सोमामाने उत्तर दिया:मैं ने तो कह दिया!. यदिआपमुझेमारदेतेहैंतोएक खूनहोगा और यदिआपमुझेक्षमाप्रदान करदेतेहैंतोआपएकआभारी को क्षमाकरेंगे. तो उन्होंने उसे दुसरेदिनतक के लिये फिर छोड़ दिया.और तीसरेदिन भी उन्होंने उससे पूछा: तुम्हारे पास क्या है? हे सोमामा! सोमामाने उत्तर दिया:मैं ने तो कह दिया जो मेरे पास है! तो उन्होंने कहा:सोमामाकोमुक्तकरदो, सोमामामस्जिदकेनिकटएकखजूर के बगीचे में गएऔरस्नान करके वापसमस्जिदमेंआए.और इस्लाम धर्म के शब्द पढ़ लियेऔर कहा:"अशहदु अल्लाइलाहा इल्लाल्लाहू, वह अशहदु आना मुहम्मदूर रसूलुल्लाह" मतलब मैं गवाही देताहूँकिअल्लाहको छोड़ कर कोईपूजे जाने के योग्य नहींहै औरमुहम्मदअल्लाह के पैगंबरहैं.फिरउन्होंनेकहा: हे मुहम्मद!अल्लाहकीक़सम पुरे प्रथ्वी पर मुझेकोईचहराइतनाघेनऊनानहींलगताथाजितनाकिआपका लगताथालेकिनअबमैंआपकेचहरेकोसबसेअधिक पसंदकरताहूँ. और मुझेआपकाधरमसबधर्मों से अधिक नापसंद था लेकिन अब वहमुझेसबसेअधिक प्यारा है.और अल्लाह की क़सम आपकाशहर मेरेलिएसबसे बुरा देश था पर अबमैं इसे सबसेअधिक पसंदकरताहूँ. आपकेसवारोंनेमुझे पकड़ लिया और मेरा उमरायात्रा का इरादा था तो अब आप मुझे क्या कहते हैं?

हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-नेउन्हें कहा आनंद रहो और उमराकेलिएजानेकीअनुमति देदी. जबवहमक्का पहोंचे तोकिसीनेउनको कहा: क्यातुमनास्तिक हो चुकेहो?

उन्होंनेजवाबदिया:नहीं,लेकिनमैंने मुहम्मद-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- केसाथइस्लामस्वीकार करलियाहै. और अबइसके बाद सेतुमलोग(मेरी ज़मीन) यमामा सेगेहूंकाएकदानाभीनपाओगेजबतककेपैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- अनुमतिनहींदेते.

सातवाँ उदाहरण:

हज़रत खालिदबिन वालिद-अल्लाहउनसेप्रसन्नहो-नेकहा:मैंखैबरकेयुद्धमेंहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- के साथ था जब वहाँ पहुंचे तो यहूदीलोगों ने कहा कि आपके लोग हमारे गोदामों में घुस पड़े हैं, इसपरहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- नेकहा: जिन के साथ हमारा वचन है उनके धन को लेना उचित नहीं है जबतककेउसपरअधिकारनहो.


आठवाँउदाहरण:

सहल बिन सअद अससाएदी-अल्लाह उनसे प्रसन्न हो- नेबताया है कि उन्होंनेहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-को खैबर की युद्ध केदिन कहतेसुना: मैंझंडाउसआदमीकोदूंगाजिसकेद्वाराअल्लाहहमेंजीतदेगा. साथीउठखड़ेहुवेकेदेखेंझंडाकिसकोमिलताहै. फिरउन्होंनेपुछा: अलीकहाँहैं? उत्तरमिला कीअलीकीआँखोंमेंदर्दहै. उन्होंनेअलीकोबुलवाया(अल्लाह-सर्वशक्तिमान-सेअलीकोनिरोगकरनेकीदुआकी)औरअपनापवित्र थूकउनकीआँखोंमेंलगाया. हज़रत अलीतुरन्त ठीकहोगएजैसेकुछहुवाहीनथा. अली-अल्लाहउनसेप्रसन्नहो-नेपुछा: क्याहमउनसेयुद्धकरेंगेयहाँतककेवेहमारीतरह(मुस्लमान) होजाएँ? इसपर हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-ने कहा:ज़रा ठहरके जब तुमउनकीज़मीनपर पहूँचजाओ, तो पहले तो उनकोइस्लामकीओर बुलाओ, औरउनकोउनके कर्तव्य बताओ,जानते हो? अल्लाह की क़समयदि अल्लाहतुम्हारे द्वारा उनमें सेएक आदमीकोभीसच्चाई केरास्ते परलाताहैतो यह बात तुम्हारे लिए महंगे लाल ऊँटों से अधिक अच्छा है.

नवाँउदाहरण:

हज़रत अबूहुरैरा-अल्लाहउनसेप्रसन्नहो-नेबताया कि हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-सेविन्तीकीगई और उनसे कहा गया कि अल्लाह(सर्वशक्तिमान) सेउनके लिये श्राप मांग लीजिये. इस पर उन्होंनेकहा:मैंश्राप देने के लिएनहींभेजा गयाहूँ, मैंतोसरासर दया बना कर भेजा गया हूँ.

दसवां उदाहरण:

हज़रत अबूहुरैरा-अल्लाहउनसेप्रसन्नहो-नेबताया कि:मैंअपनीमाँकोइस्लामधर्म की ओर आमंत्रित करता था जबकि वह एक मूर्तिपूजकथी,एकदिन जबमैंने उनको इस्लामधर्म की ओर आमंत्रितकियातो उन्होंने हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- के लिये एक ऐसे शब्द बोली जिनसेमैं नफरतकरताथा.तोमैंरोताहुवाहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-केपासगयाऔर उनसे कहा: हे अल्लाहकेपैगंबर!मैंअप्नीमाँकोइस्लामकी ओरआमंत्रित कर रहा था पर वह न मानी, और आज जब मैं ने उन्हें आमंत्रित क्या तो उसने आप केबारे मेंऐसेशब्दकहे जिनसेमुझे दुःख हुवा. तो अब आप ही अल्लाह-सर्वशक्तिमान-सेप्रर्थनाकीजिएकिअबूहुरैराकीमाँको सच्चाई कारास्ता बता दे,इसपरहज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- नेकहा:हे अल्लाह!मैंप्रर्थना करताहूँकि तू अबूहुरैराकीमाँकोसच्चाई कारास्ता बता दे. मैं हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- की प्रर्थना परबहुतखुशहोकरवहाँ से निकला. जबमैंदरवाजेकेपासपहूँचा मेरीमाँनेमेरेपैरों कीआवाज़ को सुन लिया औरकहा: जहाँहोवहीँरुकोअबूहुरैरा! और मैंनेपानीके गिरनेकीआवाज़को सुना मैं रुका रहा इतने में वह अस्नान करके कपड़ा और ओढ़नीपहनतय्यार थी इसकेबादउन्होंनेदरवाज़ाखोलाऔरकहा: हे अबूहुरैरा!:"अशहदु अल्लाइलाहा इल्लाल्लाहू, वह अशहदु आना मुहम्मदूर रसूलुल्लाह" मतलब मैं गवाही देताहूँकिअल्लाहको छोड़ कर कोईपूजे जाने के योग्य नहींहै औरमुहम्मदअल्लाह के के भक्त और पैगंबरहैं.

अबू हुरैरा कहते हैं: इसके बाद मैं अल्लाह के पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-कीओर गया जबकि खुशी से मेरी आँखों से आंसू बह रहे थे फिर उनसेबोला: हे अल्लाहकेपैगंबर! मेरेपासखुशखबरीहैकिअल्लाह-सर्वशक्तिमान- नेआपकीप्रर्थना को सुनलियाऔरअबूहुरैराकीमाँकोसच्चाई का रास्ता दिखादिया. अल्लाह के पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-नेअल्लाहकाशुक्रिया अदाकियाऔरउसकीप्रशंसा कीऔरअच्छे अच्छेशब्दकहे. तबमैंनेकहा:हेअल्लाहकेपैगंबर!अल्लाहसे प्रर्थना कीजिएकि वह अपने मुस्लमानभक्तों के दिल में मेरे लिये औरमेरीमाँके लिये जगह बना दे और उन्हें भी इनके दिल में प्रिय बना दे .तो अल्लाह के पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- नेइन शब्दों में प्रर्थना की: हे अल्लाह! तू अपने इस प्रिय भक्त को अपने मुस्लमानभक्तों के दिल में प्यारे करदे मुस्लमानभक्तोंको भी इनके लिये प्रिय बना दे. अबूहुरैरा ने कहा:इसलिये पूरी धरती पर जिस किसीमोमिननेमुझेदेखायामेरेबारेमेंसुनातो उसके दिल में मेरे लिये जगह बन गई.


ग्यारहवाँ उदाहरण:

हज़रत अबूहुरैरा-अल्लाहउनसेप्रसन्नहो-नेबताया और कहा है कि :तुफैलबिनअम्रअद्दोसीऔरउनकेसाथीपैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- केपासआए, औरकहा: हे अल्लाहकेपैगंबर!दौस समुदायआज्ञाका पालन नहीं किये बल्कि हटधर्मि किये तो अल्लाह-सर्व शक्तिमान-से प्रर्थना कीजिये कि उनको श्राप दे दे उन्होंनेसोंचा कि अबतो दौस तबाह होगया. लेकिन पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- नेयह प्रर्थना कि:है अल्लाह!इनकोसच्चाइ कामार्गदिखाऔर उनको यहाँ पहुँचा.

बारहवाँ उदाहरण:

हज़रत जाबिरबिनअब्दुल्लाह-अल्लाहउनसेप्रसन्नरहे- ने बताया कि लोगों नेकहा:हेअल्लाहकेपैगंबर! सकीफ़ नामक समुदाय की तीरों ने हमें चूर चूर कर के रख दिया है तो आप उनको श्राप दे दिजिये इस पर उन्हों कहा: हे अल्लाह!तू सकीफ़ कोसच्चा मार्गदिखा.


यह मुष्रिकोंसेएक लड़ाई थी जिसमें मुसलमानों को हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर- का निर्देश नमान नेसेअसफल्ताहुइ.

एकस्थान कानामजहां उनको लोगों की ओर दुःख पहुंचा था.
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एकजगा स्थान कानाम

४ यह बुखारीके द्वारा उल्लेख की गई.

५ यह बुखारीऔर मुस्लीम के द्वाराउल्लेख की गई.

६ यह बुखारीऔर मुस्लीम के द्वारा उल्लेख की गई.

७ हज़रत पैगंबर-शान्ति और आशीर्वाद हो उनपर-काएकनामजिसका अर्थ क़ासिम के पिता क्योंकि क़ासिम उनके एक पुत्र का नाम था 8

यह बुखारीके द्वारा उल्लेख की गई.


९ वचनदातावह गैर मुस्लिम हैजोमुसलमानों केदेश में रहता हैऔरउसको सुरक्षा प्रदानकीजातीहैऔरवहदुश्मनों कीमददन करने का वचनदेताहै.

१० यह बुखारीऔर मुस्लीम के द्वारा उल्लेख की गई.

यह मुस्लिमके द्वारा उल्लेख की गई

यह बुखारीऔर मुस्लीम के द्वारा उल्लेख की गई है.

यह अबूदावूदके द्वारा उल्लेख की गई, और इस बात के उल्लेख करने वाले सभी विद्वान विश्वसनीय हैं .

यह बुखारी औरमुस्लिमके द्वारा उल्लेख की गईहै.


यह मुस्लिमके द्वारा उल्लेख की गईहै

यह मुस्लिमके द्वारा उल्लेख की गईहै

यह बुखारी के द्वारा उल्लेख की गईहै

तिरमिज़ी ने विश्वसनीय लोगों की माध्यम से इसे उल्लेख किया है.

मुसलमान, हज़रत मुहम्मद के विषय में क्या कहते हैं? Yusuf Estes

मुसलमान हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-के विषय में क्या कहते हैं?


हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- की शिक्षाओं और उनके गुणों कोध्यान में रखना चाहिए, क्योंकि उनके इन शिक्षाओं और गुणों को बहुत सारे लोगों ने माना है, इस पर इतिहास गवाह है. यहां तक कि खुद अल्लाह सर्वशक्तिमान के द्वारा इसकी गवाही दीगई है.यहाँ हम हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-कीविशेषताओं उनके नैतिकताओं,और गुणों को एक आंशिक सूची में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करते हैं:
 



क) स्पष्टवादी:जबकि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-पूरी  जीवन भर में कभी लिखना और पढ़ना नहीं सीखे, और न कभी कुछ लिखे पढ़े इस के बावजूद वह बिल्कुल स्पष्ट और निर्णायक संदर्भ में और शास्त्रीय अरबी भाषा की सबसे अच्छी विधिमें बात करते थे.



ख) बहादुरी:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-की बहादुरी और हिम्मत की उनकी जीवन में ही और उनके निधन के बाद भी सब ने प्रशंसा की थी, बल्कि इस बात को उनके अनुयायियों और उनके विरोधियों सब ने माना था,वह हमेशा मुसलमानों और यहां तक किगैर मुस्लिमों के लिए भी सदियों भर में हमेशा एकउदाहरण रहे जिनकी पैरवी की जाती रही है.


ग) विनम्रता:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-हमेशा दूसरों की भावनाओं और जज़्बात को अपनी खुद की भावनाओं से आगे रखते थे, वह सारे मेहमाननवाजों के बीच सब से अधिक अच्छा बर्ताव करने वाले मेहमाननवाज थे, और जहाँ भी जाते थे सब से अच्छा शिष्टाचार वाले मेहमान होते थे.



घ) ईमानदारी और सच्चाई:हज़रत मुहम्मद--उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- अपने संदेश और उपदेश को पूरी दुनिया तक पहुँचा देने के लिए सदा पक्का इरादा रखे और अथक कोशिश करते रहे.
 


ड़) वक्तृत्व:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-ने दावा किया था कि वह कवि नहीं है, इसके बावजूद वह अपनी बात को सबसे अधिक संक्षिप्त तरीकेसे व्यक्त करते थे, उनकी बात में शब्द तो बहुत थोड़े होते थे लेकिन उस में अर्थों का समुद्र होता था, और उनकी बात अरबी भाषा के सारे गुणों को अपने अंदर समेटे होती थी.उनके शब्दों से आज भी सारी दुनिया में करोडोँ मुसलमान औरगैर-मुस्लीम मार्गदर्शन लेते हैं और उनकी बातों का हवाला देते हैं.


च) मित्रतापूर्ण:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अपने जानपहचान के लोगों के बीच विख्यात थे कि वह सबसे अधिक अनुकूल, दया और प्यार वाले हैं और वह सब से अधिक लोगों की भावनाओं का ख्याल रखने वाले हैं यह बात सभी जानते थे.
 


छ) उदारता:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अपनी संपत्ति को दुसरों पर खर्च करने में सब से अधिक दरयादिल थे, उन्होंने कभी भी किसी ऐसी चीज़ को रोक कर रखने की इच्छा नहीं रखी जिसकी लोगों को आवश्यकता हो,बल्कि उनकी सदा और अपनी प्रत्येक संपत्ति में यही स्तिथि रही, भले चांदीहो या सोना, पशु हो या खाने पिने की कोई चीज़ सब को दरयादिली से देते थे.

 

ज) मेहमाननवाजी:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अपने मेहमानों की खातिरदारी में विशेष रूप से नामवर थे, केवल यही नहीं बल्कि  अपने साथीयों और अनुयायियों को भी सिखाया कि अपने मेहमानों की अधिक से अधिक खातिरदारी करें, क्योंकि यही इस्लाम धर्म का उपदेश है.
 


झ) बुद्धि:अनगिनत विद्वानों और टिप्पणीकारों के द्वारायह घोषित किया गया है कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-पुरे इतिहास भर में सबसे अधिक बुद्धिमान थे, और यह बात ऐसे विद्वानों के द्वारा कही गई है जिन्होंने हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-की जीवन को अच्छी तरह से पढ़ा है.

 


ञ) इंसाफ:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अपने सारेव्यवहारों में चाहे लेनदेन हो या शासन या और कोई बात सब के सब में  बे-हद्द इंसाफपसंद पसंद थे, और उन्होंने प्रतयेक मोड़ पर न्याय कर के दिखाया.



ट)अच्छा व्यवहार:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-बहुत अच्छे बर्ताव वाले थे, जिस किसी से भी मिलते थे उनका ख्याल रखते थे.उन्होंने प्राणी की पूजा की बजाय  निर्माता की पूजा की ओरलोगों को आमंत्रित करने में अथक संघर्ष की, उन्होंने इस के लिए सबसे अच्छा और बिल्कुल उचित तरीका अपना या, जिनके द्वारा दुसरों का अधिक से अधिक ख्याल रखा जा सके और किसी का दिल न दुखे.

 

ठ) प्यार:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-को अल्लाह से बहुत लगाव था, इस में उनके साथ किसी की भी बराबरी नहीं हो सकती है, इस के साथ साथ वह अपने परिवार, दोस्तों, साथियों से भी बहुत प्यार रखते थे, केवल यही नहीं बल्कि वह तो उनसे भी प्यार रखते थे जो उनके संदेश को स्वीकार नहीं किए थे और उनके और उनके अनुयायियों के साथशांतिपूर्ण रूप से रहते थे.
 


ड) दया के पैगंबर:अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पवित्र कुरान में इस बात को सपष्ट कर दिया है कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-को सारे संसारों के लिय दया बनाकर भेजा है, मानव जाति और जिन्न सभी के लिए उनको दया बनाया.
 


ढ)महानताऔर शराफत:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-सबसे महान और शरीफ थे, और महानता ही उनकी पहचान थी,और सभी लोगों को उनके पवित्र चरित्र औरसम्मानजनक पृष्ठभूमि का पता था.
 


ण) अद्वैतवादी:हज़रत मुहम्मद--उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-अल्लाह सर्वशक्तिमान की एकता या एकेश्वरवाद की घोषणा के लिए प्रसिद्ध थे (जिसे अरबी भाषा में "तौहीद"कहते हैं).

 

त) धैर्य: हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-सबसे अधिक सहनशील औरधैर्यवान थे, और उन सारे परीक्षणों और कठनाईयों में उन्होंने धैर्यका ही सहारा लिया जिनका उनको जीवन में सामना करना पड़ा था.
 


थ) शांत और चैन:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-सदा बिल्कुल स्थिर और शांत रहते थे, किसी भी अवसर पर घमंडी नहीं दिखाते थे, और न चीखपुकार नहीं करते थे.



द) एक से अधिक उपाय निकालने का कौशल:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो-बहुत चतुर और अधिक से अधिक उपाय निकालने का कौशलरखते थे, और न सुलझने वाली समस्याओं की गुत्थियां सुलझाते थे, और गंभीर से गंभीर कठिनाइयों निपटते थे.
 


ध)साफ़ और सीधी बात:यह बात सभी जानते थे कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपाऔर सलाम हो- साफ़-सुथरी और खरी-खरी बात करते थे, और किसी भी विषयको स्पष्ट और सीधा बिना भूलभुलैया में डाले बताते थे.वह कम शब्दोँ में अधिक मकसद बयान कर देते थे, वह ज़ियादा बात को समय बर्बाद करने के बराबर मानते थे जिसका कोई फल नहीं.
 



न) दयाशीलता:हज़रत मुहम्मद -उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो- लोगों के साथ अपने व्यवहार में बेहद दयालु और विनम्र थे.वह कभी भी किसी मनुष्य के सम्मानकाअपमाननहीं किये, हालांकि अविश्वासियों और अधर्मियों की ओर से लगातार आपको गालीगलौच किया जाता था.
 


प) विशिष्टता:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-जैसा कि अब भीदुनिया भर में जाना जाता है कि वह सब से अधिक प्रभावशाली थे और हैं, और अतीत और वर्तमान दोनों में बहुत सारे लोगों की जीवन को प्रभावित किया और कियामत तक करते रहेंगे.
 


फ) साहस और वीरता:सच तो यह है कि हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-वीरताऔर बहादुरी जैसे शब्दों को अपनी वीरता के द्वारानए अर्थ दिये, वह सदा और सारे मामलों में सब से अधिक शेरदिल थे, चाहे अनाथों के अधिकारों की रक्षा करने का मामला हो या विधवाओं के सम्मान और इज्ज़त बचाने की बात हो, या संकट में पड़े लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने का मामला हो, सब में आगे आगे रहते थे, वह कभी भी भयभीत नहीं हुवे, भले ही लड़ाई के मैदान में उन के खिलाफ लड़ने वाले शत्रुओं के सेना की संख्या बहुत अधिक होती थी,वह  सत्य और स्वतंत्रता की रक्षाकरने में अपने कर्तव्यों से कभी पीछे नहीं हटे.
 


ब) उनका "वली" होना:अरबी शब्द"वली" एकवचन है और उसका  बहुवचन "औलिया"है, और इस शब्द का दूसरी भाषा में अनुवाद करना मुश्किल है, इस कारण इसे अरबी मेंही रखा गया है, लेकिन यह पैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-के व्यक्तित्व की  विशेषताओं में सबसेमहत्वपूर्ण पहलु है, इस लिए यहाँ इसके विषय में  एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है.कुछ लोगों का कहना है की इस शब्द का अर्थ "संरक्षक" है,और अन्य कहते हैं कि इस का अर्थ "प्यारा"या यूँ कहये कि जिस में आप पूर्ण विश्वास कर सकते हैं,और अपने रहस्यों के विषय में उस पर पूरा पूरा भरोसा करते हैं जैसा कि कैथोलिक ईसाई अपने पादरियों के साथ करते हैं, और आसानी और सादगी से उनको "Friends" या "मित्र" का नाम दे देते हैं, और जब मैं इस विषय पर मेरेएक प्रिय शिक्षक, सलीम मॉर्गन के साथ विचार कर रहा था तो उन्होंने मुझ से कहा की इस शब्द का सब से अच्छा और बिल्कुल उचित अंगरेजी शब्द "Ally"या मित्र है क्योंकि यदि कोई व्यक्ति किसी से अपना लगाव या किसी के ओर झुकाव जताता ही तो ऐसा ही है जैसे कि वह उसको अपना "वली" या मित्र बना लिया, अरबी भाषा में इसे ही "बैअत" (निष्ठा) कहा जाता है,अल्लाह सर्वशक्तिमान ने पवित्र कुरान में हमें आदेश दिया है कि अल्लाह को छोड़ कर हम यहूदियों और ईसाइयों को   "औलिया" या मित्र न बनाएँ, हालांकिधर्मग्रंथ वाले या यहूदी और ईसाई ईमान और विश्वास में हम से बहुत करीब हैं, इसके बावजूद भी हम को यही आदेश है कि हम उनको अपना पंडित या मित्र या "अंतरंग मित्र" न बनाएँ, और अल्लाह सर्वशक्तिमान और उसके पैगंबरहज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-को छोड़ कर उन से लगाव न रखें. निस्संदेहपैगंबर हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-वफादारी के सबसेसुन्दर उदाहरण थे, प्रत्येक समय के लिए सारे  मनुष्यों के लिए सबसे अधिक भरोसेमंद विश्वसनीय थे, यदि उनके पास कोई रहस्य याराज़ रखा जाता था या वह "वली" और मित्र के स्थल में होते थे तो कभी भी उस राज़ को हरगिज़ नहीं खोलते. इसलिए लोग उनको सारे मनुष्यों में सबसे बढ़ कर भरोसा और विश्वास के योग्य समझते थे.
 


भ)लिखना पढ़ना:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-न तो लिखते थे और न पढ़ते थे बल्कि सच तो यह है कि वह अपना नाम भी नहीं लिखते थे,और यदिआज की दुनिया में वह होते तो शायद"हस्ताक्षर" की जगह में "एक्स" या अंगूठे के ठप्पे का प्रयोग करने को कहा जाता था, लेकिन उस समय वह अपने दाएँ हाथ की छोटी उंगली में एक अंगूठी पहनते थे जिस से वह दस्तावेज़ होगा.वह एक मुहर अपने अधिकार को किसी भीदस्तावेज या अन्य देशों के नेताओं और रहनुमाओं की ओर भेजे जाने वाले पत्रों पर मुहर लगाया करते थे.

 

म) आज्ञाकारिता:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-अपनी इच्छाओं और अपने विचारों को अल्लाह सर्वशक्तिमान के आदेशों के सामने कुरबान कर देते थे, बल्कि वह अक्सरअपने अनुयायियों की राय को खुद अपने विचारसे आगे रखते थे, और जितना संभव हो सकता था दूसरों की बात को स्वीकार कर लेते थे.

 


य) उत्साह:हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और सलाम हो-अल्लाह सर्वशक्तिमान के दूतों और पैगम्बरों के बीच अपने कर्तव्य कोनिभानेमें बहुत चुस्त थे, मतलब इश्वर की इच्छा को प्रस्तुत करने के माध्यम से शांति प्राप्त करें यही उनका मिशन था, निस्संदेह वह अल्लाह सर्वशक्तिमान की ओर से सौंपे हुवे संदेश सारे मनुष्यों तक पहुँचने के लिए बहुत अधिक उत्साहित थे, वही संदेश " ला इलाहा इल्लाह मुहम्मदुर-रसूलुल्लाह" अल्लाह को छोड़ कर कोई पूजे जाने का योग्य नहीं और मुहम्मद अल्लाह का दूत हैं.(मतलब:अल्लाह को छोड़ कर कोई सत्य खुदा नहीं और मुहम्मद अल्लाह का दूत हैं)

 


हम जितना कुछ भी कहें और जितनी भी उनकी तारीफ़ करें वह सब आरम्भ भी है उनके गुणों की सीमा तक कौन है जो पहुँच सके.
हज़रत मुहम्मद-उन पर इश्वर की कृपा और स
लाम हो-सचमुच हर मामले में अद्भुतथे.उन्होंने एक ऐसा सम्पूर्णसंदेश दिया जो जीवन के  सारे पहलुओं को शामिल है, नींद से जागने से लेकर फिर बिस्तर पर जाने तक का और जन्म से लेकर मृत्यु तकका सारा रास्ता खोल खोल कर बयान कर दिया गया है, यदि मनुष्य जीवन में उस तरीके या धर्म को अपना ले तो वह इस जीवन में और अगले जीवन में भी सबसे बड़ी सफलता प्राप्त कर लेगा.

हज़रत मुहम्मदके विषय में संक्षिप्त वर्णन Yusuf Estes

हो सकताहैकेआपएकप्रोटेस्टेंट या कैथोलिकइसाईहोंया यहूदीहों, या नास्तिक हों, या फिर आप तत्वमीमांसा को न मानने वालों में से हों,याफिर आपका संबंध आजकेसंसारकेधर्मिक मतोंमें सेकिसी से भी हो, याआपएकसाम्यवादीहों, यायह मानतेहोंकि मानव लोकतंत्र इस धरती पर आधार बल्कि सब कुछ है. आपजोकोईभीहोंयाआपकेजोभीवैचारिक, राजनितिकऔरसामाजिकविचारहोयाजोभीसमाजीसिद्धांतोंपर आप चलते हों, निस्संदेह आप इस मनुष्य मतलब हज़रत मुहम्मद-उनपर शांति और आशीर्वाद हो- केबारेमेंकुछ न कुछ जानते ही होंगे.

निस्संदेह वह जिस जिस के भी पैर इसधरती पर पड़े हैं उन्सभों में सब से अधिक महान हैं. उन्हों ने इस्लाम धर्म की ओर लोगों को आमंत्रितकिया और एक राष्ट्र का निर्माण किया और नैतिकता की नींव डाली इसके अलावा  बहुत सारी राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों को सही धारे पर स्थिति किया और इस माध्यम से एक स्वस्थ, सशक्त और प्रभावी समाज की स्थापना की जिस के पास पिछले दशक तक के लोगों के जीवन को बदलने की शिक्षाएं उपलब्ध हैं. वह 570 ई. में अरब प्रायद्वीप में पैदा हुवेऔर जब वह चालीस वर्ष की उम्र को पहुँचे तब उन्होंने परमेश्वर के सच्चे धर्म इस्लाम की ओर लोगों को आमन्त्रण करना प्रारंभ किया और अपने उपदेश और धर्म का प्रचारशुरू किया,और जब वह अपनी उम्र के तिरसठवें साल को पहुंचे तो इस संसार से चल बसे.
आप अपनी आकाशवाणी के केवल तेईस साल के भीतर ही उन्होंने पुरे अरब प्रायद्वीप को मूर्ति पूजा और बुतपरस्ती से हटाकर एक भगवान की पूजा में लगा दिया, आदिवासी झगड़ों और आपसी युद्धों के दलदल से निकल करएक समायोजित औरसंगठित समुदाय में बदल कर रख दिया, इसी तरह  मतवालापन, मस्ती और ऐयाशी के कीचड़ से निकाल कर पवित्रता औरधर्मपरायणता के रस्ते पर खड़ा कर दिया, अराजकता और अव्यवस्था की जीवन से मुक्त करके आज्ञाकारी और मार्गदर्शन की चोटी पर पहूँचा दिया, नैतिक पतन की अथाह गहराई से निकाल करशिष्टाचार के शीर्ष    
 पर ला खड़ा किया, इतिहास की आंखों ने इस प्रकार का विस्तृतपरिवर्तन  कभी नहीं देखा, न उनसे पहले कभी हुवा और न उनके बाद अब तक हुवा और न होगा,आप कल्पना कर सकते हैं कि यह सब बदलावा कितने समय में हुवे थे? केवल दो दशकों से कुछ ही अधिक समय के भीतर.

इससंसार में बहुत सारेबड़े बड़े व्यक्ति गुज़रे हैं, परन्तु वे जीवन के केवलएकयादो क्षेत्रमेंही विशेषज्ञ थेजैसेधार्मिक मान्यताओं या सैन्य नेतृत्व . इस पर भी समय के बीतने के साथ साथ उनकी शिक्षाएं और उपदेश भी मिटती गईं और अंतिम में कुछ नहीं बचा. और मानवीय समुदायमेंपरिवर्तनके कारण उनकीशिक्षणकी सफलताऔरअसफलताकोनाप्ना भी मुश्किल है. बल्कि उनके शिक्षणोंकोफिरसे निर्माण करना अब तो बिल्कुल असंभव है.
लेकिनहज़रत मुहम्मद-उनपर शांति और आशीर्वाद हो-के बारेमेंऐसा नहींहै, क्योंकि उन्होंने मानवविचारोंऔरआचरणोंके एक दो नहीं बल्कि सारे और विभिन्नक्षेत्रोंमेंपूरी तरह सफलताप्राप्त  किया, और मानव इतिहासमें सुर्य की तरह चमके बल्कि पुरे मानव इतिहास में उनका उदाहरण नहीं है.  केवल यही नहीं बल्कि उनके निजी और सार्वजनिक जीवन की प्रत्येक घटना एक एक करके विश्वसनीय रूप से आख्यान की गई, और ईमानदारी के साथ  सदाके लिए उन बातों को सुरक्षित कर दिया गया, और इन बातों के बयान के सभी माध्यमों को अच्छी तरह जांचा गया, यह काम उस समय के केवल आज्ञाकारीऔर माननेवाले द्वारा हीनहींबलके हठधर्मी और आलोचक लोगों के द्वारा भी किया गया.
हज़रत मुहम्मद-उनपर शांति और आशीर्वाद हो-एकधार्मिकगुरुएकसमाजसुधारक, एकनैतिकरहनुमा, एकबड़ेप्रशासनिक, एकवफादारमित्रएकअच्छेसाथी, एकइमानदारपति, एकप्रेमकरनेवालेपिताथे. यहसबगुणउनमें एक साथ उपस्थित थे. इतिहास मेंकोईभी व्यक्ति इन सभी गुणोंमें उनसे आगे नहीं होसका, आगे बढ़ना तो दूर की बात है बल्कि जीवन के किसी एक क्षेत्र में भी उनकी बराबरी तक नहींकरसका. वह अपना उदाहरण खुद थे दूसरा कोई आपके जैसा न होसका, निस्संदेह वह जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सिद्ध थे.
यह सब के होते पर मुहम्मद-उनपर शांति और आशीर्वाद हो-एक मनुष्यथे  परन्तु वहएक पवित्र योजना की आकाशवाणी रखते थे, पूरी मानवता कोकेवल एकअद्वितीय ईश्वर की पूजा पर इकठ्ठा करना चाहते थे,औरउसे  जीवन गुजारने के सही रास्ते पर खड़ा कर दिया जाए परमेश्वर की आज्ञाकारिता का सही ढंग सिखा दिया जाए. अपनी बातें और कामों से सदा यही बात लोगों के दिलों में बैठाने का प्रयास करते थे कि वह खुद केवलपरमेश्वरके एक भक्त और उसके पैगंबर हैं.
आज चौदहसौसालबीत जाने के बादभी, हज़रत मुहम्मद-उनपर शांति और आशीर्वाद हो-के उपदेश हमारे बीच बिलकुल साफ सुथरी बिनाकिसी प्रकार के घटाव या बढ़ाव या विकृति के जिंदा हैं, जी हाँआजभी जिंदा हैं और मानवताकी सारी बीमारीयों और रोगों के उपचार की शक्ति रखते हैं जैसा किउनकीजीवनमेंनिरोग करते थे.याद रहे कि यहहज़रत मुहम्मद-उनपर शांति और आशीर्वाद हो-केमाननेवालोंकाही दावानहीं है  बल्कियही अपरिहार्य नतीजा है जो आलोचनात्मक और इंसाफपसंदइतिहासके द्वारा लिखित रूप में सुरक्षित है.
एक विचारक और दिलचस्पी रखनेवाले व्यक्ति होने के नाते आपको अधिक से अधिक जो करना है वह इतनी सी बात है कि आप अपने मन से पूछें क्या यह  क्या यहअसाधारण और क्रांतिकारी बातें वास्तव में सच हैं या नहीं? मान लीजिए कि आप नेउस महान मनुष्य हज़रतमुहम्मद-उनपर शांति और आशीर्वाद हो- मुहम्मद इस से पहले  नहीं सुना है तो क्या अब भी समय नहीं आया कि आपइन महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर देने के लिये तय्यार हों,और उन के विषय में कुछ जानकारी लेने का प्रयास करें.
इस से आपकी कुछ क्षतितो होगी नहींलेकिन  होसकता है कि यह आपकी जीवन में एक नए अध्याय की शुरुआत हो.
हमआपकोआमंत्रितकरतेहैंकीआपइसमहान मनुष्यकेबारेमेंखोजें, मेरा मतलब हज़रत मुहम्मद-उनपर शांति और आशीर्वाद हो-के बारे में जिन से अच्छा इस धरती पर आज तक कोई हुवा न कभी होगा.

पैगंबर मुहम्मद ने क्या आदेश दिया ? Yusuf Estes

पैगंबर मुहम्मद ने क्या आदेश दिया ?
पैगंबर मुहम्मद -शांति और आशिर्वाद हो उनपर- ने कई  महत्वपूर्ण सिद्धांतों और नैतिकताओं की बुनयाद रखी, केवल यही नहीं बल्कि युद्ध के बहुत सारे ऐसे नियमों को स्थापित किया जिनका युद्धों के दौरान ख्याल रखना ज़रुरी है, और ----यह सारे नियम इतने ऊँचे हैं कि जिनेवा कन्वेंशन द्वारा उल्लिखित नियम भी इनके सामने बौने पड़ते हैं.


नीचे दिये गए कुछ नियमों पर ज़रा विचार करें:
सभी निर्दोष जान पवित्र होती है और किसी को भी नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए, सिवाय उनके जो इस्लाम धर्म से युद्ध करे. एक जान को बचाना पूरी दुनिया के लोगों की जान बचाने के बराबर है, और इसी तरह एक निर्दोष जिंदगी को नष्ट करना पूरी दुनिया के लोगों की जीवनों को नष्ट करने के बराबर है.
किसी भी जनजाति का जातिसंहार या (कत्लेआम) न्याय विरुद्ध है, यदि किसी जनजाति ने मुसलमानों के खिलाफ नरसंहार भी किया हो तब भी उसके इंतेक़ाम में कत्लेआम जाएज़ नहीं है. बल्कि पैगंबर मुहम्मद -शांति और आशिर्वाद हो उनपर- के द्वारा आम माफी और आपसी सुरक्षा समझौता की पेशकश की और इनमें सभी शामिल थे बल्कि इनमे तो वे भी शामिल थे जिन्हों ने उनके साथ कई बार समझोतों का उल्लंघन किया था. और उन्होंने ऐसे लोगों पर भी हमला करने की अनुमति नहीं  दी यहाँ तक यह स्पष्ट रूप से पता जल जाए कि वे गद्दार हैं, और सदा पैगंबर हज़रत मुहम्मद -शांति और आशीर्वाद उन पर हो- और मुसलमानों को किसी भी कीमत पर युद्धों में नुकसान पहूँचाना चाहते, और इसी कारण कुछ यहूदियों को सज़ा दी गई थी जिन्होंने मुसलमानों के साथ गद्दारी कि थी.
 

उस समय दास बना लेना आम बात थी, और सारी जातियों और जनजातियों में इस का चलन था. लेकिन इस्लाम धर्म जब आया तो  गुलामों को मुक्त कराने के लिए प्रोत्साहित किया और लोगों को बताया कि यदि वे उनके पास पहले से उपस्थित गुलामों को मुक्त करेंगे तो अल्लाह उनको  बड़ा इनाम देगा. इसका उदाहरण खुद पैगंबर मुहम्मद-शांति  और आशीर्वारद उन पर हो- के नौकर ज़ैद बिन हरीसा हैं जो वास्तव में उन के बेटे की तरह माने जाते थे और बिलाल दास जिनको अबू बक्र ने केवल मुक्त कराने के उद्देश्य से ही खरीदा था.
 

जबकि पैगंबर मुहम्मद-शान्ति और आशीर्वाद उनपर हो-पर हत्या के कई प्रयास किए गए थे (सबसे प्रसिद्ध उस रात का हमला था जब पैगंबर मुहम्मद-शान्ति और आशीर्वाद उनपर हो- और अबू बक्र मक्का को छोड़ कर मदीना जारहे थे, और उन की जगह पर हज़रत अली बिस्तर पर  लेटे थे),यह सब होने के बाद भी उन्होंने अपने साथियों में से किसी को इन प्रयासों में शामिल होने वालोँ की हत्या की अनुमति नहीं दी. इसका सबूत यह है कि, जब वह मक्का में विजयी होकर प्रवेश किए तो उनके  सब से पहले शब्दों में यह शब्द शामिल थे और उन्होंने सब से पहले अपने अनुयायियों को आदेश दिया की  फलां फलां जनजातियों और परिवारों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाना है, और यह एक सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है और सच तो यही है कि उनके सभी कार्य में क्षमता और विनम्रता साफ़ झलकते थे.
पैगंबर मुहम्मद-शान्ति और आशीर्वाद उनपर हो-के पैगंबर घोषित किए जाने से तेरह वर्ष तक फौजी लड़ाईयां मना  थी , बावजूद इसके कि अरब के लोग तो जंग में अधिक जानकारी रखते थे और उनको युद्ध लड़ने के ढंग सिखाने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वे तो एक एक युद्ध को कई कई दशकों तक लड़ते रहते, यह सब होते पर भी इस्लाम धर्म ने केवल उसी समय युद्ध की अनुमति दी जब अल्लाह ने युद्ध का उचित तरीका पवित्र कुरान में उल्लेख कर दिया और उसके उचित अधिकार और आज्ञाओं को खोल खोल कर समझा दिया, अल्लाह के आदेश ने बता दिया कि किस पर, कैसे, कब और किस समय तक हमला होना उचित है. और फिर बुनियादी ज़रुरत के ढांचे को नष्ट करना बिल्कुल सख्ती से मना है सिवाय उन विशेष स्तिथियों के जिनको अल्लाह ने उल्लेख किया है और वे  गिनेचुने स्तिथि थे.



वास्तव में हज़रत पैगंबर-शांति और आशीर्वाद हो उन पर-को उनके दुश्मन सदा गालीगलौज का निशाना बनाते थे, इसपर भी वह उनके लिए  मार्गदर्शन और भलाई की दुआ देते थे. इस बारे में मशहूर उदाहरण है  कि जब हज़रत पैगंबर-शांति और आशीर्वाद हो उन पर-"ताइफ" को गए थे और जब वहाँ के नेताओं ने आपके निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया,और उपयुक्त आतिथ्य का भी ख्याल नहीं रखे, यह तो यह वे सड़क के बच्चों को उनके खिलाफ ललकार दिये और वे उनपर पत्थर बरसाने लगे यहाँ तक कि उनका पवित्र शरीर घायल होगया और खून से उनके जूते भर गए, इस बीच हज़रत जिबरील- शांति हो उनपर- ने उन लोगों से बदला और इंतिकाम की पेशकश की, और यदि वह चाहेंगे तो अल्लाह के आदेश से वहाँ पहाड़ उनपर टूट पड़ेंगे और वे धरती में पिस जाएंगे. तब भी उन्होंने उनको श्राप नहीं दिया बल्कि एक अल्लाह की पूजा की ओर आने की दुआ देते रहे. 


पैगंबर मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद उन पर हो-ने बता दिया प्रत्येक  मनुष्य इस्लाम के मानव स्वभाव पर जन्म लेता है (मतलब अल्लाह की मर्ज़ी और उसके आदेश के अनुसार चलना और उसी की बात मानना और उसकी इच्छा और आज्ञाओं का पालन करना) भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति को वर्तमान छवि पर उसकी योजना के अनुसार बनाया है, और उनकी आत्मा अल्लाह की राज्य है. और फिर जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं प्रचलित समाज और अपने पूर्वाग्रहों के प्रभाव के अनुसार अपने विश्वास को  बिगाड़ना शुरू कर देते हैं.


मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उन पर -ने अपने अनुयायियों को आदम, नूह, इब्राहीम, याकूब, मूसा, दाऊद, सुलैमान और यीशु-सबके सब पर शांति हो- के एक ही भगवान पर विश्वास और ईमान रखने का आदेश दिया,और सबको बताया कि यह सब अल्लाह के सच्चे दूत और पैगंबर हैं और उसके भक्ति हैं, केवल यही नहीं बल्कि उन पैगंबरों की स्थिति और ग्रेड का भी बहुत अधिक ख्याल रखा.लेकिन उनके बीच बिना कोई भेद किए, बल्कि अपने अनुयायियों को आदेश दिया कि  जब भी उन में से किसी  पैगंबर का नाम उल्लेख किया जाए तो उस समय यह कहकर दुआ दें, "शांति हो उन पर " इसके इलावा उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया है कि टोरा (ओल्ड टैस्टमैंट), ज़बूर (भजन) और इंजील (या नई टैस्टमैंट) के मूल या स्रोत एक ही हैं जहां से कुरान उतरा है वहीं से वे भी उतरे हैं क्योंकि अल्लाह ने अपने दूत "जिबरील" के  द्वारा इन सब को उतारा है. और अल्लाह ने यहूदियों से कहा कि अपनी उतारी हुई  पुस्तक के अनुसार न्यायाधीश करें लेकिन वे लोग उनमें से कुछ छिपाने का प्रयास किए, यह सोच कर कि पैगंबर मुहम्मद-शांति हो उन पर- लिखते पढ़ते नहीं हैं इसलिए उनको पता नहीं चल सकेगा लेकिन अल्लाह ने तो वाणी के माध्यम से उनको सब कुछ बता दिया.



हज़रत पैगंबर-शांति और आशीर्वाद हो उनपर-ने कई घटनाओं के विषय में पहले से ही भविष्यवाणी की थी जो अभी हुवे नहीं थे बल्कि बाद में होने वाले थे, और फिर वास्तव में हुवे भी वैसे ही जैसा कि उन्होंने भविष्यवाणी की थी क्योंकि अल्लाह ने उनको वाणी के द्वारा होने से पहले ही उनको बता दिया था. उन्होंने बहुत सारी बातोँ का उल्लेख किया है जिनके विषय में उस समय के किसी भी मनुष्य को कुछ भी पता नहीं था, लेकिन आज हम देख रहे हैं कि एक बाद एक हर समय विज्ञान, चिकित्सा, जीव विज्ञान और भ्रूणविज्ञान और मनोविज्ञान और खगोल विज्ञान और भूविज्ञान, और ज्ञान की कई शाखाओं में सबूत पर सबूत सामने आते जा रहे हैं. केवल यही नहीं बल्कि अंतरिक्ष यात्रा और बेतार संचार के विषय में भी जिनको हम आज अपने कामों में प्रयोग कर रहे हैं  और जिन के विषय में अब कोई विवाद  ही नहीं है जब कि भूतकाल में कोई सोचा भी नहीं था.



पवित्र कुरान ने फिरौन की कहानी बताया कि वह हज़रत मूसा-शांति हो उनपर-का पीछा करने के दौरान लाल सागर में डूब गया, परमेश्वर सर्वशक्तिमान ने पवित्र कुरान में यह भी बताया कि फिरौन के शव को  निशानी और चिन्ह के रूप भविष्य में आने वाले लोगों के लिए सुरक्षित रखेगा. डॉ. मौरिस बुकाइले अपनी पुस्तक "बाइबल और कुरान और विज्ञान"  में कहा है कि फिरौन के शरीर की जो बात है वह मिस्र में खोज की गई है और अब दिखाने के लिए मुजियम घर में रखा हुवा है जो देखना चाहे वह देख ले,यह घटना तो  हज़रत पैगंबर-शांति और आशीर्वाद हो उनपर- के समय से कई हज़ार साल पहले घटी थी, और फिरौन का शरीर तो अभी अभी पिछले कुछ दशकों के दौरान सामने आया और इस तरह इसकी सच्चाई पैगंबर मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उनपर-की मृत्यु के सदियों के बाद प्रकाशित हुई.


पैगंबर मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उनपर- या उनके अनुयायियों में से किसी ने भी कभी भी यह दावा नहीं किया कि वह भगवान या ईश्वर का पुत्र हैं या  देवता हैं बल्कि सदा से यही कहना है कि  वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पैगंबर हैं परमेश्वर ने उन्हेँ अपना एक दूत चुना. उन्होंने सदा इसी बात पर जोर दिया कि लोग अकेले भगवान की महिमा करें और किसी भी रूप में उनकी अपनी या उनके साथियों की पूजा न करें, जबकि बहुत सारे लोग ऐसे आम लोगों को भी जो अब जिवित भी नहीं हैं और जिनके नाम काम सब कुछ मिट चुके हैं ऐसे लोगों को भी भगवान के पद तक पहूँचा देते हैं. और थोड़ा भी नहीं झिझकते हैं, जबकि  इतिहास गवाह है कि उन व्यक्तियों में से किसी से भी उन उन योगदानों का एक भाग भी प्राप्त नहीँ हुवा जो   पैगंबर मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उनपर-ने पूरी मानवता के लिए किया.
 


सब से अधिक मुख्य कारण जो अल्लाह के पैगंबर -शांति और आशीर्वाद हो उनपर- को उत्साहित  करता था वह केवल यही था कि पूरी मानवता को एक ही अल्लाह की पूजा पर इकट्ठा कर दिया जाए, जो आदम और दूसरे सारे पैगंबरों-उन सब पर शांति हो- का पालनहार है, वह सदा यही लक्ष्य को पूरा करना चाहते थे कि सारी मानवता परमेश्वर के द्वारा निर्धारित नैतिक नियमों को समझ लें और उनको लागू करें.
 

और आज चौदह शताब्दियां बीत जाने के बाद भी अल्लाह के पैगंबर -शांति और आशीर्वाद हो उनपर- की  जीवन और उनकी शिक्षाऐं जूं की तुं बिना किसी कमी बेशी के उपस्थिति हैं, जिन में मनुष्य के सारे रोगों के उपचार के लिए अनन्त आशा मौजूद है, बिल्कुल वैसे ही जैसा कि अल्लाह के पैगंबर के समय में हुवा था. न तो यह मुहम्मद- शांति और आशीर्वाद हो उनपर- या उनके अनुयायियों का दावा है   बल्कि यही इतिहास का कहना है, और महत्वपूर्ण तारीख और निष्पक्ष इतिहास का फैसला है जिस से भागना संभव नहीं हैं.
 

मुहम्मद-शांति और आशीर्वाद हो उनपर- ने स्प्ष्ट कहा कि वह अल्लाह के भक्ति, उसके  दूत, और  उसके पैगंबर  हैं, और वह एक ही परमेश्वर है जिसने आदम और  इब्राहीम  और  मूसा और  दाऊद और  सुलैमान  और मरियम के पुत्र यीशु-शांति हो उन सब पर-को पैगंबर बना करे भेजा, और पवित्र कुरान परमेश्वर की ओर से जिबरील फरिश्ता-शांति हो उनपर- के द्वारा उनपर वाणी के रूप में उतारा गया. और उन्होंने लोगों को इस बात पर ईमान रखने का आदेश दिया की अल्लाह एक है उसका कोई साझेदार नहीं है. इसी तरह उसके आदेशों पर जहाँ तक होसके चलने और उसकी शिक्षाओं के पालन का हुक्म दिया इसके इलावा उन्होंने खुद को  और  अपने अनुयायियों को हर प्रकार की बुराई और अपमानजनक व्यवहार से दूर रखा, इसी तरह खाने-पिने का उचित तरीक़ा सिखाया  केवल यही नहीं बल्कि शौचालय का भी ढंग बताया. बल्कि हर हर काम का उचित ढंग बताया. और यह भी समझा दिया कि यह सब अल्लाह की और से उतारी गई.
 

वह बुरी प्रथाओं और गंदी आदतों से अपने आप को और अपने अनुयायियों को मना किया , उन्हें खाने, पीने का उचित ढंग सिखाया, केवल यही नहीं बल्कि शौचालय के विषय में भी सही तरीका बताया,   सच तो यह है कि उन्होंने हर प्रकार के व्यवहार का साफ रास्ता दिखा दिया, और उन्होंने दावा किया कि यह अल्लाह की ओर से उतारा हुआ संदेश है

मुहम्मद-शांति हो उन पर-के व्यवहार के विषय में कुछ शब्द: mohammad

मुहम्मद-शांति हो उन पर-के व्यवहार के विषय में कुछ शब्द: (पहला भाग)   
पृथ्वी पर लगभग हर कोई आज पैगंबर मुहम्मद-शांति और अशीर्वाद हो उन पर- का चर्चा कर रहा है. लोग यह जानना चाहते हैं कि वास्तव में वह थे कौन? उनके उपदेश थेक्या? कुछ लोग को उनसे क्यों इतना प्यार है और कुछ लोगों को उनसे इतनी नफरत क्यों है? क्या वह अपने दावे पर खरा उतरे? क्या वह एक पवित्र आदमी थे? क्या वह परमेश्वर की ओर से नबी (इश्वदुत) बनाए गए थे? इस आदमी के बारे में सच क्या है जिनका नाम मुहम्मद है?
हम सत्य की खोज कैसे कर सकते हैं? और क्या हम पूरी ईमानदारी के साथ सही परिनाम तक पहुँच सकते हैं?
हम यहाँ बहुत ही सरल ऐतिहासिक सबूतों और तथ्यों के साथ शुरू करते हैं, जिनको हजारों लोगों ने हम तक पहूँचाया है, जिनमें से कई तो उनको व्यक्तिगत रूप से जानते थे, और जो हम यहाँ उल्लेख करने जारहे हैं वे निम्नलिखित पुस्तकों, पांडुलिपियों, ग्रंथों और वास्तविक प्रत्यक्षदर्शी खातों पर आधारित हैं. और वे तथ्य और सबूतइतने अधिक हैं कि इस संदर्भ में हम उनकी गिनती भी नहीं कर सकतेहैं. लेकिन वे सभी के सभी अभी तक दोनों मुसलमानों और गैर मुसलमानों द्वारा सदियों बीत जाने के बाद भी मूल रूप में संरक्षित हैं.
  उनका नाम मुहम्मद है वह अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब के पुत्र थे  उनका जनम मक्का में(जीको अब सऊदी अरब कहा जाता है): वर्ष ५७० (ईसाई युग) में हुआ था और ६३३ इसवीं में "यसरब" सऊदी अरब के पवित्र मदीना में निधन हो गया:

क) उनके  नाम:जब वह पैदा हुवे तो  उनके दादाअब्दुल मुत्तलिब ने उनको मुहम्मद का नाम दिया. और इसका मतलब है " जिनकी बहुत प्रशंसा हो" या "एक सराहा हुवा मनुष्य" बाद में जिन लोगों ने जब  उनको सच्चा और ईमानदार स्वभाव का पाया तो उनके द्वारा उनको "सिद्दीक़"(सच्चा) कहा जाने लगा, इसी तरह उनकी ईमानदारी की वजह से और सब के साथ हमेशा भरोसा कायम रखने और लोगों को जूं की तुं उनकी चीजें वापस देने के कारण उन्होंने "अल-अमीन"(विश्वसनीय) भी कहा जाता था. और जब जन-जातियों का एक दूसरे के खिलाफ संघर्ष होता था तो  दोनों पक्ष लड़ाई के दौरान अपनी अपनी संपत्ति उनको सौंपते थे , भले ही वह उनके ही आदिवासियों के खिलाफ युद्ध करे, क्योंकि उन्हें पता था कि वह हमेशा लोगों की संपत्ति जूं की तुं वापस देते हैं और कभी  भरोसा नहीं तोड़ते हैं चाहे जो भी होजाए. इन नामों से यही झलकता है कि उन के व्यक्तित्व में ईमानदारी, निष्ठा और विश्वसनीयता कुटकुट कर भरी थी और जन-जातियों के रिश्तेदारों के बीच सुलह के लिए उनके उत्साह और उनके उपदेश जाने और माने जाते थे.
उन्होंने अपने अनुयायियों को हमेशा (भाई बहन और अन्य करीबी रिश्तेदारों) के बीच रिश्ते के संबंधों को सम्मान देने का आदेश दिया.
यह बात जॉन की बाइबिल के अध्याय 14 और 16 में वर्णित भविष्यवाणी के साथ सही फिट बैठती है जिस में एक "सत्य की आत्मा" या "मुश्किल में काम आनेवाला" "अधिवक्ता" के आने की भविष्यवाणी की गई. 

ख)वह हज़रत इस्माईल -शांति हो उनपर- के माध्यम से हज़रत इब्राहीम-शांति हो उनपर-के संतान में आते हैं, क्योंकि अरब की महान जनजाति कुरैश हज़रत इस्माईल -शांति हो उनपर- की संतान से फूटा हुआ एक शाखा था,जो उन दिनों मक्का के शासक थे, हो. और हज़रत मुहम्मद वंश धारा सीधा हज़रत इब्राहीम -शांति हो उनपर- से मिलता है, यह निश्चित रूप से इस बिंदु से  देटोरोनोमी के (15:18 अध्याय) ओल्ड टैस्टमैंट (टोराह) की भविष्यवाणी के पूर्ति हो जाने की पुष्टि होती है.
के लिए बात कर सकता (18:15 अध्याय) भविष्यवाणी का कहना है कि वह मूसा की तरह एक नबी (ईश्दूत)होंगे जो अपने भाइयों की और से नुमाइंदा थे.
ग) वह सर्वशक्तिमान ईश्वर की आज्ञाओं का पालन बिल्कुल उसी तरह किये जैसा कि उनके महान दादा और पुराने समय के नबियों (ईश्दुतों) ने कियाथा, कुरान जो दूत गेब्रियल द्वारा मुहम्मद पर उतारा गया कहता है:
"قل تعالوا أتل ما حرم ربكم عليكم ألا تشركوا به شيئا وبالوالدين إحسانا ولا تقتلوا أولادكم من إملاق نحن نرزقكم وإياهم ولا تقربوا الفواحش ما ظهر منها وما بطن ولا تقتلوا النفس التي حرم الله إلا بالحق ذلكم وصاكم به لعلكم تعقلون (الأنعام: 151).

"कह दो: आओ, मैं तुम्हें सुनाऊँ कि तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे ऊपर क्या पाबंदियाँ लगाई है: यह कि किसी चीज़ को उसका साझीदार न ठहराओ और माँ-बाप के साथ सद्व्यवहार करो और निर्धनता के कारण अपनी संतान की हत्या न करो, हम तुम्हें भी रोज़ी देते हैं और उन्हें भी, अश्लील बातों के निकट न जाओ, चाहे वे खुली हुई हों या छिपी हुई हों, और किसी जीव की, जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया है, हत्या न करो, यह और बात है की हक़ के लिये ऐसा करना पड़े.ये बातें हैं जिनकी ताकीद उसने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुद्धि से काम लो.

[पवित्र कुरान, अल-अनआम 6:151]


घ)मुहम्मद-शांति हो उन पर-पूरे जीवन भर सदा परमेश्वर की एकतापरविश्वासके प्रतिबद्ध रहे और उसके साथ किसी भी अन्य "देवताओं" को भागीदार नहीं बनाए. यहीविचारधाराओल्ड टैस्टमैंट में सब से पहला उपदेश है (देखये एक्सोडस अध्याय 20 और देयोटोरोनोमी अध्याय ५) और नई टैस्टमैंट (मार्क, अध्याय 12 कविता29).

ङ)मुहम्मद-शांति हो उन पर-अपने अनुयायियों को सर्वशक्तिमान अल्लाह के आदेश के पालन करने और अल्लाह के दूत गेब्रियल द्वारा उनपर उतारे गए आज्ञाओं की प्रतिबद्धता का आदेश दिया. पवित्र कुरान में अल्लाह  कहता है:
 إن الله يأمر بالعدل والإحسان وإيتاء ذي القربى وينهى عن الفحشاء والمنكر والبغي يعظكم لعلكم تذكرون  (النحل:90)        
निश्चित रूप सेअल्लाह आदेश देता है पूर्ण न्याय का और अच्छे बर्ताव का और रिश्तेदारों को मदद देने का और वह अश्लीलता , बुराई और अत्याचार से तुम्हें रोकता है.(पवित्र कुराना, अन-नहल:९०)

)  मुहम्मद-शांति हो उन पर-कभी भी उनकी आदिवासियों के बीच  फैली मूर्ति पूजन नहीं किया और न उन मूर्तियों के लिये झुका जिन्हेँ मानव हाथ  निर्मित करता है.बावजूद इसके यही आदत उनके जनजाति के लोगों के बीच प्रचलित थी, उन्होंने अपने अनुयायियों को केवल एक भगवान (अल्लाह) के पूजा का आदेश दिया वही(अल्लाह) जोआदमइब्राहीममूसा और सभी इश्दुतों का भगवान है-शांति हो उन सब पर- कुरान में है:
 وما تفرق الذين أوتوا الكتاب إلا من بعد ما جاءتهم البينة وما أمروا إلا ليعبدوا الله مخلصين له الدين حنفاء ويقيموا الصلاة ويؤتوا الزكاة وذلك دين القيمة. (البينة: 4،5)
और वे लोग जिन्हें पुस्तक मिली थी(यहूदी और ईसाइ) विवाद नहीं किये लेकिन उनके पास स्पष्ट सबूतभक्ति को केवल अकेले उसी के लिए रखें और किसी की ओर न करें और नमाज़ पढ़ते रहें और दान दें: और वही सही धर्म है.
(पवित्र कुरान अल-बय्यिनाह:98:4-5)
वह आदमी के बनाए देवताओं या छवियों को कभी नहीं पूजे बल्कि वह सदा उन जटिलताओं और गिरावटों से नफरत करते रहे जो मूर्तिपूजा के कारण पनपते हैं.


छ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-हमेशा अधिक से अधिक     अल्लाह के नाम का सम्मान और महानता करते थे, उन्हों ने     कभी भी गौरव के लिये इस पद को प्रयोगनहीं किया, बल्कि    वह अपने अनुयायियों को सीमा से बाहर अपनी बड़ाई से सदा    रोकते थे और "सर्वशक्तिमान ईश्वर का भक्त" जैसे नामों के     इस्तेमाल का अपने  अनुयायियों को सलाह देते थे.

  
)  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने सदा उचित रूप से        अल्लाह की  पूजा किया और अपने परदादा इब्राहीम और        इस्माइल-शांति हो उन पर-से उनतक सही तरीके से पहुंचे थे    उसी पर चलते थे. यहाँ कुरान के दूसरे अध्याय से कुछ आयतें     हैं इन्हें ज़रा बारीकी और ध्यान से पढ़ें.   
 " وإذ ابتلى إبراهيم ربه بكلمات فأتمهن قال إني جاعلك للناس إماما قال ومن ذريتي قال لا ينال عهدي الظالمين "
और याद करो जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों में परीक्षा ली तो उसने उनको पूरा कर दिखाया, उसने कहा: मैं तुझे सारे मनुष्यों का सरदार बनानेवाला हूँ, उसने निवेदन किया : और मेरी संतान में भी , उसने कहा: जालिम लोग मेरे इस वचन के अंतर्गत नहीं आ सकते.
" وَإِذْ جَعَلْنَا الْبَيْتَ مَثَابَةً لِّلنَّاسِ وَأَمْناً وَاتَّخِذُواْ مِن مَّقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى وَعَهِدْنَا إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ أَن طَهِّرَا بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْعَاكِفِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ "
और याद करो जब हमने इस घर(काबा) को लोगों के लिये केन्द्र और शंतिस्थ्ल बनाया- और इब्राहीम के स्थल में से किसी जगह को नमाज़ की जगह बना लो , और इब्राहीम और इस्माइल को जिम्मेदार बनाया, तुम मेरे इस घर का तवाफ़ करनेवालों और एतेकाफ़ करनेवालों के लिये और रुकू और सजदा करनेवालों के लिये पाक-साफ रखो.
" وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ اجْعَلْ هَذَا بَلَدًا آمِنًا وَارْزُقْ أَهْلَهُ مِنَ الثَّمَرَاتِ مَنْ آمَنَ مِنْهُم بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الآخِرِ قَالَ وَمَن كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُ قَلِيلاً ثُمَّ أَضْطَرُّهُ إِلَى عَذَابِ النَّارِ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ "
"और याद करो जब इब्राहीम ने कहा: हे मेरे पालनहार! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासीयों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएं, उसने कहा:और जो इनकार करेगा थोड़ा लाभ तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है."
" وَإِذْ يَرْفَعُ إِبْرَاهِيمُ الْقَوَاعِدَ مِنَ الْبَيْتِ وَإِسْمَاعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّا إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ "
"और याद करो जब इब्राहीम और इस्माइल इस घर की बुनयादें उठा रहे थे ,(तो उन्होंने प्रर्थना की)हे हमारे पालनहार! हमारी ओर से इसे स्वीकार कर ले ,निस्संदेह तू सुनता-जनता है."
" رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِن ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُّسْلِمَةً لَّكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبْ عَلَيْنَا إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ "
"हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से अपना एक आज्ञाकारी समुदाय बना :और हमें हमारे इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा स्वीकार कर, निस्संदेह तू तौबा स्वीकार करनेवाला, अत्यंत दयावान है".
" رَبَّنَا وَابْعَثْ فِيهِمْ رَسُولاً مِّنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُزَكِّيهِمْ إِنَّكَ أَنتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ "
"हे हमारे पालनहार! उनमें उन्हीं में से एक ऐसा  रसूल उठा जो उन्हें तेरी आयतें सुनाए और उनको पुस्तक और बुद्धिशिक्षा दे और उन (की आत्मा) को विकसित करे.निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली तत्त्वदर्शी है."
" وَمَن يَرْغَبُ عَن مِّلَّةِ إِبْرَاهِيمَ إِلاَّ مَن سَفِهَ نَفْسَهُ وَلَقَدِ اصْطَفَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا وَإِنَّهُ فِي الآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ "
"कौन है जो इब्राहीम के पंथ से मुँह मोड़े सिवाय उसके जिसने स्वयं को पतित कर लिया? और उसे तो हमने संसार में चुन लिया था और निस्संदेह अन्तिम दिन में उसकी गणना योग्य लोगों में होगी."
" إِذْ قَالَ لَهُ رَبُّهُ أَسْلِمْ قَالَ أَسْلَمْتُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ "
"क्योंकि जब उससे उसके पालनहार ने कहा:मुस्लीम(आज्ञाकारी) हो जा , उसने कहा:मैं सारे संसार के पालनहार-मालिक का आज्ञाकारी होगया".
" وَوَصَّى بِهَا إِبْرَاهِيمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَا بَنِيَّ إِنَّ اللَّهَ اصْطَفَى لَكُمُ الدِّينَ فَلاَ تَمُوتُنَّ إِلاَّ وَأَنتُم مُّسْلِمُونَ ."
"और इसी की वसीयत इब्राहीम ने अपने बेटों को की और याकूब ने भी(अपनी संतान को की) कि:हे मेरे बेटो! अल्लाह ने तुम्हारे लिये यही  दीन(धर्म) चुना है, तो इस्लाम(ईश-आज्ञापालन)के अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारीमृत्युन हो.  [पवित्र कुरान 2:124-132]

झ)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने बिल्कुल उसी तरीक़े पर                   इबादत किया   जैसे उनसे पहले के ईश्दुतों ने किया :
नमाज़ के बीच में सज्दः यामाथा को धरती पर रखना और नमाज़ में यरूशलेम की ओर चेहरा रखना और वह अपने अनुयायियों को भी ऐसा ही करने का आदेश देते थे (यहाँ तक कि अल्लाह ने अपने दूत गेब्रियल को इशवानी के साथ निचे उतारा और नमाज़ में चेहरा काबा की ओर करने का आदेश दिया जैसा कि पवित्र कुरान में वर्णित है)

 ञ)  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने हर प्रकार का अधिकार का                निर्माण कियाविशेष रूप से परिवार के सभी सदस्यों से सबंधित
के और माता पिता, शिशु लड़कियों, अनाथ लड़कियों के लिए अधिकार को स्थापित किया, और निश्चित रूप से पत्नियों के लिए.
यह पवित्र कुरानसे यह स्पष्ट है कि  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने अपने अनुयायियों को माता पिता के साथ दया और सम्मान का आदेश दिया . बल्कि उन्हेंनफ्रत से"ऊंह" भी कहने से रोका है:
 पवित्र कुरान में है:
" وقضى ربك ألا تعبدوا إلا إياه وبالوالدين إحسانا إما يبلغن عندك الكبر أحدهما أو كلاهما فلا تقل لهما أف ولا تنهرهما وقل لهما قولا كريما. " (الإسراء: 23).
"और पालनहार ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की पूजा न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो, यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहूँच जाएँ तो उन्हें "उंह" तक न कहो और न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टापूर्वक बात करो.[पवित्र कुरान 17:23]

ट)वास्तव में हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ही अनाथों के रक्षक थे  और नवजात बच्चों तक के अधिकार को सही धारे पर स्थापित किया उन्होंने अनाथों की देखभाल और गरीबों को भोजन देने का आदेश दिया बल्कि इसे स्वर्ग में प्रवेश का माध्यम बताया, और यदि किसी ने इनके अधिकारों को हड़प किया तो वह कभी स्वर्ग में फटकेगा तक नहीं. पवित्र कुरान में है.
 "الذين ينفقون أموالهم بالليل والنهار سرا وعلانية فلهم أجرهم عند ربهم ولا خوف عليهم ولا هم يحزنون". (البقرة: 274). 
"जो लोग अपने धन रात-दिन छिपे और खुले ख़र्च करें , उनका बदला तो उनके पालनहार के पास है, और न उन्हें कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे."(पवित्र कुरान:२: २७४)
उन्होंने नवजात लड़कियों की हत्या को निषिद्ध कर दिया , जैसा कि  अरब में  अज्ञान के समय के परंपराओं में था. पवित्र कुरान में है:
”وَإِذَا الْمَوْؤُودَةُ سُئِلَتْ بِأَيِّ ذَنبٍ قُتِلَتْ . "(التكوير: 8 )
"और जब जीवित गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा कि उसकी हत्या किस पाप के कारण की गई?[पवित्र कुरान: 81:8]

ठ)  हज़रत पैगंबर-शांति और आशीवार्द हो उन पर- ने  पुरुषों को आदेश दिया कि उनकी इच्छा के विरुद्ध महिलाओं के वारिस न बनें और उनसे  उनकी सहमति और मर्ज़ी के बिना शादी न करें और उनके धन को हाथ न लगाएं बल्कि उनकी वित्तीय स्थिति को सुधारने पर ज़ोर दिया है. पवित्र कुरान में है:
 " يا أيها الذين آمنوا لا يحل لكم أن ترثوا النساء كرها ولا تعضلوهن لتذهبوا ببعض ما آتيتموهن إلا أن ياتين بفاحشة مبينة وعاشروهن بالمعروف فإن كرهتموهن فعسى أن تكرهوا شيئا ويجعل الله فيه خيرا كثيرا. " (النساء:19).
"हे ईमान लेनेवालो! तुम्हारे लिये वैध नहीं कि स्त्रियों के धन के ज़बरदस्ती वारिस बन बैठो , और न यह वैध है कि उन्हें इसलिए रोको और तंग करो कि जो कुछ तुमने उन्हें दिया है उसमें से कुछ ले उड़ो, परन्तु यदि वे खुले रूप में अशिष्ट कर्म कर बैठें तो दूसरी बात है और उनके साथ तरीक़े से रहो-सहो, फीर यदि वे तुम्हें पसंद न हों तो संभव है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे.(पवित्र कुरान अन-निसा: 4:19)

इस आयत से यह परिणाम भी निकलता है कि पत्नी कीपिटाई और उनको तकलीफ़ देना भी आम तौर पर निषिद्घ बात है क्योंकि उन्होंने कभी भी अपनी किसी पत्नी को नहीं मारा.
और न ही उनका शादी से बाहर किसी महिला से कभी यौन संबंध था, और न ही उन्होंने कभी इसको स्वीकार किया, हालांकि यह उस समय में बहुत आम था. महिलाओं के साथ उनका सबंध केवल कानून के अनुसार और उचित गवाहों के साथ और वैध था. और हज़रत आइशा-के साथ उनका जो संबंध था वह भी केवल शादी के बंधन पर आधारित था. और उन्होंने उनके साथ उसी समय तुरन्त शादी नहीं की थी जब उनके पिता ने पहली बार शादी का प्रस्ताव रखा था बल्कि जब वह यौवन की उम्र तक पहुँच चुकी और खुद के लिए फ़ैसला करने की उम्र तय कर लि थि,  तभी उनके साथ विवाह हुवा था. उनके रिश्ते के विषय में खुद हज़रत आइशा ने बयान किया कि वास्तव में यह एक स्वर्ग में बनाया गयाजोड़ा था.जिस में अधिक से अधिक प्यार और सम्मान का माहोल था, हज़रत आइशा इस्लाम के सर्वोच्च विद्वान में गिनी जाती हैं, और पुरे जीवनभर वह केवल हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- की पत्नी रहे, और उन्होंने कभी भी किसी अन्य व्यक्ति के विषय में सोचा तक नहीं, और कभी भी उनके मुँह से हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुना गया और न ही उन्हों ने कभी कोई नकारात्मक बयान दिया.

ड)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- ने पुरुषों को आदेश दिया कि वे  महिलाओं पर ख़र्च करें और उनकी रक्षा करें  चाहे वे महिला उनकी माँ हों  या बहन, पत्नी हों या बेटी चाहे वे मुसलमान हों या न हों.
पवित्र कुरान में है:
   الرِّجَالُ قَوَّامُونَ عَلَى النِّسَاء بِمَا فَضَّلَ اللَّهُ بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ وَبِمَا أَنفَقُواْ مِنْ أَمْوَالِهِمْ فَالصَّالِحَاتُ قَانِتَاتٌ حَافِظَاتٌ لِّلْغَيْبِ بِمَا حَفِظَ اللَّهُ وَالَّلاتِي تَخَافُونَ نُشُوزَهُنَّ فَعِظُوهُنَّ وَاهْجُرُوهُنَّ فِي الْمَضَاجِعِ وَاضْرِبُوهُنَّ فَإِنْ أَطَعْنَكُمْ فَلاَ تَبْغُواْ عَلَيْهِنَّ سَبِيلاً إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيًّا كَبِيرًا (النساء:34).
"पति पत्नियों के संरक्षक और निगरां हैं, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ के मुक़ाबले में आगे रखा है, और इसलिए भी कि पतियों ने अपने माल ख़र्च किये हैं, तो नेक पत्नियां तो आज्ञापालन करनेवाली होती हैं और गुप्त बातों की रक्षा करती हैं क्योंकि अल्लाह ने उनकी रक्षा की है, और जो पत्नियां ऐसी हों जिनकी सरकशी का तुम्हें भय हो उन्हें समझाओ और बिस्तरों पर उन्हें अकेली छोड़ दो और (अति आवश्यक हो तो) उन्हें मारो भी, फिर यदि वे तुम्हारी बात मानने लगें तो उनके विरूद्ध कोई रास्ता न ढूंढों अल्लाह सबसे उच्च, सबसे बड़ा है.
 (पवित्र कुरान, अन-निसा: 4:34) 

पैगंबर हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-के व्यवहार के विषय में कुछ शब्द: (दूसरा भाग)

ढ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- ने गरीबी के डर से बच्चों की हत्या को निषिद्ध स्पष्ट किया इसी प्रकार किसी भी निर्दोष की हत्या से मना किया. पवित्र कुरान में अल्लाह का आदेश है:
"قل تعالوا أتل ما حرم ربكم عليكم ألا تشركوا به شيئا وبالوالدين إحسانا ولا تقتلوا أولادكم من إملاق نحن نرزقكم وإياهم ولا تقربوا الفواحش ما ظهر منها وما بطن ولا تقتلوا النفس التي حرم الله إلا بالحق ذلكم وصاكم به لعلكم تعقلون (الأنعام: 151).

"कह दो: आओ, मैं तुम्हें सुनाऊँ कि तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे ऊपर क्या पाबंदियाँ लगाई है: यह कि किसी चीज़ को उसका साझीदार न ठहराओ और माँ-बाप के साथ सद्व्यवहार करो और निर्धनता के कारण अपनी संतान की हत्या न करो, हम तुम्हें भी रोज़ी देते हैं और उन्हें भी, अश्लील बातों के निकट न जाओ, चाहे वे खुली हुई हों या छिपी हुई हों, और किसी जीव की, जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया है, हत्या न करो, यह और बात है की हक़ के लिये ऐसा करना पड़े.ये बातें हैं जिनकी ताकीद उसने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुद्धि से काम लो.

[पवित्र कुरान, अल-अनआम 6:151]


ण) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-कभी व्यभिचार के निकट भी नहीं हुवे, और उन्होंने अपने अनुयायियों को भी केवल वैध शादी पर आधारित महिलाओं के साथ संभोग का आदेश दिया और शादी से बाहर के सभी यौन संबंधों को निषिद्ध किया. सर्वशक्तिमान अल्लाह का पवित्र कुरान में आदेश है:
" الشيطان يعدكم الفقر ويامركم بالفحشاء والله يعدكم مغفرة منه وفضلا والله واسع عليم." (البقرة: 268).
"शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है और निर्लज्जता के कामों पर उभारता है , जबकि अल्लाह अपनी क्षमा और उदार क्रपा का तुम्हें वचन देता है , अल्लाह बड़ी समाईवाला,सर्वज्ञ है.[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:268]

"قل إنما حرم ربي الفواحش ما ظهر منها وما بطن والإثم والبغي بغير الحق وأن تشركوا بالله ما لم ينزل به سلطانا وأن تقولوا على الله ما لا تعلمون". (الأعراف: 33).
"कह दो: मेरे रब ने केवल अश्लील कामों को हराम किया है--जो उनमें से प्रकट हों उन्हें भी और जो छिपे हों उन्हें भी -----और ह्क़ मारना नाहक़ ज़्यादती और इस बात को कि तुम अल्लाह का साझीदार ठहराओ,जिसके लिए उसने कोई प्रमाण नहीं उतारा और इस बात को भी कि तुम अल्लाह पर थोपकर ऐसी बात कहो जिसका तुम्हें ज्ञान न हो."[पवित्र कुरान, अल-अअराफ़ 7:33]

 " ولا تقربوا الزنى إنه كان فاحشة وساء سبيلا". (الإسراء: 32).
 " और व्यभिचार के निकट न जाओ. वह एक अश्लील क्रम और बुरा मार्ग है."[पवित्र कुरान, अल-इसरा: 17:32]  
" الزاني لا ينكح إلا زانية أو مشركة والزانية لا ينكحها إلا زان أو مشرك وحرم ذلك على المؤمنين. (النور:3).
"व्यभिचारी किसी व्यभिचारणी या बहुदेववादी स्त्री से ही निकाह करता है, और इसी प्रकार व्यभिचारणी, किसी व्यभिचारी या बहुदेववादी से ही निकाह करती है.और यह मोमिनों पर हराम है."[पवित्र कुरान, अन-नूर: 24:3]
" إن الذين يحبون أن تشيع الفاحشة في الذين آمنوا لهم عذاب أليم في الدنيا والآخرة والله يعلم وأنتم لا تعلمون". (النور:19).
"जो लोग चाहते हैं कि उन लोगों में जो ईमान लाए हैं , अश्लीलता फैले, उनके लिए दुनिया और अखिरत(लोक-परलोक)में दुखद यातना है, और अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते.[पवित्र कुरान, अन-नूर: 24:१९]
" يا أيها النبي إذا جاءك المؤمنات يبايعنك على أن لا يشركن بالله شيئا ولا يسرقن ولا يزنين ولا يقتلن أولادهن ولا ياتين ببهتان يفترينه بين أيديهن وأرجلهن ولا يعصينك في معروف فبايعهن واستغفر لهن الله إن الله غفور رحيم". (الممتحنة:12).
"हे नबी! जब तुम्हारे पास ईमानवाली स्त्रियाँ आकर तुमसे इसपर 'बैअत' करें कि वे अल्लाह के साथ किसी चीज़ को साझी नहीं ठहराएँगी और न चोरी करेंगी और न व्यभिचार करेंगी , और न अपनी संतान की हत्या करेंगी और न अपने हाथों और पैरों के बीच कोई आरोप घड़कर लाएँगी और न किसी भले काम में तुम्हारी अवज्ञा करेंगी , तो उनके लिए अल्लाह से क्षमा की प्रर्थना करो, निश्चय ही अल्लाह बहुत क्षमाशील, अत्यंत दयावान है."[पवित्र कुरान, अल-मुम्तहिना: 60:12]

हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-के समय में सारे संसार में व्यभिचार आम थाफिर भी वह इस काम से सदा दूर रहेऔर अपने अनुयायियों को भी इस बुराई से सदा मना किया.

त)  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- ने पैसे उधार पर सूदखोरी और ब्याज से मना कियाजैसा कि हज़रत ईसा-शांति हो उन पर- ने भी सदियों पहले इस से रोका था, यह तो स्पष्ट है कि सूदखोरी लोगों के धन-संपत्ति को कैसे हड़प कर लेती है, और इतिहास भर में आर्थिक प्रणालियों को कैसे नष्ट करते आ रही है, और यही बात पहले के सारे नबियों की शिक्षाओं में मिलती है.हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- ने भी इस तरह के व्यवहार को सबसे बुरी क़रार दिया और उससे बचने का आदेश दिया ताकि एक व्यक्ति अल्लाह और लोगों के साथ शांति का माहोल बनाने में सफल हो.
   " الَّذِينَ يَأْكُلُونَ الرِّبَا لاَ يَقُومُونَ إِلاَّ كَمَا يَقُومُ الَّذِي يَتَخَبَّطُهُ الشَّيْطَانُ مِنَ الْمَسِّ ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُواْ إِنَّمَا الْبَيْعُ مِثْلُ الرِّبَا وَأَحَلَّ اللَّهُ الْبَيْعَ وَحَرَّمَ الرِّبَا فَمَن جَاءَهُ مَوْعِظَةٌ مِّن رَّبِّهِ فَانتَهَىَ فَلَهُ مَا سَلَفَ وَأَمْرُهُ إِلَى اللَّهِ وَمَنْ عَادَ فَأُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ "
" يَمْحَقُ اللَّهُ الرِّبَا وَيُرْبِي الصَّدَقَاتِ وَاللَّهُ لاَ يُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ أَثِيمٍ "
" إِنَّ الَّذِينَ آمَنُواْ وَعَمِلُواْ الصَّالِحَاتِ وَأَقَامُواْ الصَّلاةَ وَآتَوُاْ الزَّكَاةَ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِندَ رَبِّهِمْ وَلاَ خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلاَ هُمْ يَحْزَنُونَ"
" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اتَّقُواْ اللَّهَ وَذَرُواْ مَا بَقِيَ مِنَ الرِّبَا إِن كُنتُم مُّؤْمِنِينَ "
" فَإِن لَّمْ تَفْعَلُواْ فَأْذَنُواْ بِحَرْبٍ مِّنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ وَإِن تُبْتُمْ فَلَكُمْ رُؤُوسُ أَمْوَالِكُمْ لاَ تَظْلِمُونَ وَلاَ تُظْلَمُونَ. " (البقرة: 275-279).
"जो लोग ब्याज खाते हैं , वे बस इस प्रकार उठते हैं जिस प्रकार वह व्यक्ति उठता है, जिसे शैतान ने छुकर बावला कर दिया हो और यह इसलिये कि उनका कहना है: व्यापार भी तो ब्याज की तरह ही है, जबकि अल्लाह ने व्यापार को वैध और ब्याज को अवैध ठहराया है अतः
"जिसको उसके रब की ओर से नसीहत पहुँची और वह बाज़ आ गया , तो जो कुछ पहले ले चुका वह उसी का रहा और मामला उसका अल्लाह के हवाले है, और जिस ने फिर यही कर्म किया तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले हैं, उसमें वे सदैव रहेंगे".
"अल्लाह ब्याज को घटाता और मिटाता है और सदक़ों बढ़ाता है और अल्लाह किसी अकृतज्ञ हक़ मरनेवाले को पसन्द नहीं करता."
"निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किये और नमाज़ क़ाएम की और ज़कात दी. उनके लिए उनका बदला उनके रब के पास है और उन्हें न कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे."
"हे ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और जो कुछ ब्याज बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमानवाले हो."
"फिर यदि तुमने ऐसा न किया तो अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध के लिए खबरदार हो जाओ और यदि तौबा[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:२७५-२७९]

थ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- न खुद कभी जुआ खेले और न ही अपने अनुयायियों को कभी इसकी अनुमति दी, क्योंकि जुआ भी सूदखोरी की तरहधन-संपत्ति को फूंक देता है बल्कि जुआ तो और जल्दी धन को नष्ट कर देता है.
  " يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ قُلْ فِيهِمَا إِثْمٌ كَبِيرٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَإِثْمُهُمَا أَكْبَرُ مِن نَّفْعِهِمَا وَيَسْأَلُونَكَ مَاذَا يُنفِقُونَ قُلِ الْعَفْوَ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَتَفَكَّرُونَ. " (البقرة:219)
"तुम से शराब और जुए के विषय में पूछते हैं, कहो: उन दोनों चीज़ों में बड़ा पाप है यद्दपि लोगों के लिए कुछ लाभ भी हैं, परन्तु उनका पाप उनके लाभ से कहीं बढ़कर है, और वे तुमसे पूछते हैं:कितना ख़र्च करें? कहो:जो आवश्यकता से अधिक हो, इस प्रकार अल्लाह दुनिया और आखिरत के विषय में तुम्हारे लिए अपनी आयतें खोल-खोलकर बयान करता है ताकि तुम सोच-विचार करो.[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:219] 
जुआ तो हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- के समय से पहले कोई बुराई का काम ही नहीं था, लेकिन आजतो अच्छी तरह खुलकर सब के सामने आगया है कि जुआ के कितने नुकसान हैं, इस के कारण परिवार पर कैसी आफ़त आती है मानसिक स्वास्थ्य कैसे प्रभावित होता है? क्योंकि काम तो शुन्य है और फिर कमाई होरही है, ऐसा तरीक़े को तो हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- की शिक्षाओं से कोई संबंध ही नहीं है.

द)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने कभी शराब को हाथ तक नहीं लगाया पीना तो दूर की बात है, और न ही शराब जैसी किसी नशीली पदार्थ को हाथ लगाया.भले ही यह उनके समय में लोगों के लिए एक बहुत ही सामान्य बात थी. पवित्र कुरान में है:
" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ إِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَيْسِرُ وَالأَنصَابُ وَالأَزْلامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ فَاجْتَنِبُوهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ "
   " إنما يريد الشيطان أن يوقع بينكم العداوة والبغضاء في الخمر والميسر ويصدكم عن ذكر الله وعن الصلاة فهل أنتم منتهون. " (المائدة: 90-91)
"ऐ ईमान लेनेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गंदे शैतानी काम हैं, अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो.
शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और वैर पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे?"[पवित्र कुरान, अल-माइदा: 5:90-91]
अरबके लोग भीअपने समय में अन्य संस्कृतियोंकी तरह जमकर शराब पीते थे उन्हें स्वास्थ्य  क्षति  या व्यवहार और नैतिक  नुक़सान की कोई परवाह नहीं थी. बल्कि उनमें से कई शराबियों की स्तिथि यह थी कि वह उसी पर जीते मरते थे.
आज की दुनिया में तो शराब की लत की गंभीरता और खतरों के विषय लंबे-चौड़े  विचार और बहस की तो आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि सब खुल कर सामने आचुका है, इसके कारण बहुत सी  बीमारियाँ मनुष्य पर टूटती हैं, और यह एक व्यक्ति के स्वास्थ्य को भी बर्बाद कर देता है, और साथ ही कई इसके कारण कई यातायात दुर्घटनाएं घटती रहती हैं जिन में  संपत्ति भी नष्ट होती हैं और जानें भी जाती हैं. इसलिए हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-के अनुयायियों के लिए सब से पहले यह आदेश आया था कि शराब पीकर नमाज़ न पढ़ें फिर बाद में किसी भी समय पिने से पूरा पूरा रोक दिया गया.
ध) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर- बेकार गपशप या पीठ पीछे बुराई या चुगली से सदा दूर रहे, वह तो ऐसी बातों को सुनना भी ना-पसन्द करते थे और दूर-दूर रहते थे.पवित्र कुरान में आया है.
" يا أيها الذين آمنوا إن جاءكم فاسق بنبإ فتبينوا أن تصيبوا قوما بجهالة فتصبحوا على ما فعلتم نادمين. "(الحجرات:6)
"ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई खबर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो, कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने में तकलीफ और नुक्सान पहुँचा बैठो , फिर अपने किये पर पछताओ.[पवित्र कुरान, अल-हुजुरात: 49:6]
 " يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لا يَسْخَرْ قَوْمٌ مِّن قَوْمٍ عَسَى أَن يَكُونُوا خَيْرًا مِّنْهُمْ وَلا نِسَاء مِّن نِّسَاء عَسَى أَن يَكُنَّ خَيْرًا مِّنْهُنَّ وَلا تَلْمِزُوا أَنفُسَكُمْ وَلا تَنَابَزُوا بِالأَلْقَابِ بِئْسَ الاِسْمُ الْفُسُوقُ بَعْدَ الإِيمَانِ وَمَن لَّمْ يَتُبْ فَأُولَئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ"
" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اجْتَنِبُوا كَثِيرًا مِّنَ الظَّنِّ إِنَّ بَعْضَ الظَّنِّ إِثْمٌ وَلا تَجَسَّسُوا وَلا يَغْتَب بَّعْضُكُم بَعْضًا أَيُحِبُّ أَحَدُكُمْ أَن يَأْكُلَ لَحْمَ أَخِيهِ مَيْتًا فَكَرِهْتُمُوهُ وَاتَّقُوا اللَّهَ إِنَّ اللَّهَ تَوَّابٌ رَّحِيمٌ. " (الحجرات 11-12).
"ऐ लोगो जो ईमान लाए हो! न परुषों का कोई गिरोह दूसरे परुषों की हँसी उड़ाए, संभव है वे उनसे अच्छे हों और न स्त्रियाँ स्त्रियों की हँसी उड़ाऐँ, संभव है वे उनसे अच्छी हों, और न अपनों पर ताने कसो और न आपस में एक-दूसरे को बुरी उपाधियों से पुकारो, ईमान के पश्चात अवज्ञाकारी का नाम जुड़ना बहुत ही बुरी है, और जो व्यक्ति बाज़ न आए, तो ऐसे व्यक्ति ज़ालिम हैं."
"ऐ ईमान लेनेवालो! बहुत से गुमानों से बचो, क्योंकि कतिपय गुमान पाप होते हैं, और न टोह में पड़ो और न तुममें से कोई इसको पसन्द करता है कि वह अपने मरे हुवे भाई का मांस खाए? वह तो तुम्हें अप्रिय होगा  ही , -----और अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही अल्लाह तौबा स्वीकार करनेवाला, अत्यंत दयावान है.[पवित्र कुरान, अल-हुजुरात: 49:11-12]
निश्चित रूप से, इन शिक्षाओं को आज की दुनिया में भी सराहा जाएगा जबकि आज लगभग सभी लोग बेकार गपशप में समय बरबाद करते हैं , एक-दूसरे-की बुराई और गाली-गलोज में डूबे हुवे हैं. लोग तो अपने रिश्तेदारों और चाहने वालों को भी नहीं छोड़ते हैं.

न) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-बहुत उदार थे और   वह अपने अनुयायियों को भी ऐसा ही करने के लिए आग्रह करते थे, एक दूसरे के साथ  अपने व्यवहार को सुन्दर रखने का आदेश देते थे, और बकाया कर्ज को क्षमा करने के लिए भी आग्रह किया करते थे.ताकि सर्वशक्तिमान   परमेश्वर के पास से अच्छा से अच्छा फल मिले.इस संबंध में पवित्र कुरान में आया है.
" وإن كان ذو عسرة فنظرة إلى ميسرة وأن تصدقوا خير لكم إن كنتم تعلمون وَاتَّقُواْ يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لاَ يُظْلَمُونَ. " (البقرة:280-281).
"और यदि कोई तंगी में हो तो हाथ खुलने तक मुहलत देनी होगी, और सदक़ा कर दो(अर्थातू मूलधन भी न लो) तो यह तुम्हारे किये अधिक उत्तम है, यदि तुम जान सको."
"और उस दीन का डर रखो जबकि तुम अल्लाह की ओर लौटेंगे, फिर प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया पूरा-पूरा मिल जाएगा और उनके साथ कदापि कोई अन्याय न होगा."[पवित्र कुरान, अल-बक़रा: 2:280-281]


प)  हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-गरीबों को दान देने का आदेश देते थे, बल्कि वह विधवाओंअनाथों के देख-रेख में सबसे पहले और आगे-आगे रहते थे. पवित्र कुरान में आया है.
" فَأَمَّا الْيَتِيمَ فَلا تَقْهَرْ. " (الضحى:9)
      "अतः जो अनाथ हो उसे न दबाना." [पवित्र कुरान, अद-दुहा:९३:९]
" لِلْفُقَرَاء الَّذِينَ أُحْصِرُواْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ لاَ يَسْتَطِيعُونَ ضَرْبًا فِي الأَرْضِ يَحْسَبُهُمُ الْجَاهِلُ أَغْنِيَاء مِنَ التَّعَفُّفِ تَعْرِفُهُم بِسِيمَاهُمْ لاَ يَسْأَلُونَ النَّاسَ إِلْحَافًا وَمَا تُنفِقُواْ مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ. " (البقرة:273).

"यह उन मुहताजों के लिए है जो अल्लाह के मार्ग में घिर गए हैं कि धरती में जीविकोपार्जन के लिए) कोई दौड़-धुप नहीं कर सकते, उनके सविभिमान के कारण अपरिचित व्यक्ति उन्हें धनवान समझता है, तुम उन्हें उनके लक्षणों से पहचान सकते हो, वे लिपटकर लोगों से नहीं नहीं माँगते, जो माल भी तुम खर्च करोगे, वह अल्लाह को ज्ञात होगा."[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2,273]

फ) हज़रत  मुहम्मद- शांति हो उन पर-ने लोगों को सिखाया कि प्रतिकूल परिस्थितियों, कठिनाइयों और परीक्षणोंसे कैसे निपटें जो जीवन में घटित होते रहते हैं, उन्होंने बता दिया कि इनका मुक़ाबलाकेवल धैर्य और विनम्र रवैया के माध्यम से ही संभव है, और इसी के द्वारा जीवन की जटिलताओं और नाउम्मीदियों से लड़ा जासकता है.
हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-बहुत अधिक धैर्य वाले थे, और नम्रता में तो उनका जवाब नहीं था,और जिस-जिस ने भी उनसे भेंट की सब ने इन गुणों को उनमे देखा. पवित्र कुरान में उल्लेख है.
   " يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ اسْتَعِينُواْ بِالصَّبْرِ وَالصَّلاةِ إِنَّ اللَّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ. " (البقرة:153).
"ऐ ईमान लेनेवालो! धैर्य और नामज़ से मदद प्राप्त करो, निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है जो धैर्य और दूढ़ता से काम लेते हैं."
[पवित्र कुरान, अल-बक़रह: 2:153]

उन्होंने यह बता दिया कि यह जीवन वास्तव में अल्लाह की ओर से एक परीक्षण है: जैसा कि पवित्र कुरान में उल्लेख है.
 " وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ بِشَيْءٍ مِّنَ الْخَوْفْ وَالْجُوعِ وَنَقْصٍ مِّنَ الأَمْوَالِ وَالأنفُسِ وَالثَّمَرَاتِ وَبَشِّرِ الصَّابِرِينَ.الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُم مُّصِيبَةٌ قَالُواْ إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ. (البقرة: 155 - 156).
"और हम अवश्य ही भय से , और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे, और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो."[पवित्र कुरान, अल-बक़रा: 2:१५५-१५६]

ब) वास्तव में हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-अधिक से अधिक उपवास या रोज़ा रखते थे ताकि सर्वशक्तिमान ईश्वर के करीब रहें और सांसारिकआकर्षणों और लोभों से बिल्कुल दूर रहें. रोज़ा के संबंध में अल्लाह का आदेश है:
" يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ. " (البقرة:183).
"ऐ ईमान लेनेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किये गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ."

[पवित्र कुरान, अल-बक़रा: 2:१८३]

  

भ) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-अपने मिशन के शुरू से लेकर अंत तक नस्लवाद और जनजातीयता को समाप्त करने के लिए परिश्रम, वह सही मायने में हर समय और सभी के लिए शांति के मार्ग दर्शकथे.इस संबंध में अल्लाह का फरमान:
 " يا أيها الناس إنا خلقناكم من ذكر وأنثى وجعلناكم شعوبا وقبائل لتعارفوا إن أكرمكم عند الله أتقاكم إن الله عليم خبير. " (الحجرات:13).
"ऐ लोगो! हमने तुम्हें एक परुष और एक सत्री से पैदा किया और तुम्हें बिरादरीयों और क़बीलों का रूप दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो, वास्तव में अल्लाह के यहाँ तुममें सबसे अधिक प्रतिष्ठित वह है जो तुममें सबसे अधिक डर रखता है, निश्चय ही अल्लाह सबकुछ जाननेवाला, खबर रखनेवाला है." [पवित्र कुरान, अल-हुजुरात: ४९:१३]

कुरान की एक और आयत में है:
" يا أيها الناس اتقوا ربكم الذي خلقكم من نفس واحدة وخلق منها زوجها وبث منهما رجالا كثيرا ونساء واتقوا الله الذي تساءلون به والأرحام إن الله كان عليكم رقيبا. " (النساء:1)
"ऐ लोगो! अपने रब का डर रखो, जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी जाती का उसके लिए जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत-से परुष और स्त्रियाँ फैला दीं, अल्लाह का डर रखो, जिसकी दुहाई देकर तुम एक-दूसरे के सामने अपनी माँगें रखते हो, और नाते-रिश्तों का भी तुम्हें ख्याल रखना है, निश्चय ही अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है."[पवित्र कुरान, अन-निसा: 4:१]

म) और आम लोगों के बीच या दोविरोधी पक्षों के बीच संबंधोंको सुधारने और सुलह कारने के विषय में पवित्र कुरान का कहना है:
 " وَإِن طَائِفَتَانِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ اقْتَتَلُوا فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا فَإِن بَغَتْ إِحْدَاهُمَا عَلَى الأُخْرَى فَقَاتِلُوا الَّتِي تَبْغِي حَتَّى تَفِيءَ إِلَى أَمْرِ اللَّهِ فَإِن فَاءَتْ فَأَصْلِحُوا بَيْنَهُمَا بِالْعَدْلِ وَأَقْسِطُوا إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُقْسِطِينَ "
" إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ فَأَصْلِحُوا بَيْنَ أَخَوَيْكُمْ وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ. " (الحجرات:9-10).
"यदि मोमिनों में से दो गिरोह आपस में लड़ पड़ें तो उनके बीच सुलह करा दो, फिर यदि उनमें से एक गिरोह दूसरे पर ज़यादती करे तो जो गिरोह ज़यादती कर रहा हो उससे लड़ो यहाँ तक कि वह अल्लाह के आदेश की ओर पलट आए, फिर यदि वह पलट आए तो उनके बीच न्याय के साथ सुलह करा दो, और इन्साफ़ करो, निश्चय ही अल्लाह इन्साफ़ करनेवालों को पसन्द करता है."
"मोमिन तो भाई-भाई ही हैं अतः अपने दो भाइयों के बीच सुलह करा दो और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए."[पवित्र कुरान, अल-हुजुरात: 49:9-10].

य)हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने स्पष्ट बालक थे जो बेदाग और पवित्र मरियम की कोख से जन्म लिये थे और उनका जन्म वास्तव में एक चमत्कार थाऔरपवित्रमरियम संसार में सब से अच्छी-शांति हो उन पर-ही वह पैगंबर थे जिनके विषय में तौरात (ओल्ड टेस्टामेंट) मेंभविष्यवाणी की जा चुकी थी. और यह भी बताया कि सर्वशक्तिमान ईश्वर की अनुमति से हज़रत ईसा मसीह -शांति हो उन पर-कई चमत्कार दिखाते थे, वह कोढ़ियोंअंधों को बिल्कुल ठीक करदेते थे, यहां तक कि वह मरे हुए आदमी को जीवन में वापस लाते थेऔर साथ ही यह भी स्पष्ट करदिया कि वह मरे नहीं बल्कि सर्वशक्तिमान भगवान ने उनको अपनी ओर उठा लिया, हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-ने यह भी भविष्यवाणी की कि हज़रत ईसा मसीह -शांति हो उन पर-बुराई को ख्त्म करने के लिए भविष्य में फिर से वापस धरती पर उतरेंगे, और अपने ह्क़ से वंचितलोगों की सहायता करेंगे, सच्चे विश्वासियों का साथ देंगे, बुराई और दुष्ट को  सच्चे विश्वासियों को विजय दिलाऐंगेऔर विरोधी मसीह को नष्ट कर देंगे.

र) हज़रत मुहम्मद-शांति हो उन पर-नेकिसी कि भी हत्या से मना किया जबकि उनके अनुयायियों को दिनदहाड़ेसब के सामने मारा जाता थायहाँ तक कि बदले की कार्रवाई के लिए अल्लाह की ओर से आदेश आया. लेकिन उसमें भी बहुत सारी सीमाएं स्पष्ट की गई, और केवल उन लोगों से लड़ने की अनुमति दी गई जो इस्लाम और मुसलमानों के विरुद्ध थे और उनके खिलाफ यद्ध करते थे, और फिर भी बहुत सख्त नियमों के अनुसारऔर उसी सीमा में रहकर जो अल्लाह की ओर से रखे गए.

धन्‍यवाद