Tuesday, April 26, 2011

कुछ अकली तर्क- मुहम्‍मद सल्‍ल. के ईशदूत और संदेशवाहक होने की सत्यता पर mohammad

हज़रत पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के ईशदूत और संदेशवाहक होने की सत्यता पर कुछ अकली तर्क (पहला भाग)
१.पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अनपढ़ थे, लिखना और पढ़ना नहीं जानते थे और ऎसी क़ौम में थे जो अनपढ़ थी,उसमें लिखना-पढ़ना बहुत ही कम लोग जानते   थे। और यह केवल इस कारण था ताकि कोई संदेह करने वाला उस वह्य में संदेह न कर सके जो आप पर अल्लाह की ओर से उतरती थी, और झूठ मूट यह न गुमान कर बैठे कि उसे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी ओर से संपादन कर (गढ़) के पेश कर दिया है। अल्लाह तआला ने फरमायाः
"इस से पहले तो आप कोई किताब पढ़ते न थे और नकिसी किताब को अपने हाथ से लिखते थे कि यह मिथ्यावादी लोग संदेह में पड़ते।" (सूरतुल-अनकबूतः ४८)              
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ऎसी चीज़ पेश की जिसने अरब को उसके समान कोई चीज़ पेश करने से विवश और बेबस कर दिया और अपनी फसाहत व बलागत (लाटिका) से उन्हें चकित कर दिया। इस प्रकार  आपका अनश्वर चमत्कार वह क़ुरआन है जो आप पर अवतरित हुआ है। पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं:
"पैग़म्बरों में से प्रत्येक पैग़म्बर को कुछ न कुछ निशानी (चमत्कार) दी गई थी जिस पर लोग ईमान लाये, और मुझे जो चमत्कार (निशानी) दिया गया है वो वह्य     है  जिसे अल्लाह  तआला ने मेरे ऊपर उतारी है, और मुझे आशा है कि कि़यामत के दिन मेरे मानने वाले सब से अधिक होंगे।" (सहीह बुख़ारी एवं सहीह मुस्लिम)
आपकी क़ौम के लोग अरबी भाषा के माहिर और निपुण और फसाहत से पूर्ण थे किन्तु फिर भी अल्लाह तआला ने उन्हें क़ुरआन के समान कोई चीज़ प्रस्तुत करने के लिए चैलेंज किया तो वह बेबस हो गये, फिर उन्हें क़ुरआन के समान एक सूरत अध्याय प्रस्तुत करने के लिए चैलेंज किया फिर भी वह असमर्थ रहे। अल्लाह तआला ने   फरमायाः
"हम ने जो कुछ अपने बन्दे पर उतारा है उस में अगर तुम्हें  संदेह हो और तुम सच्चे हो तो उस जैसी एक सूरत तो बना लाओ, तुम्हें  अधिकार है कि अल्लाह के अतिरिक्त अपने सहयोगियों को भी बुला लो।" (सूरतुल-बक़राः २३)
बल्कि सर्व संसार के लोगों को चैलेंज किया, अल्लाह तआला ने फरमायाः

"कह दीजिये कि अगर तमाम इन्सान और सारे जिन्नात मिल कर इस क़ुरआन के समान लाना चाहें तो उन सब के लिए इसके समान लाना असंभव है चाहे वह आपस में एक दूसरे के लिए सहयोगी भी बन जायें।" (सूरतुल इस्राः८८)
२. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम निरंतर लोगों को अल्लाह की ओर बुलाते और आमंत्रण देते रहे जबकि आप को अपनी क़ौम की ओर से बहुत अधिक कठिनाईयों और टकरावों का सामना हुआ, यहाँ तक कि वो लोग आप को जान से मार डालने और आपकी दावत का अंत कर देने के लिए आप के विरूद्ध षड्यंत्रण करने की हद तक पहुँच गये। इन सारी चीज़ों के होते हुए भी आप निरंतर उस दीन के प्रचार में जुटे रहे जिसके साथ आप को भेजा गया था और अल्लाह के दीन को फैलाने के रास्ते में आप को अपनी क़ौम की ओर से जिस कष्ट, परेशानी, कठिनाई और अत्याचार का भी सामना हुआ उस पर धैर्य करते रहे। अगर आप मिथ्यावादी होते -और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कदापि ऎसा नहीं थे- तो आप धर्म प्रचार को त्याग देते और अपनी जान जोखों में न डालते; इस लिए कि आप देख रहे थे कि आप की पूरी क़ौम आपके विरूद्ध एक जुट हो गई है और आप का और आप की दावत का अंत करने के लिए गंभीरता का प्रदर्शन कर रही है।
डा. एम. एच. दुर्रानी (M.H. Durrani ) कहते हैं :
"यह विश्वास, यह तीव्र प्रयास और यह दृढ़ता और पक्का संकल्प  जिसके द्वारा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने आन्दोलन का अंतिम सफलता  तक नेतृत्व किया, इस बात का प्रबल प्रमाण है कि आप अपनी दावत में क़तई सच्चे थे, क्योंकि अगर आप के मन में तनिक भी संदेह या व्याकुलता होती तो आप उस आँधी तूफान के सामने कभी टिक नहीं पाते जिसके शोले पूरे बीस साल तक भड़कते रहे। क्या इसके बाद उद्देश्य में पूर्ण सच्चाई, व्यवहार में दृढ़ता (सदव्यवहार) और मन की सवोर्च्चता का कोई और प्रमाण हो सकता है? यह सारे अस्बाब व अवामिल कारण अनिवार्य रूप से इस परिणाम-निष्कर्ष- तक पहुँचाते हैं जिसे स्वीकारने बिना कोई छुटकारा नहीं कि यह व्यक्ति अल्लाह का सच्चा संदेश्वाहक (पैग़म्बर) है, यह हमारे पैग़म्बर मुहम्मद  सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। आप अपने अनुपम गुणों में एक चिन्ह, प्रतिष्ठा और अच्छाई व भलाई के पूर्ण आदर्श और सच्चाई एवं निःस्वाथर्ता की अलामत पहचान थे। आप का जीवन, आपके विचार, आप की सच्चाई, आपकी धर्म निष्ठता, आपका संयम, आपकी सखावत व दानशीलता, आप का विश्वास एवं श्रद्धा और आपके कारनामे यह सब के सब आप की नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) के अद्वितीय प्रमाण हैं। जो व्यक्ति भी निष्पक्षता के साथ आप के जीवन और संदेश को पढ़ेगा, वह इस बात की गवाही देगा कि वाक़ई आप अल्लाह के भेजे हुए पैग़म्बर हैं, और क़ुरअन  जिसे आप लोगों के लिए लेकर आये हैं, वह अल्लाह की सच्ची किताब है। प्रत्येक गंभीर, न्याय प्रिय विचारक जो सत्य का इच्छुक है वह अवश्य इस निर्णय तक पहुँचेगा।"
३.यह बात  स्पष्ट है कि प्रत्येक मनुष्य स्वभाविक रूप से इस सांसारिक जीवन के उपकरणों जैसे माल-धन, खाने-पीने की चीज़ें और शादी-विवाह को पसंद करता है। अल्लाह तआला ने  फरमायाः

"इच्छित चीज़ों की रूचि लोगों के लिए सुंदर बना दी गई है, जैस स्त्रियाँ और बेटे और सोने और चाँदी के इकटठा किये हुए खज़ाने और चिन्ह वाले घोड़े और चौपाये और खेती, यह    सांसारिक जीवन का  सामान है और लौटने का अच्छा ठिकाना तो अल्लाह तआला ही के पास है।"(सूरा आल-इम्रानः१४)
मनुष्य इन उपकरणों को विभिन्न साधनों और तरीक़ों से प्राप्त करने के लिए भरपूर प्रयास करता है। किन्तू उन्हें प्राप्त करने के ढंग और तरीक़े में लोग विभिन्न हैं, कुछ लोग उन्हें उचित (धर्मसम्मत) साधन से कमाते हैं और कुछ लोग अनुचित और अवैध ढंग से कमाते हैं।
जब हम ने यह जान लिया, तो हम कहते हैं कि जब पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी दावत का आरंभ किया तो आप की क़ौम ने आप से मोल-भाव किया और सारी लुभाने वाली चीज़ों और सांसारिक उपकरणों के द्वारा आप को उकसाया और आप की समस्त इच्छाओं और मांगों को पूरा करने का वादा किया; अगर आप सरदारी चाहते हैं तो वह आप को सरदार बना लेंगे, और अगर विवाह करना चाहते हैं तो सब से सुंदर स्त्रीसे आप का विवाह कर देंगे और अगर आप धन-दौलत चाहते हैं तो वह भी देने के लिए तैयार हैं, केवल एक शर्त मान लें कि इस नये धर्म को और उसकी ओर लोगों को बुलाना छोड़ दें। इस पर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने ईश्वरीय निर्देश से प्राप्त विवास के साथ उन्हें उत्तार दियाः
"अल्लाह की क़सम! अगर ये लोग सूर्य को मेरे दाहिने हाथ में और चाँद को बायें हाथ में रख दें और यह चाहें कि मैं इस मामले को छोड़ दूँ तो मैं इसे नहीं छोड़ सकता यहाँ तक कि अल्लाह तआला इस को प्रभुत्व प्रदान कर दे, या इस के लिए मेरी जान चली जाये।" (सीरत इब्ने हिाशम २/१०१) यदि आप मिथ्यावादी होते -और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कदापि ऎसा नहीं थे- तो इस सौदा मोल-भाव को स्वीकार कर लेते और इस अवसर का भरपूर लाभ उठाते; क्योंकि आप के सामने जो कुछ पेश किया गया था, वह हर उस व्यक्ति की सबसे श्रेष्ठ इच्छा होती है जिसका लक्ष्य दुनिया होता है।
डॉ एम एच दुर्रानी  (Dr.M.H.Durrani) कहते हैं :
"पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने निरंतर तेरा साल मक्का में और निरंतर आठ साल मदीना में कठिनाईयाँ और परेशानियाँ झेलीं, पर आप अपने दृष्टि-कोण से एक बाल भी नहीं हटे, आप पक्के इरादे वाले, निडर एवं बहादुर और अपने लक्ष्यों और दृष्टि-कोण में दृढ़ और पक्के थे। आप के समुदाय ने आप के सामने यह प्रस्ताव रखा कि यदि आप अपने धर्म की ओर बुलाने और अपने संदेश को फैलाने से रूक जायें तो वह आप को अपना राजा बना लेंगे और देश का सारा धन-दौलत आपके पैरों में डाल देंगे। परन्तु आप ने इन सारे बहलावों और फुसलावों को नकार दिया और उनके स्थान पर अपनी दावत (निमंत्रण) के लिए कठिनाईयों को झेलना पसंद कर लिया। आप ने ऎसा क्यों किया? आप ने कभी धन-दौलत, पद, राज्य, वैभव, विश्राम, आराम, सुख-चैन और संपन्नता और खुशहाली की परवाह क्यों नहीं की? यदि कोई आदमी इसका उत्तार जानना चाहता है तो उसके लिए आवश्यक है कि वह इस बारे में बड़ी गहराई से सोच विचार करे।"
४.यह बात सुप्रसिद्ध और मुशाहिदे में है कि जो व्यक्ति भी किसी राज्य का शासन या नेतृत्व संभालता है तो उसके शासन के अधीन सारा धन दौलत और प्रजा उसके अधिकार में होती है और उसकी सेवा के लिए नियुक्त होती है। किन्तु जहाँ तक मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का संबंध है तो आप जानते थे कि यह दुनिया स्थायी और सदा रहने वाला आवास नहीं है। इब्राहीम बिन अलक़मा से रिवायत है कि अब्दुल्लाह ने कहा किः पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक (नंगी) चटाई पर लेटे हुये थे जिस से आप के शरीर (चमड़ी) पर निाशन पड़ गये थे। यह देख कर मैं ने कहाः ऎ अल्लाह के पैग़म्बर! मेरे माता पिता आप पर क़ुर्बान! अगर आप हमें आज्ञा देते तो हम इस पर आप के लिए कोई बिछौना बिछा देते जिस से आप के शरीर की सुरक्षा होती। इस पर अल्लाह के पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "मुझे दुनिया से क्या लेना देना, मेरा और दुनिया का उदाहरण एक सवार की तरह है जिसने एक पेड़ के नीचे आराम किया फिर उसे छोड़ कर प्रस्थान कर गया।" (सुनन र्तिमिज़ी)
और आप के बारे में नोमान बिन बशीर रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मैं ने तुम्हारे पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा है कि एक समय आप अपना पेट भरने के लिए रद्दी खजूर भी नहीं पाते थे। (मुस्लिम)
अबू हुरैरा रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के घराने वालों ने लगातार तीन दिन तक पेट भर कर खाना नहीं खाया यहाँ तक कि आप का स्वर्गवास हो गया। (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
जब कि अरब द्वीप आपके शासन अधीन था और मुसलमानों को प्राप्त होने वाली प्रत्येक भलाई और कल्याण के कारण आप ही थे। फिर भी कुछ समय आप के पास पर्याप्त खाना नहीं रहता था। आपकी पत्नी आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा कहती हैं : पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुछ समय के लिए (उधार पर) एक यहूदी से खाद्दान्न खरीदा और अपनी कवच (जि़रह) को उसके पास गिरवी रख दी। (सहीह बुख़ारी)
इस का यह अर्थ नहीं है कि आप जो चीज़ चाहते थे, उसे प्राप्त करना आप के बस की बात नहीं थी। क्यों कि मस्जिदे नबवी में धन-दौलत के ढेर के ढेर आप के सामने रखे जाते थे और उस समय तक आप अपने स्थान से नहीं उठते थे और न आप को चैन आता था जब तक कि आप उसे गरीबों और धनहीन लोगों को बांट नहीं देते थे। यही नहीं बल्कि आप के साथियों में बड़े-बड़े धन-दौलत और पूंजी वाले लोग थे और आप की सेवा के लिए एक दूसरे से आगे बढ़ने का प्रयास करते थे, और आप के लिए (सब कुछ) बहुमूल्य से बहुमूल्य चीज़ों को निछावर कर देते थे। किन्तु पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दुनिया की वास्तविकता को जानते थे। आप का फरमान हैः
"अल्लाह की क़सम आखि़रत के सामने दुनिया की वास्तविकता ऎसे ही है जैसे कि तुम में से कोई आदमी अपनी इस अंगुली -आप  ने शहादत की अंगुली की ओर संकेत किया- को समुद्र में डाल कर देखे कि उस में कितना पानी आता है।" (सहीह मुस्लिम)
लेडी इ॰ कोबोल्ड (Lady E.Cobold) अपनी पुस्तक 'मक्का का हज्ज' (लन्दन १९३४) में कहती हैः
जबकि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अरब द्वीप के नायक थे... पर उन्होंने उपाधियों के बारे में नहीं सोचा, और न ही उस से लाभ उठाने का प्रयास किया, बल्कि इस बात पर निर्भर करते हुए अपनी हालत पर बाक़ी रहे कि वह अल्लाह के पैग़म्बर हैं और मुसलमानों के सेवक हैं। वह स्वयं ही अपने घर की सफाई करते थे और अपने हाथ से अपने जूते की मरम्मत करते थे। दयालु, दानशील और सदाचारी थे जैसे कि वह बहने वाली हवा हों। कोई फक़ीर या भिखारी आप के पास आता तो जो कुछ आप के पास होता उसे प्रदान कर देते थे, और अधिकांश समय आप के पास थोड़ा ही होता था जो उसके लिए पर्याप्त नहीं होता था।"
५. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को कुछ ऎसे दुर्लभ घटनाओं का सामना होता था जिन के स्पष्टीकरण की आवश्यकता होती थी, किन्तू उसके वि्षाय में आप पर वह्य (ईश्वाणी) न उतरने के कारण आप उसके संबंध में कुछ नहीं कर पाते थे। इसलिए वह्य उतरने से पहले की अवधि को आप दुःख, चिन्ता और शोक की अवस्था में बिताते थे। इसी में से एक इफ्फक  की घटना है जिस में पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सतीत्व पर आरोप लगाया गया। चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक महीना तक इस स्थिति में ठहरे रहे कि आप के दुश्मन आप के बारे में अनुचित बातें करते रहे, आपके सतीत्व को निशाना बनाते रहे, यहाँ तक कि वह्य उतरी जिस ने आपकी पत्नी (आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा) को उस आरोप से मुक्त और पवित्र घोषित कर   दिया जिस से उन को आरोपित किया गया था। यदि आप मिथ्यावादी होते -और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कदापि ऎसा नहीं थे- तो इस समस्या का उसी समय समाधान कर देते, किन्तु वास्तविकता यह थी कि आप अपनी इच्छा से कोई बात नहीं कहते थे।
६.  पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने लिए मानव जाति से बढ़ कर किसी पद का दावा नहींकिया। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम यह बात पसंद नहीं करते थे कि आप के साथ कोई ऎसा व्यवहार किया जाए जो प्रतिष्ठा और महानता का प्रतीक हो। अनस रजि़यल्लाहु अन्हु कहते हैं: सहाबा के निकट पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अधिक प्रिय कोई और नहीं था। तथा उन्होंने कहाः और जब वह लोग आप को देखते तो आप के लिए खड़े नहीं होते थे; इसलिए की वह जानते थे कि आप इस से घृणा करते हैं। (सुनन र्तिमिज़ी)
वाशिंगटन इरविंग  (w.Irving) कहता हैः
"पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की फौजी सफलताओं ने उनके अंदर अभिमान, र्गव एंव घमण्ड नहीं पैदा किया। वह केवल इस्लाम के लिए युद्ध करते थे, किसी व्यक्तिगत (निजी) लाभ अथवा स्वार्थ के लिए नहीं। यहाँ तक कि महानता और श्रेष्ठता की चरम सीमा पर पहुँच कर भी पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी सामान्य सरलता, सहजता और नम्रता को संभाल कर रखा। यदि आप किसी कमरे में लोगों के समूह पर प्रवेश करते तो इस बात को नापसंद करते थे कि वह लोग आप के स्वागत के लिए खड़े हो जायें, या असाधारण रूप से आप का अभिनन्दन  करें। अगर आप का लक्ष्य एक महान राज्य स्थापित करना था तो वह इस्लामिक राज्य है, जिसमें आप ने न्याय के साथ शासन किया, और आप ने यह नहीं सोचा कि उस राज्य के शासन को अपने खानदान के लिए उत्तराधिकार बना दें।"
७. क़ुरआन में कुछ आयतें ऎसी उतरी हैं जिन में पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उनके किसी कार्यवाही या दृष्टि पर निन्दा और डाँट-डपट की गई है, उदाहरण स्वरूपः प्रथमः
अल्लाह तआला का यह कथन हैः
"ऎ नबी! (ईश्दूत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जिस चीज़ को अल्लाह ने आप के लिए हलाल कर दिया है उसे आप क्यों हराम करते हैं? क्या आप अपनी पत्नियों की प्रसन्नता प्राप्त करना चाहते हैं? और अल्लाह तआला क्षमा   करने वाला दया करने वाला है।"(सूरा तहरीमः१)           
इसकी पृ्ष्ठभूमि यह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी कुछ पत्नियों के कारण अपने ऊपर शहद खाना हराम कर लिया था। अतः आप के अल्लाह की हलाल की हुई चीज़ को अपने ऊपर हराम कर लेने के कारण आप के पालनहार की ओर से आप की निंदा की गई।


(दूसरा भाग)

दूसराः  अल्लाह तआला का यह फर्मान हैः

"अल्लाह तुझे क्षमा कर दे, तू ने उन्हें क्यों अनुमति दे दी? बिना इसके कि तेरे सामने सच्चे लोग खुल जाएं और तू झूठे लोगों को भी जान ले। (सूरा तौबाः ४३)
इस आयत में अल्लाह तआला ने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की इस बात पर निंदा और डाँट-डपट की है कि आप ने तबूक के युद्ध से पीछे रह जाने वाले मुनाफिक़ों के झूठे बहानों को स्वीकार करने में शीघ्रता क्यों की? चुनांचे मात्र उनके क्षमायाचना करने पर ही उन्हें क्षमा कर दिया उनकी छान-बीन और जाँच-पड़ताल नहीं की ताकि सच्चे और झूठे की पहचान कर सकें।
तीसराः अल्लाह तआला का यह फर्मान,


"नबी के हाथ में बन्दी नहीं चाहियें जब तक कि धरती में अच्छी रक्तपात की युद्ध न हो जाये। तुम तो दुनिया का धन-दौलत चाहते हो और अल्लाह की इच्छा आखि़रत की है, और अल्लाह सर्व शक्तिमान और सर्व तत्वदर्शी है। अगर पहले ही से अल्लाह की ओर से बात लिखी हुई न होती तो जो कुछ तुम ने लिया है उस बारे में तुम्हें कोई बड़ी सज़ा होती।" (सूरा अनफालः ६७,६८)
आइशा रजि़यल्लाहु अन्हा कहती हैं : यदि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह की उतारी हुई आयतों में से कोई चीज़ छुपाये होते तो इस आयत को अवश्य छुपाते :

"और तू अपने दिल में वह बात छुपाये हुये था जिसे अल्लाह ज़ाहिर करने वाला था और तू लोगों से डरता था, हालाँकि अल्लाह तआला इस बात का अधिक योग्य था कि तू उस से डरे।" (सूरा अहज़ाबः ३७) (सहीह बुख़ारी व सहीह मुस्लिम)
तथा अल्लाह तआला का फरमान हैः

"ऎ पैग़म्बर आप के अधिकार में कुछ नहीं।"(सूराआल-इम्रानः १२८)
तथा अल्लाह तआला का फरमान हैः

"उसने विमुखता प्रकट की और मुँह मोड़ लिया (केवल इस लिए) कि उस के पास एक अंधा आया। तुझे क्या पता शायद वह संवर जाता या उपदेश सुनता और उपदेश उसे लाभ पहुँचाता।"(सूरत अबसः १-४)
यदि आप मिथ्यावादी होते -और  आप सल्लल्लाहु   अलैहि  व सल्लम कदापि ऎसा नहीं थे- तो यह आयतें जिन में पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की डाँट-डपट और निंदा की गई है क़ुरआन में न होतीं।
लाईटनर (Lightner) अपनी पुस्तक 'इसलाम धर्म' में कहता हैः
"एक बार अल्लाह तआला ने अपने नबी की ओर एक ऎसी वह्य अवतरित की जिस में आप की सख्त पकड़ की गई थी, इस लिए कि आप ने अपने चेहरे को एक ग़रीब अंधे आदमी से फेर लिया था ताकि एक धनवान प्रभावशाली आदमी से बात करें। और आप ने उस वह्य का प्रसार किया और उसे फैलाया। यदि आप वैसे ही होते जैसाकि मूर्ख ईसाई आप के संबंध में कहते हैं, तो इस वह्य का वजूद न होता।"
८.पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सच्चे नबी और पैग़म्बर होने तथा  आप जो  कुछ लेकर आये हैं उसकी सच्चाई का निश्चित प्रमाण सूरतुल-मसद्द है जिसमें इस बात का निश्चित फैसला है कि आप का चाचा अबू-लहब जहन्नम में प्रवेश करेगा, और यह सूरत आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की दावत के शुरू शुरू में उतरी है, अतः यदि आप मिथ्यावादी होते -और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  कदापि ऐसा नहीं थे- तो इस प्रकार निश्चित फैसला न घोषित करते इसलिए कि हो सकता है कि आप का चाचा मुसलमान हो जाये???
डा॰ गेरी मिलर (Gary Miller) कहता हैः यह व्यक्ति अबू-लहब इस्लाम से इस हद तक घृणा करता था कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जहाँ भी जाते वह आप के पीछे-पीछे चलता ताकि जो कुछ पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम कहते उसके महत्त्व को कम कर सके। यदि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपरिचित और अनजाने लोगों से बात करते हुए देखता तो प्रतीक्षा करता रहता यहाँ तक कि आप अपनी बात खत्म करें ताकि वह उनके पास जाए, फिर उन से पूछता कि मुहम्मद ने तुम से क्या कहा है? अगर वह तुम्हें कोई चीज़ सफेद बताए तो समझो कि वह काली है और वह तुम से रात कहे तो वास्तव में वह दिन है। कहने का मक़सद यह है कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जो चीज़ भी कहते वह उसका विरोध करता था और लोगों को उसके बारे में शक में डालता था। अबू लहब की मृत्यु से दस साल पहले क़ुरआन की एक सूरत उतरी जिसका नाम 'सूरतुल मसद'  है, यह सूरत बतलाती है कि अबू लहब आग (नरक) में जाएगा, यानी दूसरे शब्दों में उसका अर्थ यह हुआ कि अबू लहब कभी भी इस्लाम में प्रवेश नहीं करेगा।
(मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को झूठा साबित करने के लिए पूरे दस सालों के दौरान अबू लहब को केवल यह करना चाहिए था कि वह लोगों के सामने आ कर कहताः मुहम्मद मेरे बारे में यह कहता है कि मैं शीघ्र ही आग (नरक) में जाऊँगा, किन्तु मैं अब यह घोषणा  करता हूँ कि मैं इस्लाम स्वीकार करना चाहता हूँ और मुसलमान बनना चाहता हूँ !!अब तुम्हारा क्या विचार है क्या मुहम्मद अपनी बात में सच्चा है या नहीं? क्या उसके पास जो वह्य आती है वह ईश्वरीय वह्य  है? किन्तु अबू लहब ने ऎसा बिल्कुल नहीं  किया जबकि उसका सारा काम पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का विरोध करना था लेकिन उसने इस मामले में आप का विरोध नहीं किया। यह कहानी गोया यह कह रही है कि  पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अबू लहब से कहते हैं कि तू मुझ से घृणा करता है और मुझे खत्म कर देना चाहता है। ठीक है मेरी बात का तोड़ करने का तेरे पास अच्छा अवसर है! किन्तु पूरे दस साल के बीच उसने कुछ नहीं किया!! न तो वह इस्लाम लाया और न ही कम से कम दिखाने के लिए इस्लाम क़बूल किया!
दस साल तक उसके लिए यह अवसर था कि एक मिनट में इस्लाम को ध्वस्त कर दे ! किन्तु यह बात मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बात नहीं थी बल्कि उस हस्ती की ओर से वह्य थी जो ग़ैब (परोक्ष) को जानती है और उसे पता था कि अबू लहब कभी भी इस्लाम नहीं लायेगा।
अगर यह अल्लाह की ओर से वह्य न होती तो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इस बात को कैसे जान सकते थे कि जो कुछ सूरत में बताया गया है अबू लहब उस को साबित कर दिखायेगा?? अगर उन्हें यह पता नहीं होता कि यह अल्लाह की ओर से वह्य है तो वह पूरे दस साल तक इस बात पर दृढ़ता और विश्वास के साथ क़ाइम न रहते कि उनके पास जो चीज़ है वह सत्य है। जो आदमी इस तरह का खतरनाक चैलेंज रखता है उसके पास केवल यही एक अर्थ होता है कि यह अल्लाह की ओर से वह्य है!.

"अबू लहब के दोनों हाथ टूट गये और वह स्वयं नष्ट हो गया। न तो उसका माल उसके काम आया और न उसकी कमाई। वह शीघ्र  ही भड़कने वाली आग में जायेगा। और उसकी बीवी भी (जायेगी) जो लकडि़याँ ढोने वाली है, उस की गदर्न में मूंज की बटी हुई रस्सी होगी।" (सूरतुल-मसदः १-५)
९.क़ुरआन की एक आयत में 'मुहम्मद' के बदले 'अहमद' का नाम आया है, अल्लाह तआला ने फरमायाः
"और उस समय को याद करो जब मर्यम के बेटे ईसा ने कहा ऎ (मेरी क़ौम) बनी इस्राईल! मैं तुम सब की ओर अल्लाह का रसूल हूँ, मुझ से पहले की किताब तौरात की मैं पुष्टि (तसदीक़) करने वाला हूँ और अपने बाद आने वाले एक रसूल की मैं तुम्हें शुभ सूचना सुनाने वाला हूँ जिनका नाम अहमद है। फिर जब वह उनके पास स्पष्ट और खुले हुए प्रमाण लेकर आए तो ये कहने लगे यह तो खुला हुआ जादू है।" (सूरतुस्सफः ६)
अगर आप झूठे दावेदार होते -और आप हरगिज़ ऎसा नहीं थे- तो क़ुरआन में इस नाम का वर्णन न होता।

१० .आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का दीन आज तक क़ाइम है, और बराबर लोग बड़ी संख्या में इस में दाखिल हो रहे हैं और इसे अन्य धर्मों पर तरजीह (प्रधानता) दे रहें हैं, जबकि इस्लाम का दावती संघर्ष चाहे वह आर्थिक हो या मानवी जो इस्लाम के प्रसार एंव प्रचार के मैदान में किया जा रहा है वह कमज़ोर है, जबकि दूसरी ओर इस्लामी दावत के विरूद्ध किये जाने वाले संघर्ष बहुत शक्तिशाली और निरंतर हैं जो इस दीन को आड़े  हाथों लेने, इस को बदनाम करने और इसकी ओर से लोगों का ध्यान फेरने में कोई कमी नहीं करते हैं। यह केवल इस लिए है कि अल्लाह तआला ने इस दीन की हिफाज़त की जि़म्मे दारी ली है, अल्लाह तआला ने फरमायाः

"बेशक हम ने ही क़ुरआन को उतारा है और हम ही उसकी हिफाज़त करने वाले हैं।" (सूरतुल हिज्रः९)
अंग्रेज़ लेखक थामस कार्लायल (Th.Carlyle)
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम  के बारे में कहता हैः
"क्या तुम ने कभी किसी झूठे आदमी को देखा है कि वह एक अनोखा दीन ईजाद अविष्कार  कर सकता है? वह ईंट का एक घर भी नहीं बना सकता! अगर वह चूना, गच्च और मटटी और इस प्रकार की अन्य चीज़ों की विशेषताओं को नहीं जानता है तो जो कुछ वह बनायेगा वह घर  नहीं है बल्कि वह मल्बे का ढेर और विभिन्न सामगि्रयों से मिला जुला एक टीला है। और वह इस बात के योग्य नहीं है की अपने स्तंभों पर बारह शताब्दी तक स्थापित रहे जिसमें बीस करोड़ मनुष्य बसते हों, बल्कि वह इस बात के योग्य है कि उसके स्तंभ ढह जायें और वह इस प्रकार ध्वस्त हो जाए कि उसका निशान भी न रह जाए। मुझे पता है कि मनुष्य पर अनिवार्य है कि वह अपने तमाम मामले में प्रकृति के क़ानून के अनुसार चले अन्यथा वह उसका काम करना बन्द कर देगी... वो काफिर लोग जो बात फैलाते हैं वह झूठ है चाहे वह उसको कितना ही बना सवाँर कर पेश करें यहाँ तक कि उसे वह सच्चा ख्याल करने लगें।.. यह एक सानिहा दुर्घटना है कि लोग राष्ट्र के राष्ट्र और समुदाय के समुदाय इन भ्रष्टाचारों के धोखे में आ जायें।"
चुनाँचे अल्लाह तआला की ओर से क़ुरआन की हिफाज़त और सुरक्षा के बाद क़ुरआन करीम एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी में किताबों और लोगों के सीनों में सुरक्षित कर दिया गया। क्योंकि उसको याद करना, उसकी तिलावत –पाठ- करना, उसको सीखना और सिखाना उन कामों में से है जिन्हें करने के मुसलमान बड़े इच्छुक होते हैं और उसके लिए दौड़ पड़ते हैं ताकि वह भलाई और कल्याण प्राप्त करें जिसका उल्लेख करते हुए पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः॑
"तुम में से सब से अच्छा –सर्वश्रेष्ट- वह आदमी है जो क़ुरआन सीखे और सिखाए।" (सहीह बुख़ारी)
क़ुरआन करीम में कुछ बढ़ाने या घटाने या उसके कुछ अक्षरों को बदलने के कई प्रयास किए गए किन्तु वह सारे प्रयास असफल हो गए, इसलिए कि उन्हें शीघ्र ही भाँप लिया गया और उनके और क़ुरआन की आयतों के बीच अन्तर को जानना सरल है।
जहाँ तक पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पवित्र सुन्नतों -अहादीसे पाक- की बात है जो इस्लाम धर्म -इस्लामी धर्म-शास्त्र- का दूसरा साधन है, उनकी हिफाज़त विश्वसनीय और भरोसे मन्द लोगों के द्वारा हुई है जिन्हों ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों को ढूँढने और ढूँढ-ढूँढ कर जमा करने के लिए अपने आप को समर्पित कर दिया। चुनाँचे सहीह (विशुद्ध) हदीसों को बाक़ी रखा और ज़ईफ –कमज़ोर- हदीसों को स्पष्ट किया और घढ़ी हुई हदीसों पर टिप्पणी की। जो आदमी हदीस की उन किताबों को देखे जो पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की हदीसों से संबंधित हैं तो उसे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सादिर होने वाली तमाम चीज़ों की हिफाज़त के लिए की जाने वाली कोशिशों और प्रयासों की हक़ीक़त का पता चल जायेगा और पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से जो हदीसें सहीह प्रमाणित हैं उनकी शुद्धता के बारे में उसके संदेहों का निवारण होजायेगा।
माईकल हार्ट –Michael Hart- अपनी "सौ प्रथम लोगों का अध्ययन" नामक किताब में कहता हैः
"मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने संसार के एक महान धर्म की स्थापना और प्रसार की और एक महान (हम यह कहते हैं कि पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पद का कोई और आदमी नहीं है बल्कि वह सबसे महान हैं) राजनीतिक विश्व व्यापी लीडर हो गये, चुनाँचे आज उनकी मृत्यु पर लगभग तेरह सदी बीत जाने के बाद भी उनका प्रभाव निरंतर शक्तिशाली और गहरा है।"
११. पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के द्वारा लाये हुए सिद्धांतों (उसूलों) की यथार्थता और उनका हर समय हर स्थान के लिए उचित और योग्य होना, तथा उन्हें लागू करने के जो अच्छे और शुभ परिणाम (नताईज) सामने आ रहे हैं - यह सब इस बात की गवाही देते हैं कि जो कुछ आप लेकर आए हैं, वह अल्लाह की ओर से वह्य है। तथा यहाँ पर यह प्रश्न है कि क्या पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के अल्लाह की ओर से भेजे हुए संदेशवाहक होने में कोई बाधा और रुकावट है जबकि आप से पहले बहुत से नबी और रसूल भेजे जा चुके हैं? अगर इसका उतर यह है कि इस में कोई अक़ली और शरई रुकावट नहीं है तो फिर (प्रश्न यह है कि) आप पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सारे लोगों के लिए पैग़म्बरी (ईश्दूतत्व) को क्यों नकारते हैं जबकि आप से पहले पैग़म्बरों की पैग़म्बरी को मानते हैं?!
१२.कारोबार, जंग, शादी-विवाह, आर्थिक मामलों, राजनीति और इबादतों...आदि के मैदान में मुहमम्द सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ज़ुबानी द्वारा इस्लाम ने जो संविधान और क़वानीन प्रस्तुत किये हैं, पूरी दुनिया के लोग एक साथ मिल कर भी उस तरह के संविधान और क़वानीन पेश नहीं कर सकते। फिर क्या यह बात समझ में आने वाली है कि एक अनपढ़ आदमी जो लिखना पढ़ना तक नहीं जानता था इस तरह का परिपूर्ण संविधान पेश कर सकता है जिसने पूरी दुनिया के मामले को संगठित कर दिया? क्या यह आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पैग़म्बरी और ईश्दूतत्व की सच्चाई को प्रमाणित नहीं करती और यह कि आप अपनी खाहिश इच्छा से कोई बात नहीं कहते थे?
१३.पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी दावत का आरंभ और उसका खुल्लम खुल्ला प्रसार उस समय किया जब आप चालीस साल की उमर को पहुँच गये और जवानी और शक्ति की अवस्था को पार कर गये और बुढ़ापा और आराम पसंदी की उमर आ गई।
थामस कार्लायल  अपनी किताब 'हीरोज़' में कहता हैः
"....जो लोग यह कहते हैं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी पैग़म्बरी में सच्चे नहीं थे, उनके दावे का खण्डन करने वाली चीज़ों में से एक यह भी है कि उन्हों ने अपनी जवानी और उसके खूब सूरत दिनों को (खदीजा रजि़यल्लाहु अन्हा के साथ )चैन और आराम में बिताया और उस दौरान कोई ऎसी आवाज़ नहीं उठाई जिस के पीछे उनको कोई ?शोहरत, चर्चा, नामवरी, पद और शासन प्राप्त हो... और जब जवानी चली गई और बुढ़ापा आ घेरा तो आप के सीने में वह ज्वालामुखी फूट पड़ा जो मांद पड़ा था और आप एक महान और भव्य चीज़ की इच्छा करने लगे।"
आर॰ लानडाऊ (R.Landau )अपनी किताब 'इस्लाम और अरब' में कहता हैः
"मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का मिशन बहुत बड़ा था, वह ऎसा मिशन था जो किसी दज्जाल के बस में नहीं जिसे स्वाथिर्क प्रलोभन -कुछ नवीन योरपी लेखकों ने पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को इसी चीज़ से आरोपित किया है- इस बात की प्रेरणा दे रहे हों कि वह अपनी ज़ाती कोशिश और परिश्रम से उस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता की आशा रखता हो। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अपने पैग़ाम और संदेश को पहुँचाने में खुल कर सामने आने वाला इख़्लास और आप के मानने वालों का आप पर उतरी हुई वह्य  पर  मुकम्मल ईमान (विश्वास) और पीढि़यों और सदियों का अध्ययन और तजरूबा - यह सारी चीज़ें   मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को किसी प्रकार के ज्ञान पूर्वक धोखाबाज़ी से आरोपित किये जाने को ग़ैर माक़ूल (तर्कहीन, बुद्धिहीन) और अनाधार ठहराती हैं, और इतिहास में किसी दानिस्ता -ज्ञान पूर्वक- (धार्मिक) जालसाज़ी का पता नहीं चलता है जो एक लम्बे समय तक बाक़ी रही हो,और इस्लाम अभी तेरह सौ साल से भी अधिक समय से बाक़ी ही नहीं है बल्कि हर साल उस के नये नये मानने वाले लोग पैदा हो रहे हैं। इतिहास के पन्ने किसी झूठे-फरेबी का एक उदाहरण भी नहीं पेश कर सकते जिसके संदेश को दुनिया के राज्यों में से एक राज्य और एक सबसे अधिक कुलीन सभ्यता को जन्म देने का आश्रय प्राप्त हो।"

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